जीवनशैली

मंच का डर (स्टेज फियर) भगाने के 6 असरदार उपाय

जब मैं लगभग 13 वर्ष की थी, मुझे एक दिन स्कूल असेंबली में मंच पर जाकर "आज का सुविचार" बोलना था। यद्यपि मैंने अपनी पंक्तियाँ अच्छी तरह से याद कर रखी थीं, फिर भी मैं केवल दो ही लाइन बोल पायी और डर के कारण मंच से भाग आयी।

और फिर मेरे आंसू बह निकले। चूँकि सभा अभी समाप्त नहीं हुयी थी, मुझे अभी भी अपने सहपाठियों के साथ खड़े रहना था। उस समय ऐसा प्रतीत होता था कि मानो केवल मेरा शरीर ही ज़मीन के ऊपर हो, मेरा बाकी का सारा अस्तित्व ज़मीन के अंदर गहरा धंसा जा रहा हो।

मंच का भय कहें या यूं कहें कि दर्शकों के सामने प्रस्तुति के भय ने मुझे जकड़ लिया था। क्या आपने कभी ऎसी परिस्थिति का अनुभव किया है? यदि किया है, तो यह जान लें कि मैं और आप कोई नहीं हैं। दुनिया भर में मंच-भय सबसे ज्यादा भयभीत करने वाले विषयों में से एक है। उदाहरण के तौर पर, अधिकांश अमेरिकी वयस्क, लोगों के बीच बोलने के डर से ग्रसित होते हैं और यह डर उनको हवाई यात्रा, दिवालियेपन, गंभीर बीमारी और यहां तक की मृत्यु के डर से भी अधिक बड़ा लगता है। इसीलिए मुझे ऐसे लोगों से कभी ईर्ष्या नहीं होती जो औरों को भाषण या प्रस्तुति देकर अपना जीवनयापन करते हैं। "मंच-भय से कैसे पार पाया जाए?" यह प्रश्न मेरे मन में हमेशा से बसा हुआ है।

 

सार्वजनिक संवाद का सच 

मैं अपने पूरे छात्र-जीवन भर वाद-विवाद और भाषण प्रतियोगिताओं से बचने में सफल रही। और इसीलिए मैं अपनी युवावस्था में लोगों के सामने मंच पर जाकर बोलने के डर को कभी जीत नहीं सकी। वयस्क होते ही मुझे यह समझ आ गया कि मैं जीवन भर इससे बची नहीं रह सकती। मैं मानती हूँ कि मेरे जीवन का लक्ष्य कभी नहीं था कि मैं एक प्रसिद्ध संगीतकार या एक सफल क्रांतिकारी नेता या कोई सफल विदूषक (स्टैंड-अप कॉमेडियन) बनूँ। फिर भी, लगभग सभी नौकरियों की चयन प्रक्रिया में सामूहिक चर्चा और किसी विषय का प्रस्तुतीकरण करना पड़ता था और कई बार मुझे लोगों के बीच बोलना पड़ता था। इसके चलते, बाकी सभी चीज़ों की तरह, मेरा अपने डर से भी आमना-सामना हो ही गया। अब मेरे पास और कोई विकल्प था ही नहीं, मुझे अपने डर से पार पाना ही था। अंततः, एक दिन मैंने निडर होकर निर्णय कर लिया कि - जो होगा, देखा जायेगा।

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मंच-भय : एक सामान्य बात

यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि महात्मा गाँधी, वारेन बुफे, थॉमस जेफ़र्सन जैसी महान विभूतियों को भी इस डर को जीतने के लिए हमारी ही तरह संघर्ष करना पड़ा था। महान लोग कभी अपनी महानता के साथ जन्म नहीं लेते। उनके कार्य उन्हें महान बनाते हैं। जब भी उन्हें किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है, तो वे अपनी मेहनत, मजबूत इरादे और लगन से उसका जमकर मुकाबला करते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे मैं और आप अपने मंच-भय से पार पाना चाहते हैं।

तो, क्या कारण है कि इतने महान लोगों को भी मंच पर जाने में स्कूली बच्चों की तरह डर लगता है? हमको लोगों के बीच बोलने में इतना डर क्यों लगता है? इसका एक कारण है कि कोई भी अपने मित्रों या परिचितों के बीच मूर्ख नहीं दिखना चाहता।        

हम सबको ऐसा लगता है कि हमें अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को हर हाल में सुरक्षित रखना है। हम यह सोचते हैं कि हमारे चुप रहने से यदि लोग हमें मूर्ख समझें तो कोई बात नहीं, हमें बोल कर उन्हें सही सिद्ध नहीं करना है।  

लोगों के बीच होने वाली अवमानना का भय एक मौलिक भय है। यह डर हम सबको सताता है। अच्छी बात यह है कि इसको जीतना असंभव नहीं है। 

इससे कैसे निपटा जाए ? सार्वजनिक-संवाद के डर से कैसे पार पाएं ?

मंच-भय को जीतने के नुस्ख़े

ज्ञान ही शक्ति है : 

जिस विषय पर आप बोलने जा रहे हैं, उसको भली-भांति जान लें। यह आपके अंदर बसने वाले डर को समाप्त कर देगा। अंदर के खोखलेपन को छुपाते हुए, आप बाहर के भय से मुक्त नहीं हो सकते।अपने श्रोताओं को मूर्ख बनाने का प्रयास न करें। अपनी प्रस्तुति या भाषण को गहराई से जान-समझ लें जिससे आप अपने श्रोताओं के समय को सम्मान दे सकें। ऐसा करने से आप अपने माथे से पसीने की बूंदे पोंछनें की बजाये, अपने ज्ञान को लोगों के साथ बांटने में अपना ध्यान लगा पाएंगे।    

अपने भाषण की पहली कुछ पंक्तियाँ याद कर लें : 

अक्सर हमें भाषण प्रारम्भ करते समय कठिनाई होती है। अच्छी शुरुआत आधी सफलता के बराबर होती है। एक बार आप मोटर चालू कर देते हैं तो इंजन पूरी यात्रा के लिए चलता जाता है। इसी प्रकार जब आप पहली कुछ पंक्तियाँ अच्छी तरह बोल लेते हैं तो आपका आत्म-विश्वास बढ़ जाता है। अभ्यास करते करते आप सार्वजनिक परिस्तिथियों में पारंगत होते  जाते हैं।

आनंद लें : 

मंच पर व्यतीत समय का आनंद उठाएं। मंच से अपना भाषण समाप्त करके भागने की जल्दी में न रहें। यह सोचें कि आपके श्रोता आपके ज्ञान से कैसे अधिकाधिक लाभान्वित हो सकते हैं। अपने अंदर उठने वाली घबराहट को विदाई दे दें, आपकी सकारात्मक सोच आपके श्रोताओं को निश्चय ही प्रभावित करेगी।

वर्तमान में रहें : 

बहुधा, या तो हम भूतकाल में या भविष्य में जीते हैं। जहां हमारा शरीर होता है, कई बार हमारे मन में उठने वाले विचार वहां नहीं होते। हमारे मन में चल रही चिंताएं या योजनाऐं वर्तमान से परे होती हैं | इससे हमारी चिंताएं बढ़ जाती हैं। इससे बचें। पुरानी यादें और विचार ही हमको परेशान करती हैं, उनको छोड़ने से ही हमारा मन साफ़ होता है और हम दृढ़ता से अपनी बात कह पाते हैं। ध्यान-साधना भी हमको वर्तमान में रहने में सहायक होती है, हमारी घबराहट को शांत करती है और आवाज में हो रहे कम्पन को दूर करती है। 

अपने अंदर हास्य-भाव बढ़ाएं : 

गलतियां हम सभी से होती हैं। उनके लिए अपने को फांसी पर चढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि आपसे अपने भाषण या प्रस्तुति में कोई गलती हो, तो आप स्वयं पर हंस सकते हैं। लेकिन, ध्यान रहे कि बहुत सारी गलतियां न हों जिससे कि आप उपहास के पात्र बन जाएँ। अपनी त्रुटियों को स्वीकार कर आगे बढ़ जायें। अपने आप से हमेशा सही होने की अपेक्षा रखना अपने प्रति अत्याचार है, कोई भी हमेशा सही नहीं होता। वास्तव में छोटी-मोटी कमियां कभी-कभी हमें और अधिक प्रिय बना देती हैं। 

नियमित रूप से योगासन, ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास करें। यह सभी आपकी सफलता में सहायक होंगे। योगासन से आपको विश्वास पूर्वक प्रस्तुति करने की सही मुद्रा सीखने को मिलेगी। यह आपको शरीर और मन का संतुलन भी प्रदान करेगी। प्राणायाम आपकी वाणी की धुन/तीव्रता को स्थिरता देने और नियंत्रण करने में सहायक होगा। ध्यान करने से आपका मन तनाव मुक्त होगा और आपको केंद्रित रखने में सहायक होगा। जीवन भर "मंच-भय से कैसे निपटें" सोचने से बेहतर है कि हम आगे बढ़कर जब जो करना है, वो करें। यहां शुतुरमुर्ग होना बेहतर है, गर्दन रेत में छुपा लेने से उसके लिए डर का अस्तित्व नहीं रहता।

आर्ट ऑफ़ लिविंग द्वारा प्रस्तुत हैप्पीनेस प्रोग्राम (Happiness Program) योगासन, ध्यान, सुदर्शन क्रिया और प्राणायाम का एक अतिसुंदर मिश्रण है। इस प्रोग्राम में आप आंतरिक और बाह्य शांति का अनुभव करते हैं।

इसके पश्चात आप स्वयं को किसी भी मंच के लिए तैयार पाएंगे, फिर चाहे वह वास्तविक रंगमंच हो या जीवन का रंगमंच।      

सुदर्शन क्रिया से तन-मन को रखें हमेशा स्वस्थ और खुश !

हमारा मुख्य कार्यक्रम हैप्पीनेस कार्यक्रम अब सच्ची ख़ुशी से कम में काम न चलायें !
सुदर्शन क्रिया से तन-मन को रखें हमेशा स्वस्थ और खुश !