‘ध्यान मंत्र’ | ७ ध्यान के मंत्र,युवाओं के लिए | Dhyan mantra in hindi

मैं अक्सर अपने आसपास की छोटी-छोटी घटनाओं से विचलित हो जाता था | पर अब ऐसा नही है, मुझमे अब पहले से ज्यादा धैर्य है| अब मैं आसानी से अपना आपा नहीं खोता‘| ऐसा कहना है 25 वर्षीय सुनीत का !

वह इस परिवर्तन का श्रेय ‘ध्यान’ को देते हैं जिसका नियमित अभ्यास वह पिछले कुछ महीनों से कर रहे हैं | उनका कहना है – ‘मैं आज भी स्वयं आश्चर्यचकित हूँ कि इतना बड़ा परिवर्तन मुझमें कैसे आया? अब तो स्थिति ये है कि मैं बस इस खोज में लगा रहता हूँ कि कैसे मैं अपने ध्यान को और गहरा करूँ!’

यद्यपि आप सब निश्चित ही अपने दैनिक ध्यान का आनंद उठा रहे हैं, यहाँ कुछ सामान्य रूप से पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर निश्चित रूप से आप सभी को अपनी ध्यान-साधना को और अधिक गहन करने में सहायक होंगे :

1. ‘कभी-कभी हम आलस्य का अनुभव करते हैं, ऐसा लगता है कि ध्यान के दौरान ही नींद आ जाएगी, ऐसे में क्या करें?’;

आप कुछ सहज और सूक्ष्म व्यायाम (कसरत) से शुरुआत कर सकते हैं| यह शरीर की जकड़न को समाप्त कर आपको क्रियाशील रखेगा | आप अपने आलस्य से बाहर आएंगे | इतना ही नही, इसके विपरीत यदि आप ध्यान से पहले इस तरह की अस्थिरता या उत्तेजना का अनुभव करते हैं कि आप शांत बैठ भी न पायें, तो व्यायाम आपको इसमें भी ठहराव लाने में सहायता करता है|

2. ‘जब बाहर हर तरफ शोर ही शोर है, ऐसे में भीतर मन को शांत कैसे रख सकते हैं?’

इस पहेली की कुंजी है – स्वीकार करना| आप जैसे ही किसी चीज को स्वीकार कर लेंगे, वह आप को परेशान नहीं करेगी| आप जितना बाहरी शोर से लड़ेंगे, वो उतना ही आपको तंग करेगा’| अतः आप अपने वातावरण के शोर के प्रति बस सजग रहें और उन्हें स्वीकार कर लें |

3. क्या हम बिलकुल सहज रूप से ध्यान में उतर सकते हैं?

गुरुदेव के अनुसार ध्यान के 3 स्वर्णिम नियम हैं –

मैं कुछ नहीं हूँ – अगर हम ध्यान के दौरान ये सोचें कि हम कुछ ख़ास हैं, या कुछ भी नहीं हैं, अमीर हैं, गरीब हैं , बुद्धिमान हैं – तो हम ध्यान नहीं कर पाएंगें| ध्यान दरअसल, इन पहचान से ऊपर की स्थिति है| ध्यान के दौरान तो हम ‘कुछ भी न होने’ की स्वतंत्रता अनुभव करते हैं|

मैं कुछ नहीं कर रहा/ रही हूँ – ध्यान के दौरान वो 20 मिनट कुछ भी नहीं करना है| किसी भी घटना, परिस्थति, व्यक्ति या विचार (अच्छे या बुरे ) पर ध्यान केन्द्रित नहीं करना है| विचारों को सहज आने-जाने दें| ना तो उन विचारों का स्वागत करें, और ना ही उनका विरोध !

मुझे कुछ नहीं चाहिए – अगले 20 मिनट के लिए बस इस बात बार सजगता रखें कि “मेरी कोई भी इच्छा नहीं है”| आप सारी इच्छाओं और प्रलोभनों से दूर हैं |

4. क्या भोजन का मेरी साधना पर कोई प्रभाव पड़ता है?

सामान्य रूप से यह कहा ही जाता है कि- आप वहीं हैं जो आप खाते हैं|अपनी साधना के अनुभव को और प्रबल बनाने के लिए अपने भोजन की आदतों पर विशेष ध्यान देना भी एक अच्छा तरीका है | जिस प्रकार का भोजन हम ग्रहण करते हैं, उसका हमारे मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है| अगर आप अधिक मात्रा में तला हुआ, मसालेदार और वसायुक्त भोजन लेते हैं, तो ध्यान के दौरान आप असहज महसूस कर सकते हैं| इसी तरह अगर आप बासी , डिब्बाबंद और मांसाहार भोजन करते हैं, तो आप साधना के दौरान आलस्य और नींद का अनुभव करेंगे| ध्यान-साधना के लिए सबसे उत्तम है – ताजा और कम मात्र में भोजन लेना |

5. ध्यान में और अधिक गहरे उतरने के लिए क्या मैं अपने व्यक्तिगत मन्त्र का प्रयोग कर सकता हूँ?

हाँ, अपने मन्त्र के साथ ध्यान का अभ्यास, न सिर्फ आपको साधना में लीन होने में मदद करेगा, बल्कि सहज रूप से ध्यान में जाने में भी सहायक होगा| मन्त्र में वो शक्तियां हैं जो मन में जमी पुरानी और अनावश्यक संस्कारों को साफ करती हैं एवं आपको पूर्ण रूप से नवीन, ऊर्जावान और उत्साहित रखती हैं | यदि आप अपने ऐसे ही व्यक्तिगत मन्त्र को पाना चाहते हैं, तो आर्ट ऑफ़ लिविंग ‘सहज समाधि शिविर’ के बारे में जानकारी ले सकते हैं|

6. क्या यह आवश्यक है कि ‘ध्यान’ मैं हमेशा एकांत में या अकेला ही करूँ?

नहीं, बल्कि इसके विपरीत यह होना चाहिए कि आप एक ‘साधक-समूह’ बना लें | वैसे भी हम न जाने कितने ही समूह या क्लबों का हिस्सा होते ही हैं, फिर क्यों न हम एक साधक समूह का भी हिस्सा हो जाएँ ? एक समूह में साथ बैठने वाले साधक, ध्यान से होने वाले अच्छे प्रभावों के बारे में चर्चा करतें हैं| समूह में साधना का प्रभाव भी कई गुना अधिक होता है| मंडली के लोग एक–दूसरे को उत्साहित बनाए रखते हैं जिससे यह संभावना भी कम हो जाती है कि आप अपना कोई ध्यान-सत्र आलस्य या भूलवश चूक जाएँ |

7. ‘ध्यान’ में गहरे उतरने के लिए हम और क्या कर सकते हैं?

यहाँ यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप अपने अभ्यास का मान बनाये रखें| इसका अर्थ है– ध्यान का नियमित अभ्यास करें और वह भी अपने गुरु और अपनी ध्यान पद्धति में पूर्ण आस्था के साथ! आप स्वयं पर विश्वास बनाए रखें और यह भी विश्वास कायम रहे कि साधना की यह पद्धति आपके लिए पूरी तरह कारगर है |

 
Founded in 1981 by Sri Sri Ravi Shankar,The Art of Living is an educational and humanitarian movement engaged in stress-management and service initiatives. Read More