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उपनिषद

उपनिषद का अर्थ है, निकट बैठना - गुरु के निकट बैठना

उपनिषद क्या हैं?

संस्कृत में उपनिषद का अर्थ है, निकट बैठना - गुरु के निकट बैठना,ना केवल शारीरिक रूप से,बल्कि मानसिक रूप से भी।यह इस बात को दर्शाता है कि सीमित, अनंत के निकट हो रहा है। ज्ञात, अज्ञात की ओर पहुंच रहा है। उपनिषद् युगों पहले गुरु और शिष्य के बीच हुए संवाद हैं। गुरु ज्ञान का अवतार हैं और शिष्य उस आध्यात्मिक साधक को दर्शाता है,जो ज्ञान के निकट आने के लिए उत्सुक है।

श्री श्री रविशंकर द्वारा वार्ता

आज लगभग 100 उपनिषद उपलब्ध हैं जिनमें से 11 उपनिषदों को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।अब तक श्री श्री ने चार उपनिषदों पर वार्ताएं दी हैं।

ईशावास्य उपनिषद

श्री श्री रविशंकर जी द्वारा दिए गए उपनिषदों के प्राचीन ज्ञान का अनुभव करें। सभी उपनिषदों में ईशावास्य उपनिषद सबसे माननीय उपनिषद है। अन्य सभी उपनिषदों में ईशावास्य उपनिषद के छंदों पर संक्षिप्त वार्ताएं दी गई हैं। इसमें बहुत सारे संकेत दिए गए हैं जो इस बात के लिए अद्वितीय अन्तर्दृष्टि प्रदान करते हैं कि हम वास्तव में कौन हैं। इसमें आत्मा और दृश्य एवं अदृश्य जगत, दोनों का रहस्यमय वर्णन किया गया है।

कठोपनिषद  के कुछ अंश देखें

 

श्री श्री द्वारा दी गई वार्ता के कुछ अंश

"यह अस्थाई मृत्युलोक है। यहां सबकुछ नष्ट हो जाता है और सबकुछ बदल जाता है। क्या आप सूक्ष्म जगत की ऊर्जा का अनुभव करते हैं,ऊर्जा का वह उप परमाणविक स्तर,जो कभी नहीं बदलता है? ये सभी मानव शरीर अलग - अलग हैं लेकिन यहां ऊर्जा का एक ही क्षेत्र है,एक ही मन है,जो सबमें प्रवाहित होता है। क्या आप इस बात का अनुभव करते हैं कि वह एक ही है,जो सबमें मौजूद है? क्या आप एक ही चेतना का अनुभव करते हैं?" श्री श्री रविशंकर
"अपने वास्तविक स्वभाव में आप उसी क्षण मुक्त हो जाते हैं,जब आप यह देखते हैं कि जो हो रहा है,वह आपमें घटित नहीं हो रहा है। यदि आपको दर्द हो रहा है,तो इस बात पर ध्यान दीजिए कि यह आपके शरीर में हो रहा है। यदि आपके मन में कठोरता या आनंद है,तो इस बात पर ध्यान दीजिए कि मन कठोर,दुखी,अप्रसन्न या प्रसन्न है। इस बात पर ध्यान दीजिए कि आप आनंद नहीं ले रहे हैं,यह कहीं और हो रहा है। यह घटना कहीं और हो रही है।" श्री श्री रविशंकर
"यदि आपमें मुक्त होने की छोटी सी इच्छा भी जागृत हो तो आपको अपनी पीठ थपथपानी चाहिए,आप बहुत भाग्यशाली हैं।इस धरती पर अरबों लोगों को यह आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है। वे जीते भी नहीं हैं। वे अस्तित्व में आते हैं, मर जाते हैं और विलीन हो जाते हैं। वे ऊबते नहीं हैं।यदि वे ऊब भी जाते हैं तो बहुत छोटी सी चीज़ से ऊब जाते हैं। एक छोटा सा बदलाव उन्हें फिर से आराम देने लगता है। वे लोग बहुत भाग्यशाली हैं,जो ऊब जाते हैं!" श्री श्री रविशंकर
पाठकों के अनुभव