वीरभद्रासन क्या है?

यह आसन करने से भुजाएँ, कंधे, जंघाएँ तथा पीठ, सभी एक साथ सशक्त होते हैं। इस आसन का नाम, भगवान शिव के अवतार, खूँखार योद्धा, वीरभद्र के नाम पर पड़ा है। हमारे उपनिषदों की अन्य कहानियों की भाँति, योद्धा वीरभद्र की शिक्षाप्रद कहानी भी हमारे जीवन मूल्यों को परिष्कृत करती है।

वीरभद्रासन करने की विधि

वीरभद्रासन की गिनती सर्वाधिक योग के अति आकर्षक और सुंदर योगासनों में की जाती है और यह व्यक्ति के योगाभ्यास को शोभायमान और सुशोभित बनाता है। इसको करने की प्रक्रिया इस प्रकार है :

  • अपनी दोनों टाँगों के बीच कम से कम 3 से 4 फुट की दूरी रखते हुए सीधे खड़े हो जाएँ।
  • अपने दायें पाँव को समकोण (90 डिग्री) तथा बाएँ पाँव को 15 डिग्री के कोण जितना एक ही दिशा में घुमाएँ।
  • जाँच लें कि क्या आपके दायें पाँव की एड़ी बायें पाँव के केंद्र की सीध में है?
  • दोनों भुजाओं को कंधों की ऊँचाई तक ले जाएँ और उन्हें कंधों की सीध में फैला लें। हथेलियाँ ऊपर की ओर खुली रखें।
  • जाँच कर सुनिश्चित कर लें कि आपकी भुजाएँ जमीन के समानांतर हों।
  • साँस छोड़ते हुए अपने दायें घुटने को मोड़ें।
  • यह भी जाँच लें कि क्या आपका दायाँ घुटना और दायीं एड़ी एक सीधी रेखा में हैं? यह भी सुनिश्चित करें कि आपका घुटना एड़ी से आगे न जा रहा हो।
  • अपने सिर को घुमा कर दायीं दिशा में देखें।
  • जैसे जैसे आप आसन में स्थिर होते हो, अपनी भुजाओं को और अधिक खिंचाव देते जाएँ।
  • थोड़ा प्रयास कर के सजगतापूर्वक कूल्हों को नीचे की ओर धकेलें। इस इस मुद्रा में किसी योद्धा जैसे दृढ़ निश्चय के साथ बने रहें। मुस्कान लिए हुए योद्धा की भाँति आप भी अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखें। नीचे की ओर आते हुए साँस लेते व छोड़ते रहें।
  • साँस लेते हुए ऊपर आ जाएँ।
  • साँस छोड़ते हुए अपने हाथों को बगल से नीचे ले कर आएँ।
  • अब इसी प्रक्रिया को बायीं ओर से दोहराएँ (अपना बायाँ पाँव 90 डिग्री तक और दायाँ पाँव 15 डिग्री तक घुमाएँ)।

वीरभद्रासन करने का लाभ

  • भुजाओं, टाँगों और पीठ के निचले भाग को सशक्त तथा लचीला बनाता है।
  • शारीरिक संतुलन में सुधार लाता है, आपके आंतरिक बल को बढ़ाता है।
  • दिन भर कुर्सी मेज पर काम करने वालों तथा अधिक बैठे रहने वाले लोगों के लिए अति लाभकारी आसन है।
  • जमे हुए कंधों से पीड़ित लोगों के लिए अति लाभकारी है।
  • अल्प समय में ही कंधों में एकत्रित तनाव को दूर करता है।
  • व्यक्तित्व में शुभता, साहस, शोभा तथा शांति लाता है।

निषेध

  • यदि आप अभी हाल ही में रीढ़ की हड्डी की किसी समस्या से पीड़ित रहे हैं, अथवा किसी दीर्घकालिक रोग से मुक्त हुए हैं तो वीरभद्रासन का अभ्यास अपने डाक्टर से परामर्श लेकर ही करें।
  • उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • जो महिलाएँ नियमित रूप से योगाभ्यास करती रही हों, उनके लिए गर्भावस्था की दूसरी व तीसरी तिमाही में वीरभद्रासन करना विशेष रूप से लाभप्रद है। वीरभद्रासन का अभ्यास किसी दीवार के निकट खड़े हो कर करें ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप उसका सहारा ले सकें। तथापि, यह योग मुद्रा करने से पहले अपने डाक्टर से परामर्श अवश्य कर लें।
  • यदि आप अतिसार से पीड़ित हैं या अभी हाल ही में इससे पीड़ित रह चुके हैं तो इस आसन को करने से परहेज करें।
  • यदि आप घुटनों के दर्द अथवा गठिया रोग से ग्रस्त हैं तो घुटनों को कोई सहारा दे कर ही यह आसन करें।
सभी योगासन
पिछला योगासन: त्रिकोणासन
अगला योगासन: प्रसारित पादहस्तासन

वीरभद्रासन को लेकर किए जाने वाले कुछ सामान्य प्रश्न

वीरभद्रासन के लाभ: भुजाओं, टाँगों और पीठ के निचले भाग को सशक्त तथा लचीला बनाता है। शारीरिक संतुलन में सुधार लाता है, आपके आंतरिक बल को बढ़ाता है। दिन भर कुर्सी मेज पर काम करने वालों तथा अधिक बैठे रहने वाले लोगों के लिए अति लाभकारी आसन है। जमे हुए कंधों से पीड़ित लोगों के लिए अति लाभकारी है। अल्प समय में ही कंधों में एकत्रित तनाव को दूर करता है। व्यक्तित्व में शुभता, साहस, शोभा तथा शांति लाता है।
वीडियो में दर्शाए गए निर्देशों का पालन करें। इस आसन का अभ्यास एक समर्पित योद्धा जैसी संकल्पशक्ति के साथ करें। इस पर विशेष ध्यान दें कि आपका दायाँ घुटना और एड़ी एक सीधी रेखा में हों। यह भी सुनिश्चित करें कि आसन में आपका घुटना एड़ी से आगे न जाए।
पाँच मुद्राएँ इस प्रकार हैं:
योद्धा मुद्रा I/ वीरभद्रासन I
योद्धा मुद्रा II/ वीरभद्रासन II
योद्धा मुद्रा III/ वीरभद्रासन III
विपरीत योद्धा मुद्रा/ विपरीत वीरभद्रासन
विनम्र योद्धा/ बद्ध वीरभद्रासन
पीछे हटते हुए योद्धा की मुद्रा
प्रतिदिन शरीर को खोलने वाली मुद्राऐं करने से आपके आत्मविश्वास में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होने लगती है। अतः प्रतिदिन दो मिनट तक वीरभद्रासन का अभ्यास कर आप एक योद्धा की भाँति आत्मविश्वासी और साहसी बन सकते हैं।
यदि आप निम्नलिखित तीन ग़लतियाँ कर रहे हैं तो योद्धा मुद्रा / वीरभद्रासन करना कठिन हो जाता है:
दोनों पैरों के बीच कम दूरी होना – यदि खड़े होते समय आपकी सामने की जंघा फर्श के समानान्तर नहीं है तो आप अपने पैरों में अंतर को बढ़ा सकते हैं।
योद्धा मुद्रा II में आमतौर पर संरेखण सही नहीं होता – अर्थात् पीछे वाली टाँग का घुटना मुड़ कर एक जगह जड़ हो जाता है जबकि कूल्हे आगे हो कर संकुचित हो जाते हैं।
दोनों टाँगों का आसन में उपयोग न करना – हम प्रायः सामने वाली टाँग का तो सही उपयोग करते हैं परंतु पीछे रहने वाली टाँग पर ध्यान देना भूल जाते हैं। इसलिए अपने नितंब क्षेत्र से पीछे वाली एड़ी पर पर्याप्त दबाव डालें। जब आप सामने वाली टाँग को समकोण, 90 डिग्री पर मोड़ते हैं तो पीछे की एड़ी पर जोर से दबाव डालना चाहिए ।
कूल्हों को चौकोर रखना – कूल्हों को इस प्रकार रखने से परहेज करें क्योंकि हमारे हड्डियों का ढाँचा उन्हें पूरा 90 डिग्री तक घुमाने में सक्षम नहीं है।

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