परिवर्तनशील - समय, मन एवं घटनाएं
समय, मन और घटनाएं - ये तीनों आपस में गहराई से जुड़ी होती हैं। और ये तीनों ही स्थायी नहीं हैं, बदलती रहती हैं।समय, मन और घटनाओं में हर समय परिवर्तन होता रहता है।
जब मन घटनाओं में अटक जाता है, तो दुःख आता है। यदि मन समय के साथ बहता रहता है तो यह तरोताजा और जीवंत रहता है।
समय और घटनाओं की प्रवृत्ति मन से जुड़ जाने की होती है। जैसे कि हमारा जन्मदिन। हर साल जब वो तिथि आती है तो हमें याद आ जाता है कि ‘ओह आज तो मेरा जन्मदिन है!’
उत्सव एक प्रकार से समय के ऊपर आरोपित/या थोपी गई घटनाएं हैं। उदाहरण के लिए क्रिसमस, बुद्धपूर्णिमा या गुरुपूर्णिमा समारोह-ये सभी मन द्वारा एक ख़ास समय पर निर्धारित कर दी गई घटनाएं हैं। ये मन ही है जो याद रखता है कि ‘आज बुद्धपूर्णिमा है।’
चाहे कोई उत्सव हो या कोई बुरी स्मृति, मन उन घटनाओं में अटक ही जाता है।
9/11 – उस दिन एक घटना घटी, और फिर वह घटना उस ख़ास तिथि और समय के साथ आरूढ़ हो गई है। हर साल जब हम 9/11 या 26/11 को याद करते हैं तो हम बीती हुई पुरानी बातों में अटक जाते हैं।
इसी तरह राष्ट्रीय दिवस भी हैं। 1 जुलाई को कनाडावासी कहते हैं कि ये उनका राष्ट्रीय दिवस है, जबकि अमेरिकियों के अनुसार 4 जुलाई को उनका राष्ट्रीय दिवस है। इसी प्रकार भारतवासियों का स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को आता है। मन घटनाओं को समय के साथ जोड़ देता है। यह जोड़ (संबंध) सुखदायक या दुखदायक हो सकता है।
अप्रिय घटनाओं को छोड़कर आगे बढ़े
सुखदायक घटनाएं मन में ज्यादा देर तक नहीं ठहरती, परंतु दुखदायक घटनाएं मन पर एक छाप छोड़ जाती हैं जो कि लम्बे समय तक ठहरती हैं। अब सवाल ये उठता है कि इन सब में ज्ञान का क्या स्थान है? ज्ञान, हमारे मन को नॉन- स्टिकी अर्थात सब छोड़ देने वाला, जिस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, बना देता है।
क्या आपने नॉन-स्टिक फ्राइंग पैन, जिसमें हम पैनकेक बना सकते हैं, देखा है? जब ये नॉन-स्टिक पैन नहीं थे, तब भी लोग पैनकेक तो बनाते ही थे। पैनकेक बर्तन में चिपक जाया करते थे और फिर हर बार बर्तन से छुड़ाने में उन्हें अच्छी- खासी मशक्कत करनी पड़ती थी। इस बर्तन को अगले प्रयोग के लिए तैयार करने हेतु इसे साफ़ करने वाले व्यक्ति को काफी काम करना पड़ता था।
घटनाएँ भी पैन में चिपक जाने वाले पैनकेक की ही तरह होती हैं। अब जरा कल्पना करें (मन को ध्यान में रखते हुए) कि यदि हम पैन को साफ़ ही न करें, और दिन प्रतिदिन उसी पैन में पैनकेक बनाना और खाना जारी रखें! हे भगवान्! ये कितना अस्वास्थ्यकर है!
वर्षों से हम उसी पैन का प्रयोग कर रहे हैं। पैन का एक तरफ का हिस्सा चिपके हुए पैनकेक के कारण बुरी तरह से जला हुआ है और हमने पैन को साफ़ नहीं किया है इसलिए उसमें से बदबू आती है। फिर भी हम पैनकेक (अपने आप को कष्ट देने वाले) बनाना जारी रखते हैं और दूसरों को भी ये पैनकेक परोसते रहते हैं (इससे दूसरों को भी कष्ट होता है)।
यही सब हो रहा है। हम अपने मन को नॉन-स्टिक पैन बनाना भूल ही गए हैं।
जीवन में ज्ञान की भूमिका
ज्ञान ही है जो हमारे मन से घटनाओं को निकाल कर हमें समय के साथ चलने में सहायता करता है।
कल्पना करें कि एक नदी है जिसमें कुछ पत्थर और कीचड़ (गाद) हैं। कीचड़ के इन छोटे-छोटे टुकड़ों में पानी ठहर जाता है तो फिर क्या होता है? तो इसमें फंगस लगता है और काई जमने लगती है और पानी स्वच्छ, शुद्ध और ताजा नहीं रह पाता। ऐसा एक ही स्थान पर पानी के रुक जाने के कारण होता है।
जब नदी बहती है (जब हम भूतकाल को छोड़ देते हैं), तो पानी (मन) स्वच्छ और शुद्ध रहता है; पानी उन पत्थरों और कीचड़ से ऊपर उठ के समुद्र की तरफ दौड़ पड़ता है।
मन भी इसी तरह है-यह कुछ घटनाओं में अटक जाता है। यह बहुत देर तक अटक कर नहीं रह सकता; इसे कहीं न कहीं तो आगे बढ़ना ही होता है, ठीक है न? चाहे सुखदायक की ओर या दुखदायक की ओर। ज्ञान हमें समय से और समय की सहायता से आगे बढ़ने में मदद करता है।
समय से परे देखना
2023 में जो भी घटनाएँ हुईं, वो सब समाप्त हो चुकी हैं। उनमें से कुछ अच्छे दिन थे और कुछ बुरे; कुछ सुखदायक दिन थे, कुछ सार्थक और कुछ दिन ऐसे थे जब हमने कुछ भी नहीं किया। जिस दिन हमने कुछ भी नहीं किया, उस दिन ने हमारे मन पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ा क्योंकि उन दिनों कुछ भी सार्थक नहीं घटा था। बाकी के दिनों का प्रभाव हमारे मन पर पड़ा क्योंकि हमें लगता है कि उन दिनों में कुछ न कुछ सार्थक घटा। ज्ञान हमें यह अहसास दिलाता है कि कुछ भी सार्थक नहीं है, या सबकुछ, कुछ नहीं है।
क्या हम जानते हैं कि सुखदायक क्षण हमें दुखदायक क्षणों से ज्यादा दुखी करते हैं? सुखदायक क्षण हमें ज्यादा दुखी करते हैं क्योंकि अब वे जा चुके हैं।
दुखदायक क्षणों की सहायता से समय हमें हील करता है। लेकिन समय, सुखदायक क्षणों की चाह लम्बे समय तक हमारे भीतर बनाए रखता है; इससे हील होने/निकलने में हमें काफी समय लग जाता है। सुखदायक क्षणों की छाप हमारे भीतर लालसा को जन्म देती है और लालसाएं आसानी से नहीं मिटती हैं।
इसीलिए ज्ञानी व्यक्ति सभी घटनाओं को दुखदायी मानते हैं-क्योंकि चाहे सुखदायक हों या दुखदायक, वे सभी जा चुके हैं।आप क्या कहते हैं? लगभग सभी लोग इस विषय पर मुझसे सहमत होंगे?
समर्पण की कला
मजे की बात यह है कि हमारा मन घटनाओं को छोड़ना ही नहीं चाहता।
हाल ही में, एक सज्जन आर्ट ऑफ़ लिविंग टीचर बनें। एक बार आर्ट ऑफ़ लिविंग टीचर बन जाने के बाद अपने आप पर तरस खाने (self-pity) की इजाजत नहीं है। यदि हम अपने आप पर ही तरस खाते रहेंगे तो दूसरों के जीवन में खुशियाँ कैसे लाएंगे? यदि कोई डाक्टर खुद ही बुरी तरह से बीमार है, तो वह हमारी चिकित्सा कैसे करेगा? असंभव।
यह व्यक्ति दूसरों से दया और करुणा की चाह रखने के आदी थे। इससे उन्हें बहुत अच्छा लगता था। लोग भी उन्हें खूब अटेंशन (ध्यान) दिया करते थे और उनसे सहानुभूति रखा करते थे। टीचर बनने के बाद ये एक प्रकार से विरोधाभास ही था-अपने दुखों के लिए दूसरों द्वारा व्यक्त सहानुभूति से मिलने वाले सुख को छोड़ देना बहुत ही मुश्किल है।
मैं ये सब क्यों कह रहा हूँ ? क्योंकि मैं आपको दिखाना चाहता हूँ कि मन कैसे काम करता है। मन दुखदायक बातों पर अटकना चाहता है क्योंकि इससे उसे कुछ अटेंशन (ध्यानाकर्षण) मिलता है। जब लोग हम से करुणा व्यक्त करते हैं तो कहीं न कहीं हमें कुछ आनंद मिलता है।
बचपन से ही हम ये अटेंशन (ध्यान) पाते आ रहे हैं। जब बच्चा रोना शुरू करता है तो सभी उसके पास आ के उसे अटेंड करने लगते हैं। वे बच्चे से कहते हैं, ‘मत रो’ और बच्चा लोलीपोप या जिस खिलौने के लिए रो रहा था, वो पा जाता है। इसी तरह से ये बात हमारे भीतर बैठ जाती है कि यदि हम शोर मचाएंगे और दुखी होएँगे, तो जो हम चाहते हैं वो हमें मिल जाएगा।
ये सभी घटनाएं हमारे मन पर प्रभाव छोड़ती हैं। बुद्धिमानी इसमें है कि हम इन सभी प्रभावों से छूट जाएँ। जब हम सभी प्रकार के प्रभावों से बाहर निकल जाते हैं तो हम समय के साथ चलने लगते हैं। वास्तव में हम समय से भी आगे निकल जाते हैं-यही ज्ञान है।
हर दिन को साल के नए दिन की तरह मनाएं
इस नए साल पर अपने मन को नॉन-स्टिक पैन की तरह बनाएं, और अपने नए और ताजे पैनकेक का आनंद उठाएं।और इस बारे में भी बिलकुल न सोचें की भूतकाल में आपने अपने पैन को कभी साफ़ नहीं किया; यह भी बीत चुका है। इस तरह से हमारे लिए हर दिन साल का नया दिन है-हर दिन उत्सव है। आज, आज है। इससे कैलेण्डर और किसी अन्य गणना का कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता।
जब हम प्रसन्न होते हैं तो हमें अनुभव ही नहीं होता कि हमारी आयु बढ़ रही है। हम अनुभव ही नहीं करते कि समय धीरे-धीरे व्यतीत हो रहा है। हमें समय का पता ही नहीं चलता-चाहे हजारों वर्ष बीत जाएँ ; न कोई हमें स्पर्श करता है, न स्पंदित, और न हम भविष्य की सोचते हैं। और यदि भविष्य की सोचते भी हैं, तो समय बड़ी तेजी से भागने लगता है। जब समय तेजी से भाग रहा होता है, तब भी यह रुका हुआ ही है।
सुबह-सुबह जब हम सो के उठें तो थोड़ी देर के लिए केवल बैठे रहें और महसूस करें कि समय कितना स्थिर है। जब समय रुक जाए तो यह ध्यान (मेडिटेशन) की स्थिति होती है।
जब समय तेजी से भागता है तो हमें इसका आभास नहीं होता; तो ये कर्मयोग है। और जब समय ठहर जाए तो ध्यान योग (मेडिटेशन) है।
यदि हमें, समय के ठहरने का पता ही न चले, हम हर समय भागते और दौड़ते ही रहें तो हम अवसादग्रस्त हो जाएँगे।हमारे भीतर इन दोनों को अर्थात भागते रहने और ठहर जाने का आनंद उठाने की अद्भुत क्षमता होती है। हम जैसे-जैसे बड़े/प्रौढ़ होते हैं, हमारे शरीर की भी अपनी सीमाएं बनने लगती हैं। यदि हमारे भीतर कुछ देर के लिए भी स्थिर रहने और इस स्थिरता का आनंद उठाने की क्षमता नहीं है तो हम ऊब (बोर होना), अस्त-व्यस्त/भ्रमित और अवसादग्रस्त महसूस करेंगे। ऐसा तथाकथित उन सभी बहुत सक्रिय लोगों को होता है जब उनका शरीर, उन्हें और सक्रीय रहने की इजाजत नहीं देता और वे स्थिर भी नहीं रह सकते।
यहाँ पर हमारा मन समय के साथ नहीं चलता। इसलिए हमारा मन समय के साथ रहना चाहिए। जब मन समय के साथ चलता है तब ही यह स्थिर रह सकता है।
यह वर्ष सबके लिए ज्ञान भरा हो
यह वर्ष को सभी के लिए ज्ञान भरा हो। ज्ञान के साथ प्रसन्नता आती है। हमें, सबको विशेषरूप से नए साल की शुभकामनाएँ देने की जरुरत नहीं है ; प्रसन्नता ज्ञान के साथ आती है। यदि ज्ञान से प्रसन्नता नहीं आए तो कोई और प्रसन्नता ला ही नहीं सकता। ज्ञान वास्तविक और परम सुख लाता है। अतः सभी को ज्ञान भरे वर्ष की शुभकामनाएं दें।
- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित