महिषासुरमर्दिनी : माँ कनकदुर्गा
आदिशक्ति हैं माँ कनक दुर्गा :
‘दुर्ग’ अर्थात ऐसा कार्य या परिस्थिति, जो बहुत कठिन हो या फिर लगभग असंभव हो
| ‘दुर्गा’ अर्थात वह शक्ति जो आपको असंभव परिस्थियों को पार करने में सहायता करती हो | जो कुछ भी आपको कठिन और असम्भव लगे उसके लिए माँ दुर्गा से प्रार्थना करनी चाहिए | माँ दुर्गा, आपको दुखों के समंदर से दूर, आत्मा में स्थित करती हैं -गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
पुराणों के अनुसार माँ दुर्गा शाक्त परंपरा की मुख्य देवी हैं | शक्ति आराधना करने वाले भक्त, माँ दुर्गा को परम ब्रह्म मानते हैं। देवी दुर्गा का वर्णन आदिशक्ति और सृष्टि की परम -प्रधान प्रकृति के रूप में किया जाता है। दुर्गा, अंधकार व अज्ञानता रुपी आसुरी गुणों से सृष्टि की रक्षा करती हैं। माँ कनक दुर्गा, शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली आसुरी शक्तियों का विनाश कर धर्म की पुनर्स्थापना करती हैं |
महिषासुर का वध :
पौराणिक कथाओं के अनुसार, (वर्तमान में भारत के मैसूर नामक स्थान पर) महिषासुर नामक एक असुर रहता था। ऎसी किम्वदंती प्रचलित है कि महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। महिषासुर, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी का बहुत बड़ा भक्त था | कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप महिषासुर को ब्रह्मा जी से ये वरदान मिला था कि कोई भी देवता या दानव उस पर विजय नहीं प्राप्त कर सकता।
ब्रह्माजी से मिले वरदान के कारण महिषासुर बहुत अहंकारी हो गया था | उसने अपनी शक्तियों से स्वर्ग लोक, देवलोक और पृथ्वीलोक पर काफी उत्पात मचा रखा था । एक बार उसने स्वर्ग पर अचानक आक्रमण कर दिया और देवताओं के राजा इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया | उसके इस प्रकार के व्यवहार से त्रस्त होकर देवताओं ने त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश से सहायता के लिए प्रार्थना की । देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने अपने तपोबल से देवीशक्ति का ध्यान किया| देवताओं और त्रिदेवों की प्रार्थना सुनकर देवी, माँ कनक दुर्गा के रूप में प्रकट हुयीं | समस्त सृष्टि के देवताओं, देवदूतों ने अपनी सारी शक्तियां माँ दुर्गा को समर्पित कर दीं |
और माँ कनक दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक भीषण युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया।
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं- ‘महिषासुर वास्तव में हमारे जीवन की “जड़ता और आलस्य” का प्रतीक है | आलस्य हर प्रकार की रचनात्मकता निगल जाता है | आपके पास बहुत से सद्गुण हों, आप बहुत रचनात्मक हों, बहुत अच्छे वक्ता हों या फिर बहुत अच्छे प्रशासक हों; परन्तु यदि आपके जीवन में आलस्य है, तो फिर सब कुछ वहीं समाप्त हो जाता है |’
बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है विजयादशमी :
ऎसी कथा प्रचलित है कि माँ कनक दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के भीषण युद्ध के बाद महिषासुर का संहार कर, उस पर विजय प्राप्त की थी। हिन्दू धर्म के लोग इसे असत्य पर सत्य की विजय के उत्सव के रूप में मनाते हैं । इसीलिये इसे 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है ।
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी के अनुसार , “आत्मा को जानने के लिए अथाह शक्ति की आवश्यकता होती है | ज्ञान के प्रकाश की शक्ति से ही आप परिस्थितियों को वैसा देख पाते हैं, जैसी वे वास्तव में हैं ! यद्यपि दैवीय शक्तियां हमेशा आपके चारों ओर हैं ही परन्तु आतंरिक शक्तियों (दुर्गा शक्ति ) के जागरण से आप उन्हें अनुभव कर पाते हैं |
माँ दुर्गा हमारे भीतर की कुण्डलिनी ऊर्जा हैं , जब योग और ध्यान द्वारा भीतर की आतंरिक शक्ति जागृत हो जाती है , तो जड़ता और आलस्य समूल नष्ट हो जाते हैं | ऐसा नहीं है कि महिषासुर वध हज़ारों वर्ष पूर्व ,कभी किसी स्थान विशेष में घटित हुआ हो; यह घटना हमारे भीतर हर क्षण घटित हो रही है | सूक्ष्म जगत में कुण्डलिनी ऊर्जा , जड़ता और आलस्याआदि दुर्गुणों से युद्ध कर ही रही है और जब समस्त सृष्टि की ऊर्जा एकत्रित होकर इन दुर्गुणों का सामना करती है तो ये महिषासुर रूपी दुर्गुण उसी समय समूल नष्ट हो जाते हैं | सद्गुणों की दुर्गुणों पर विजय ही विजयादशमी है |
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में है माँ कनक दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर :
भारत के आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा नामक स्थान पर देवी दुर्गा का भव्य मंदिर स्थित है। मंदिर कृष्णा नदी के किनारे, इंद्रकीलाद्री पहाड़ी पर अवस्थित है | ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि माँ कनक दुर्गा ने यहीं इसी स्थान पर महिषासुर का वध किया था |
स्वयंभू है माँ कनकदुर्गा की प्रतिमा :
कनकदुर्गा मंदिर में, देवी की प्रतिमा स्वयं ही प्रकट हुई मानी जाती है|
कहा जाता है कि “यक्ष कीला” ने महिषासुर के अत्याचार से मानव जाति को मुक्ति दिलाने के लिए माँ दुर्गा की अनवरत साधना की। उनकी साधना से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने यक्ष कीला को वरदान दिया कि वे इन्द्रकिलाद्री नामक इस पर्वत पर सूर्य की आभा के समान हमेशा विद्यमान रहेंगी और भक्तों को आशीर्वाद देती रहेंगी । सूर्य के समान आभावान होने के कारण देवी का नाम “कनक दुर्गा” पड़ा ।
पंचगिरी पहाड़ियों पर माँ दुर्गा ने देवताओं को दिया था आशीर्वाद :
देवी भागवतम में ऐसा वर्णन मिलता है कि महिषासुर वध के पश्चात (वर्तमान में भारत के बैंगलोर में ) पंचगिरी पहाड़ियों पर, जहाँ आर्ट ऑफ़ लिविंग आश्रम स्थित है ; माँ कनक दुर्गा ने विश्राम किया था तथा सभी ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों , देवताओं और मनुष्यों को आशीर्वाद दिया था कि माँ सदा-सर्वदा सृष्टि की रक्षा के लिए मौजूद रहेंगी और जगत को आशीष देती रहेंगी |
नवरात्रि और दुर्गा पूजा का महत्त्व :
दुर्गा पूजा को दुर्गोत्सव या शरदोत्सव भी कहते हैं| दुर्गोत्सव दक्षिण एशिया में दस दिनों तक मनाया जाने वाला एक वार्षिक हिन्दू पर्व है, जिसमे अपार हर्ष और उल्लास के साथ, देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। इस पर्व के नौ दिन, देवी के नौ विशेष रूपों को समर्पित हैं, जिसमे देवी शक्ति की विभिन्न प्रकृति और गुणों की पूजा–अर्चना की जाती है । दुर्गा पूजा से सम्बंधित पखवाड़े को देवी पक्ष तथा देवी पखवाड़ा के नाम से जाना जाता है।
आइये इस नवरात्रि, स्वास्थ्य और अध्यात्म की यात्रा में, एक कदम और आगे बढ़ें | सीखें सुदर्शन क्रिया|
सुदर्शन क्रिया से तन-मन को रखें हमेशा स्वस्थ और खुश !
अब गुरुदेव की ज्ञान चर्चा, सत्संग, सुमधुर भजन और भी बहुत कुछ पायें सिर्फ एक क्लिक्क पर
आज ही डाउनलोड कीजिये "आर्ट ऑफ़ लिविंग एप"
![](/sites/www.artofliving.org/files/styles/blog_promoted_featured/public/landing_pages/lp_blog_promoted_image/fasting_5.jpg?itok=gAnG7uA9)
नवरात्रि में उपवास का महत्व
आयर्वेद के अनुसार उपवास करने से जठराग्नि प्रज्वलित होती है।
![](/sites/www.artofliving.org/files/styles/blog_promoted_featured/public/landing_pages/lp_blog_promoted_image/Vaishno-Devi---Thumbnail---.jpg?itok=80zXwn97)
वैष्णो देवी
वैष्णो देवी भारत की सबसे अधिक पूजी जाने वाली देवियों में से हैं | माँ वैष्णो को माँ पार्वती का स्वरुप माना जाता है|
![](/sites/www.artofliving.org/files/styles/blog_promoted_featured/public/landing_pages/lp_blog_promoted_image/Thumbnail--kanak%20durga.jpg?itok=dhbA5Zb2)
आदिशक्ति हैं माँ कनक दुर्गा
दुर्गा’अर्थात वह शक्ति जो आपको असंभव परिस्थियों को पार करने में सहायता करती हो |
![](/sites/www.artofliving.org/files/styles/blog_promoted_featured/public/landing_pages/lp_blog_promoted_image/Thumbnail--Mansa-devi.jpg?itok=krXLoNL2)
भगवान शिव की नाभि से निकले कमल पर आसीन हैं त्रिपुरसुन्दरी
ऎसी मान्यता है कि देवी के इस स्वरुप का ध्यान करने से मन शांत रहता है तथा भक्तों की मनचाही कामना पूरी होती है |
![](/sites/www.artofliving.org/files/styles/blog_promoted_featured/public/landing_pages/lp_blog_promoted_image/Thumbnail--about%20navratri.jpg?itok=cHHEm0iV)
नवरात्रि : स्त्रोत की ओर एक यात्रा
नवरात्रि का त्योहार अश्विन (शरद) या चैत्र (वसंत) की शुरुआत में प्रार्थना और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
![](/sites/www.artofliving.org/files/styles/blog_promoted_featured/public/landing_pages/lp_blog_promoted_image/Thumbnai---Lalitha-Sahasranamam.jpg?itok=XtS5qpoB)
ललिता सहस्रनाम
ललिता सहस्रनाम 'ब्रह्माण्ड पुराण' से लिया गया है। ललिता सहस्त्रनाम तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है|
![](/sites/www.artofliving.org/files/styles/blog_promoted_featured/public/landing_pages/lp_blog_promoted_image/Thumbnail--.jpg?itok=CXukDtAS)
नवरात्रि को सही रूप में कैसे मनाएं
नवरात्रि आपकी आत्मा के विश्राम का समय है। यह वह समय है जिसमें आप खुद को सभी क्रियाओं से अलग कर लेते हैं और खुद में ही विश्राम करते हैं।
![](/sites/www.artofliving.org/files/styles/blog_promoted_featured/public/landing_pages/lp_blog_promoted_image/Thumbnail---mantra.jpg?itok=GFQhvLnN)
मन्त्रों का महत्व
आमतौर पर लोग मंत्रो को मात्र कुछ शब्दों की तरह देखते हैं परन्तु वो यह नहीं जानते की इन मन्त्रों की तरंगों में बहुत ताकत होती है।