उत्सव

रक्षाबंधन का त्यौहार क्यों मनाया जाता है

रक्षाबंधन का त्यौहार 

रक्षाबंधन का त्योहार हर साल श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया ŕजाता है। इसके पहली वाली पूर्णिमा गुरु-पूर्णिमा थी, जो गुरु और शिक्षकों को समर्पित थी। उसके पहले बुद्ध पूर्णिमा और उसके भी पहले चैत्र-पूर्णिमा थी। तो इस पूर्णिमा को श्रावण-पूर्णिमा कहते हैं, रक्षा-बंधन का यह त्यौहार भाई-बहन के प्रेम और कर्तव्य के सम्बन्ध को समर्पित है।

 

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रक्षाबंधन का महत्व 

रक्षाबंधन पर बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं। भाई अपनी बहन को सदैव साथ निभाने और उसकी रक्षा के लिए आश्वस्त करता है। यह परम्परा हमारे भारत में  काफी प्रचलित है, और ये श्रावण पूर्णिमा का बहुत बड़ा त्यौहार है। आज ही के दिन यज्ञोपवीत बदला जाता है।

रक्षाबंधन अर्थात् संरक्षण का एक अनूठा रिश्ता, जिसमें बहनें अपने भाइयों को राखी का धागा बाँधती है, लेकिन मित्रता की भावना से भी यह धागा बाँधा जाता है, जिसे हम दोस्ती का धागा भी कहते हैं। यह नाम तो अंग्रेज़ी में अभी रखा गया है, लेकिन रक्षा बंधन तो पहले से ही था, यह रक्षा का एक रिश्ता है।

इसलिए, रक्षा बंधन ऐसा त्यौहार है, जब सभी बहनें अपने भाइयों के घर जाती हैं,और अपने भाइयों को राखी बांधती हैं, और कहती हैं "मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी और तुम मेरी रक्षा करो"। और ये कोई ज़रूरी नहीं है, कि वे उनके अपने सगे भाई ही हों, वह अन्य किसी को भी राखी बाँधकर बहन का रिश्ता निभाती हैं।तो ये प्रथा इस देश में काफी प्रचलित है, और ये श्रावण पूर्णिमा का बहुत बड़ा त्यौहार है। आज ही के दिन यज्ञोपवीत बदला जाता है।

रक्षाबंधन पर राखी बांधने की हमारी सदियों पुरानी परंपरा रही है। प्रत्येक पूर्णिमा किसी न किसी उत्सव के लिए समर्पित है। सबसे महत्वपूर्ण है कि आप जीवन का उत्सव मनाये। सभी भाईयों और बहनों को एक दूसरे के प्रति प्रेम  और कर्तव्य का पालन और रक्षा का दायित्व लेते हुए ढेर सारी शुभकामना के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाना चाहिए।

अगले पांच सालों के लिए रक्षाबंधन उत्सव की तारीख पता करें । 

15 अगस्त 2019गुरूवार
3 अगस्त 2020सोमवार
22 अगस्त 2021रविवार
11 अगस्त 2022गुरूवार
30 अगस्त 2023बुधवार

रक्षाबंधन वीडियो

यज्ञोपवीत (जनेऊ) का संदेश और बदलने का महत्व

आपको ये याद दिलाना कि आपके कन्धों पर तीन जिम्मेदारियां या ऋण हैं – माता-पिता के प्रति ज़िम्मेदारी, समाज के प्रति जिम्मेदारी और ज्ञान के प्रति जिम्मेदारी। ये हमारी तीन जिम्मेदारी या ऋण हैं। हम अपने माता-पिता के प्रति ऋणी हैं, हम समाज के प्रति ऋणी हैं, और हम गुरु के प्रति ऋणी हैं; यानि ज्ञान के प्रति। तो ये तीन प्रकार के ऋण हैं, और यज्ञोपवीत हमें इन तीन जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।

जब हम कहते हैं ‘ऋण’ – तो हमें लगता है कि ये कोई कर्जा है जो हमें वापिस करना है। लेकिन हमें इसे एक जिम्मेदारी के रूप में समझना चाहिये। तो इस सन्दर्भ में ऋण का क्या अर्थ है? जिम्मेदारी! यह है अपनी जिम्मेदारियों को पुनः याद करना, पिछली पीढ़ी के प्रति, आने वाली पीढ़ी के लिए और वर्तमान पीढ़ी के लिए। और इसी लिए, आप धागे को तीन बार लपेटते हैं।

यही इसका महत्व है – मुझे अपना शरीर शुद्ध रखना है, अपना मन शुद्ध रखना है और अपनी वाणी शुद्ध रखनी है; शरीर, मन और वाणी में पवित्रता। और जब आपके चारों ओर एक धागा लटका रहता है, तो आपको हर दिन ये याद आता है – “ओह, मेरी ये तीन जिम्मेदारी हैं”।

पुराने दिनों में महिलाओं को भी ये धागा पहनना होता था। ये केवल एक जाति या किसी और जाति तक ही सीमित नहीं था। इसे हर एक कोई पहनता था – फिर चाहे वो ब्राह्मण हो, वैश्य, क्षत्रिय या शुद्र; लेकिन बाद में यह सिर्फ कुछ लोगों तक ही सीमित रह गया।

तो इस दिन, जब ये पवित्र धागा (जनेऊ) बदला जाता है, तो इसे एक संकल्प के साथ किया जाता है, कि “मुझे शक्ति प्रदान हो, कि मैं जो भी कर्म करूँ वे कुशल और श्रुत हों”।  कर्म करने के लिए भी किसी को योग्यता चाहिये। और जब शरीर शुद्ध हो, वाणी शुद्ध हो और चेतना जागृत हो, तभी काम पूरा होता है।

ऐसा कहा गया है, कि किसी को काम करने के लिए, चाहे वे आध्यात्मिक हो या फिर सांसारिक काम, उन्हें कुशलता और योग्यता जरूरी है और इस कुशलता और योग्यता को पाने के लिए, आपको जिम्मेदार होना पड़ेगा। केवल एक ज़िम्मेदार व्यक्ति ही काम करने के लायक है। कितना सुन्दर सन्देश दिया गया है। और यज्ञोपवीत संस्कार – माने ये सीखना कि जिम्मेदारी कैसे ली जाती है।

जनेऊ (पवित्र धागा) को सिर्फ ऐसे ही नहीं बदल देना चाहिये। जीवन में ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। तो इसे सजगता और संकल्प के साथ बदला जाता है कि “मैं जो भी करूँ, उसे जिम्मेदारी के साथ करूँ।”

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित 

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