संस्कृति

लोहड़ी - प्रथा, त्यौहार और उत्सव

वो सब जो लोहड़ी के बारे में आप जानना चाहते हैं

साल का वो समय

जब हर तरफ़ ढोल की आवाज़

भंगड़ा और गिद्दे के थाप की गूंज होती है

आएं सब एक साथ मिलकर लोहड़ी का पर्व मनायें

लोहड़ी का पर्व भारत का एक समृद्ध और विविधता का पर्व है, जैसे देश भर में 01 जनवरी को नया साल के उत्सव मनाया जाता है, ठीक वैसे ही उत्तर भारत में, ख़ास तौर पर पंजाब में यह पर्व किसान के कठिन परीश्रम एवं रबी की फ़सल, ख़ासकर गेहूँ की फ़सल कटने का उत्सव है। लोहड़ी के बाद से सर्दियाँ कम होना शुरू हो जाती हैं और धीरे धीरे दिन लंबे और गरम होना शुरू हो जाते हैं।

लोहड़ी कब है?

अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष माह, जो की वर्ष का सबसे ठंडा महीना होता है, उस के आखरी दिन लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। पुरातन काल में, जब सर्दियाँ अपनी शिखर पर होती थी और जो रात सबसे लम्बी रात होती थी उस दिन लोहड़ी का पर्व मनाया जाता था। मगर आज के समय में, यह पर्व उत्तरायण – जब सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ना शुरू करता है, की पूर्व संध्या पर मनाया जाता है। 

लोहड़ी के अगले दिन माघ माह की शुरुआत होती है और पंजाब में इसे माघी के नाम से जाना जाता है। जहाँ तमिलनाडु में इस दिन को पोंगल के रूप में मनाया जाता है, वहीं कर्नाटक, केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड में इस दिन को मकर सक्रांति के तौर पर मनाया जाता है।

लोहड़ी कौन मानते हैं?

लोहड़ी ज़्यादातर भारत में पंजाब और हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू के कुछ हिस्सों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू और सिख मिलकर इस त्यौहार को देशभर में महते हैं। आज के दौर में आप देश के कई हिस्सों में देखेंगे की होलिका के चक्कर लगाते हुए लोग भंगड़ा – गिद्दा करते हुए, लोहड़ी का पर्व मानते हैं।

हम लोहड़ी क्यूँ मानते हैं?

साल के इस समय रबी की फ़सलों की कटाई की जाती है और फ़सल पकने की ख़ुशी में किसान वर्ग जमकर इस पल का जश्न मनाते हैं। सभी किसान भाई जो बड़ी मेहनत और श्रम से कई महीनों तक रबी की खेती की, वे सभी सूर्य देव के प्रति अपनी कृतज्ञता को जताते हैं। सूर्य से धुप और तेज की प्राप्ति होती है, सूर्य की उषणता से ही अच्छी फ़सल प्राप्त होती है। इस के प्रति धन्यभागी होते हुए सब मिलकर उन की अराधना करते हैं।

अन्न के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हम सब लोग किसान भाइयों के ऋणी हैं, जो अनाज हम खाते हैं वो हमें उनके कठिन परिश्रम से ही प्राप्त होता है। यह पर्व किसान भाइयों के लिए सम्मान और मान्यता का प्रतीक है, यह त्यौहार उस समृध्दता के उत्सव में मनाया जाता है।

लोहड़ी के दिन क्या करें?

यह साल का पहला त्यौहार होता है –

  • इस दिन आप घरों में बच्चों और बड़ों को शाम को होने वाले कार्यक्रम के लिए भंगड़े या गिद्दे का अभ्यास करते हुए पाएंगें
  • आप को दिन भर ख़ासकर रात के समय ढोल, ताशे और स्पीकर पर पंजाबी गीतों की आवाज़ सुनाई देगी
  • रात के समय चोक – चौराहों पर होलिका देखी जा सकती है, लोग उसमें रेवड़ी, मक्के के भुने हुए चने (पॉपकॉर्न) को डालते हुए देख सकते हैं

लोहड़ी कैसे मनाई जाती है?

  • लोग पवित्र जल में स्नान करके अपने पाप धोते हैं
  • इस दिन लोग जो भी उन्हें मिला है उसके प्रति धन्यभागी महसूस करते हैं और दान करते हैं

  • बच्चे घर घर जाकर गाने गाते हैं और शाम को होने वाले होलिका के लिए चंदा इकठ्ठा करते हैं

  • सरसों का साग, मक्की की रोटी और गुड़ की खीर, इस दिन का अहम व्यंजन होता है

  • इस दिन शाम के समय नाश्ते में फुल्ली (भुने हुए मक्के के दाने), गुड़, मूंगफली और गजक का सेवन किया जाता है

लोहड़ी की होलिका

“पुरानों के लिए पुरानी, नयों के लिए आज भी नई”

  • लोहड़ी का सबसे रोमांचक पल होता है, जब घरवाले, रिश्तेदार, दोस्त सब एक साथ शाम ढलने के बाद होलिका का दहन करते हैं। होलिका का गर्म अलाव लोहड़ी की सर्द रात को और खूबसूरत बना देता है, सभी वर्ग के लोग इसके गिर्द फेरी लगाते हैं।
  • लोहड़ी से कई दिनों पहले से लोग लकड़ियाँ, सूखे पत्ते और पुराने कपड़े इकट्ठे करके रखते हैं।
  • पंजाब के कुछ गांवों में लोग गाय के गोबर से लोहड़ी की देवी की प्रतिमा बनाते हैं। फिर उसका लकड़ी से दहन होता है, जिसे हम होलिका के रूप में जानते और पूजते हैं।

  • इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और पंजाब का लोक नृत्य भांगड़ा और गिद्दा करते हैं। सब मिलकर लोहड़ी के गीत गाते हैं।

  • गन्ना, मिठाई, मूंगफली और चिवड़े को होलिका में डालकर, अग्नि देव को आहुति दी  जाती है। कई जगह इनको लोहड़ी के प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है।

  • लोहड़ी की होलिका के दहन के मानी यह है कि, हम उन परंपरागत रूढ़िवादिता को छोड़कर प्रगतिशील और अच्छे विचारों का स्वागत करें, अपने सभी भाई बंधुओं की खुशाली के लिए प्रार्थना करें। हिंदू परंपरा में शादी के समय अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लिए जाते हैं। अग्नि में बहुत प्राण ऊर्जा होती है इसीलिए त्यौहारों के समय में उसे बहुत पवित्र माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है।

लोहड़ी के उद्गम की कहानी

हर त्यौहार की तरह ही, लोहड़ी के त्यौहार की भी अपनी एक कहानी है:

  1. ऐसा कहते हैं की यह त्यौहार आग के देवता यानि अग्नि देव और सूर्य देव की पूजा – अर्चना का दिन होता है।
  2. फिर, दुल्ला भट्टी की भी कहानी काफ़ी प्रसिद्ध है। अकबर के ज़माने में (कुछ जहाँगीर के ज़माने में कहते हैं) एक मुस्लिम डाकू हुआ करता था जिसका नाम था, दुल्ला भट्टी। उसने हिंदू युवतियों को अरब शेख़ के हाथों बचें जाने से बचाया करता था और फिर धूमधाम से हिंदू लड़कों से उन युवतियों की शादी अग्नि के फेरे लगवाकर करवाया करता था। यहाँ से लोहड़ी की होलिका दहन की शुरुआत होती है। सुंदरी और मुंदरी, नामक दो ब्राह्मण युवतियों जिनको दुल्ला से बचाया था, की कहानी लोकगीतों में बड़े चाव से आज भी गाई जाती है।
  3. दूसरी कहानी यह है की होलिका और लोहड़ी दो बहनें थीं। होली के समय होलिका का दहन हो गया जबकि, लोहड़ी बच गयी।
  4. ऐसा कहा जाता है की, “लोह” का मतलब होता है रौशनी या अग्नि की तपिश, तो लोहड़ी शब्द का उद्गम यहाँ से हुआ है।
  5. इस त्यौहार के रोज़ “तिल” और “रोरही” (गुड़) खाया जाता है इसीलिए इसे तिलोहड़ी भी कहा जाता था, जिसे अब लोहड़ी कहकर पुकारा जाता है।

लोहड़ी के ख़ास रिवाज

1. शादी के बाद की पहली लोहड़ी

  • लड़की के ससुराल पक्ष वाले नवविवाहित जोड़े को अपने घर खाने पर बुलाते हैं और एक भव्य भोज का आयोजन किया जाता है
  • नवविवाहित लड़की इस दिन दुल्हन की तरह सजती और संवरती है। वो पारंपरिक परिधान ज़ेवर, चूड़ा, बिंदी, नथनी, बालियाँ, अंगूठी, कमरबंद, पायल, बिछुए पहनती है। हाथों में मेहंदी लगती है और चंदन का इत्र भी लगाती है।

  • नवविवाहित जोड़ा स्टेज पर बैठता है और परिवार वाले और सभी मित्रगण उनको बधाईयाँ और उपहार देते हैं।

  • परम्परानुसार, ससुराल पक्ष के लोग भी नयी दुल्हन को कपड़े और ज़ेवर भेंट करते हैं।

2. घर आये नए मेहमान की पहली लोहड़ी

  • नवजात शिशु का आगमन वैसे भी हर्षौल्लास का विषय होता ही है, लेकिन लोहड़ी के समय इस ख़ुशी को चार चाँद लग जाते हैं, जब सब मिलकर लोहड़ी की ख़ुशी मानते हैं।
  • नाना-नानी, दादा-दादी बच्चे पर अपना आशीर्वाद देते हैं

  • रिश्तेदार और सभी जान पहचान वाले भी नवजात शिशु और माता पिता को बधाई देने आते हैं

तो, जैसा की आप सभी ने अब तक जान ही लिया होगा ही साल की शुरुआत लोहड़ी के उत्सव से मनाकर, हम पूरे साल हर्षौल्लास के साथ रह सकते हैं। सभी दोस्त, रिश्तेदार सब मिलकर इस पर्व को मनाए, अगर शारीरिक रूप से न भी मिल पा रहे हों तो, विडियो कॉल के माध्यम से ही अपने बंधू बांधवों के संग इस त्यौहार को अवश्य मनाए।

और सबसे अच्छी बात यह है, अगले दिन आप मकर सक्रांति और पोंगल का भी उत्सव मना सकते हैं।

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