नवरात्रि का महोत्सव आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र का सबसे बड़ा उत्सव है जिसे हर वर्ष मनाया जाता है| इसमें हजारों लोग भाग लेते हैं। नौ दिनों तक प्राचीन वैदिक पूजाओं का आयोजन सुनिश्चित समय के अनुसार किया जाता है और इस दौरान इस वातावरण में हर व्यक्ति को अलौकिक अनुभूति होती है।
आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र की वेद अगमा संस्कृत महा पाठशाला के प्रिंसिपल होने के नाते, श्री ए.एस.सुन्दरमूर्ति शिवम पर बहुत कुछ निर्भर है, क्योंकि ये ही इन पूजाओं के मुख्य पंडित हैं।
आप पंडितों के परिवार से आये हैं और अभी तक 1005 कुम्भाभिशेकं और 2100 से ज्यादा चंडी होमा का आयोजन पूरे विश्व में कर चुके हैं। यह आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में सन् 1994 से नवरात्रि यज्ञों का आयोजन कर रहे हैं। प्रस्तुत हैं कुछ प्रश्नों के गहन उत्तर, खुद मुख्य पंडित जी के शब्दों में –
प्रश्न: आर्ट ऑफ़ लिविंग नवरात्रि की पृष्ठभूमि क्या है?
उत्तर: नवरात्रि के दो मुख्य प्रकार होते हैं। एक वह, जो अप्रैल में चैत्रपक्ष में आती है। इसे ‘वसंत नवरात्रि’ कहते हैं और यह मुख्यतः उत्तर भारत में मनाई जाती है। दक्षिण भारत में ‘शरण नवरात्रि’ मनाई जाती है, जो सितम्बर-अक्टूबर के महीने में अश्विजापक्ष में आती है।
आर्ट ऑफ़ लिविंग में, पूज्य गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी के आशीर्वाद से शरण नवरात्रि मनाई जाती है, जिसे पृथ्वी के प्रत्येक जीव के लाभ, शांति और समृद्धि के लिए मनाया जाता है। दिव्य आशीर्वाद का आह्वाहन किया जाता है जिससे सभी लोगों में ज्ञान और निम्नलिखित तीन शक्तियों का उदय होता है –
- इच्छा शक्ति – आत्म बल
- क्रिया शक्ति – सही कर्म करने की शक्ति
- ज्ञान शक्ति – सही कर्म का ज्ञान
प्रश्न: हम देखते हैं कि पूजा मंडप में सभी कुछ निर्धारित समय पर ही होता है| नवरात्रि में समय का क्या महत्व है?
प्रश्न: नवरात्रि पूजा की तैयारी किस प्रकार की जाती है - इसपर कृपया कुछ प्रकाश डालें?
उत्तर: नवरात्रि के आखिरी पांच दिनों में, अर्थात षष्टी तिथि (छंटा दिन) से पूजाओं का आयोजन किया जाता है।
इन पूजाओं की तैयारी इस प्रकार की जाती है –
- सबसे पहले पूजा सामग्री इकठ्ठा की जाती है – द्रव्य संग्रहण और कितनी मात्रा में चाहिये – द्रव्य प्रमाण। यह सामग्री मुख्यतः केरला, हिमाचल प्रदेश और जम्मू से लाई जाती है।
- दूसरा मुख्य काम है – यज्ञशाला को तैयार करना, जिसे यज्ञशाला लक्षण के अनुसार किया जाता है| इस प्रक्रिया को ‘यज्ञशाला निर्मनांड मंडल लेपन’ कहा जाता है। इन में से कुछ मंडल हैं जैसे गणेश मंडल, वास्तु मंडल, नवग्रह मंडल और सुदर्शन मंडल। पंचभूत अर्थात पाँचों तत्वों की पूजा की जाती है। कलश में जल तत्व, हवनकुंड में अग्नि तत्व, मन्त्रों के जाप से वायु तत्व और मंडलों द्वारा पृथ्वी तत्व की पूजा की जाती है। ये सभी पूजा आकाश तत्व में होती है।
- उसके बाद पंचासन वेदिका – जिस मंच पर चंडी यज्ञ के मुख्य कलश की स्थापना होती है। इस मंच की नींव कूर्मासना (कछुआ, जो स्थिरता का प्रतीक है), उसके ऊपर अनंतासना (सर्प, जो सजगता का प्रतीक है)। इसके ऊपर सिंह (जो वीर्य का द्योतक है)। उसके ऊपर योगासन (आठ सिद्ध पुरुषों की मूर्ति जो अष्टांग योग का प्रतीक हैं)। उन सबके ऊपर पद्मासना (कमल जो बुद्धत्व का प्रतीक है, पूर्ण विकसित चेतना का प्रतीक है)। सबसे ऊपर कलश की स्थापना होती है, जिसमें जल भरा होता है, और इसके अन्दर देवी माँ का आह्वाहन किया जाता है।
- इन कलशों को तैयार करने के लिए इनमें पवित्र नदियों का जल और औषधीय जड़ी-बूटियाँ भरी जाती हैं। कलशों के ऊपर धागे बांधते हैं। कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे जाते हैं और इन पत्तों के ऊपर नारियल रखा जाता है, जिसे चन्दन, कुमकुम, दर्भा घास और कुछ विशेष सुगन्धित पुष्पों से सजाया जाता है।
- यज्ञ के शुरू होने से पहले, भूमि की पूजा अर्थात, वास्तुपूजा करी जाती है। साथ ही यज्ञशाला के चारों ओर नौ प्रकार के खाद्य अनाज बोते हैं, और अंकुरार्पणं किया जाता है। यह खाद्य अनाज और किसानों के सम्मान में किया जाता है। यह प्रार्थना भूमि की उपजाऊता को बढ़ाने के लिए करते हैं।
- होमा कुंड की तैयारी – होमा कुंड को यज्ञशाला की पूर्व दिशा में बनाते हैं। हमारे आश्रम में चंडी होमा के लिए पद्म कुंड का निर्माण होता है। एक और अन्य प्रकार का कुंड होता है जिसे योनी कुंड कहते हैं। आप किस प्रकार का कुंड बना रहे हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि आप आहुति में कितनी मात्र में द्रव्य समर्पित कर रहे हैं। चतु स्तंभ पूजा अर्थात चार खम्बे (धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ईश्वर) की स्थापना अन्दर की ओर होती है। बाहर की ओर षोडशः स्तंभ पूजा अर्थात 16 खम्बे खड़े किये जाते हैं, जो मानव जीवन के 16 आयाम के प्रतीक हैं।
- अष्टध्वज या आठ झंडे यज्ञशाला के बाहरी क्षेत्र में लगाये जाते हैं, और इन पर हाथी का चित्र बनाया जाता है।अष्ट मंगल या आठ उपकरण – दर्पणं (शीशा), पूर्णकुम्भ (कलश), वृषभ (बैल का चित्र), दो चमरस (पंखे), श्रीवत्सम (चित्र), स्वस्तिकं (चित्र), शंख और दीप – ये सब यज्ञशाला के अन्दर के क्षेत्र में लगाये जाते हैं।
- अन्दर के क्षेत्र में रंगोली बनाई जाती है और यज्ञशाला को आम के पत्तों, केले की डंडी, गन्ने और दियों से भी सजाया जाता है।
- यज्ञशाला के बॉर्डर को खाद्य अनाज के बीजों से सुशोभित करते हैं, जो जल्दी ही अंकुरित हो जाते हैं। इन अंकुरों में क्षमता होती है कि वे औषधि मन्त्रों को सोख लेते हैं। यह प्रार्थना की जाती है कि अनाज के ये बीज अच्छे से अंकुरित हों और चंडी होमा सुचारू रूप से संपन्न हो जाए।
प्रश्न: एक आध्यात्मिक साधक के लिए नवरात्रि का क्या महत्व है?
उत्तर: नवरात्रि ‘शक्ति तत्व’ का उत्सव है। इसे शरद ऋतू में मनाया जाता है और अगमा के अनुसार ‘शक्ति’ को तीन रूप में पूजा जाता है – इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति। पुराणों (या कल्पों) के अनुसार शक्ति को महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती के रूप में पूजते हैं। नौ दिनों तक देवी महात्यम और श्रीमद देवी भागवतम का जाप किया जाता है।
यह एक अद्भुत उत्सव है जहाँ एक ओर उत्सव मनाया जाता है और दूसरी ओर आप अपने भीतर की गहराई में जाकर आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
मन के छह विकार होते हैं – काम (इच्छा), क्रोध, लोभ, मद (हठ), मोह और मात्सर्यं (ईर्ष्या)। ये विकार किसी भी मनुष्य में नियंत्रण के बाहर हो सकते हैं और तब ये आध्यत्मिक पथ पर बाधा बन जाते हैं। इन नौ दिनों में ‘शक्ति’ की कृपा से ये विकार स्वतः ही मिट जाते हैं।
इसीलिये, इन नौ दिनों में तपस्या और उपासना करी जाती है और साथ ही ध्यान भी बहुत महत्वपूर्ण है। पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से, हमारे पास एक बना-बनाया और सरल आध्यात्मिक पथ है। उनके निर्देशों का पालन करके हम अनिमा, महिमा और लगिमा इत्यादि के द्वारा सहजता से सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न: नवरात्रि के दौरान ‘संकल्प’ का क्या महत्व है?
उत्तर: किसी भी पूजा के लिए प्रतिबद्धता आवश्यक है। यदि हम अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक पाना चाहते हैं, तो हम पूजा के आरम्भ में ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और इसी को ‘संकल्प’ कहते हैं। जब आश्रम में इतने विशाल स्तर का यज्ञ आयोजित हो रहा है, तब संकल्प लेने से हमारे ऊपर भी और समस्त संसार में भी ईश्वरीय कृपा बरसती है, मन शुद्ध होता है और हमारे मन में स्पष्टता आती है।
जब किसी व्यक्ति द्वारा अपने परिवार के लिए संकल्प लिया जाता है, तब उसे ‘आत्मार्थ संकल्प’ कहते हैं। जब पूरे विश्व के लाभ के लिए संकल्प लिया जाता है, तब उसे ‘परार्थ संकल्प’ कहते हैं।
प्रश्न: होमा के दौरान देवी ऊर्जा कैसे प्रकट होती है?
उत्तर: कला, तत्व, भुवन, मन्त्र, पद और वर्ण – इन्हें ‘शदाध्वास’ कहते हैं और ये हमारे शरीर के शदाधरस से जुड़े हुए हैं।
एक समूह में साधना करने पर हम आसानी से गहरे ध्यान में जा सकते हैं। हमें अपने शरीर में ही नहीं, बल्कि अपने वातावरण में भी परिवर्तन दिखेगा।
प्रश्न: क्या यह सच है कि पूजा के दौरान चंडी होम के 1008 भाग होते हैं?
उत्तर: चंडी होमा दो प्रकार का होता है – लघु चंडी होम (छोटे समय का) और महा चंडी होमा (लम्बे समय का)।
लघु चंडी होमा में, देवी का आवाहन किया जाता है और फिर उसके बाद नवाक्षरी मन्त्र का जाप होता है। होमा के बाद देवी पूजा होती है और इसे एक ही बार, कुछ घंटों के लिए ही करते हैं।
महा चंडी होमा को नौ बार कर सकते हैं और इसे नव-चंडी होमा कहते हैं। जब इसे 100 बार किया जाता है तब इसे ‘शत-चंडी होमा’ कहते हैं, जब 1000 बार किया जाता है तब उसे ‘सहस्र- चंडी होमा’ कहते हैं। और जब इसे 10,000 बार किया जाता है तब यह ‘आयुत-चंडी होमा’ कहलाता है। इन सभी यज्ञों की अलग अलग विधि है और सामान्य रूप से नव चंडी होमा ही किया जाता है। आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में शत-चंडी होमा करते हैं।
अनुष्ठान:
- पूजा का आरम्भ ‘गुरु अनुग्रह’ से होता है, अर्थात, गुरु का निर्देश और आशीर्वाद।
- इसके बाद आता है ‘देवता अनुग्रह’, अर्थात ईश्वर की अनुमति।
- ‘विग्नेश्वरा पूजा’ – भगवान गणेश की पूजा, जो सभी विघ्नों का नाश करते हैं। और इसके बाद ‘पूर्वांग पूजा’।
- ‘आचार्य अनुग्ना’ – यज्ञ को करने वाले सबसे वरिष्ठ मुख्य पंडित जी का आशीर्वाद। सबसे वरिष्ठ पंडित को ‘ब्रह्मा’ कहते हैं।
- महा-संकल्प लिया जाता है, जिसमें दिन, समय और जिस जगह पर पूजा संपन्न करी जा रही है उसका जाप होता है। होमा का नाम और कारण भी बोला जाता है और इसके बाद पूजा आरम्भ होती है।
- ‘ग्रह प्रीति’ – नौ ग्रहों को प्रार्थना करी जाती है कि होमा बिना किसी विघ्न के संपन्न हो जाए। सभी नौ ग्रहों के आशीर्वाद का आहवाहन किया जाता है, जिससे यदि पूजा के नक्षत्र, राशि या लग्न में कोई भी त्रुटी हो, तो वह ठीक हो जाए।
- ‘नंदी शोभनम’ – ऋषियों और वृद्ध जनों से आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करी जाती है।
- ‘मधुपर्क पूजा’ – दूध, शहद और घी को आपस में मिलाया जाता है और एक विशिष्ट मन्त्र का जाप करते हैं| इस मिश्रण को वे सभी पंडित ग्रहण करते हैं जो होमा कर रहे हैं, जिससे पूजा करते समय उनके मन में मधुरता बनी रहे।
- ‘गौदान’ – गौ पूजा के बाद, गौ का दान करते हैं।
- ‘पुण्याहवाचन’ – जिस स्थान पर पूजा करी जा रही है, उस स्थान की शुद्धि।
- ‘पंच्गाव्यम’ – पांच तत्व जिनके माध्यम से शरीर की शुद्धि हो रही है।
- ‘वास्तु शांति’ – भूमि देवताओं से प्रार्थना।
- ‘मृत संग्रहण’ – रेत या लकड़ी से मृत्यु ली जाती है।
- ‘अंकुरार्पणं’ – नौ प्रकार के अनाज को गमले में लगाते हैं जो दूध और पानी में डूबे होते हैं।
- ‘रक्षा बंधन’ – आचार्य अपने दाहिने हाथ में पीला धागा बांधते हैं, जो पूजा के लिए आचार्य का संकल्प होता है।
यज्ञ के आरम्भ से पहले ये सभी अनुष्ठान (पूर्वांग पूजा) किये जाते हैं।
यज्ञ आरम्भ:
- दीप पूजा – कलश के दोनों ओर दो प्रकार के दीप रखे जाते हैं। बायीं तरफ ‘दुर्गा दीप’ जिसमें तिल का तेल होता है और दायीं ओर ‘लक्ष्मी दीप’ जिसे घी से जलाया जाता है।
- षोडश माथ्रुका पूजा – 16 माथ्रुका देवियों की प्रार्थना की जाती है।
- आचार्य और ऋत्विक वरणा – वेदों, शास्त्रों और अगमा की भिन्न शाखाओं में विशेषज्ञ आचार्य ओर पंडितों को आमंत्रित करते हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, साथ ही इतिहासपुराण और शैवागमा का भी जाप करते हैं।
- चंडी महा यज्ञ मंडप पूजा – 53 प्रकार की अलग अलग पूजाएँ करते हैं और 10 दिशाओं के ईश्वरों की आराधना करते हैं।
- द्वार, तोरण, ध्वजा, पताका, स्थापना – मंडप में विशेष प्रकार की पत्तियों को विशेष दिशाओं में बांधते हैं।
- आचार्य आसन पूजा – यज्ञ करने के लिए जिन मुख्य पंडित को नियुक्त किया गया है, वे अब देवी पूजा आरम्भ करते हैं और नवाक्षरी मन्त्र का जाप करते हैं।
- पद्यादी पात्रा पारी कल्पना – आहुतियों की तैयारी की जाती है।
- कुम्भ स्थापना – वह मुख्य कलश जिसमें पवित्र नदियों का जल है, उसकी स्थापना करी जाती है।
- पुस्तक पूजा और परायणं पूजा - इसके बाद देवी सप्तशती पुस्तक और फिर देवी सप्तशती का जाप किया जाता है, जो देवी महत्मियम है।
- देवी आवाहन
- अग्नि कार्य – अरुणी लकड़ी की दो डंडियों के बीच घर्षण करके अग्नि उत्पन्न करी जाती है, इसे ‘अग्नि-मंथन’ कहते हैं। देवी को अग्नि में आह्वाहन करते हैं और फिर अग्नि में आहुतियां दी जाती हैं। जिस प्रकार का होमा कर रहे हैं, उसके अनुसार ही आहूति दी जातीं हैं – जैसे 1000, 10,000, 1,00,000 आहुति इत्यादि। सप्तशती 13 भागों में विभाजित है और हर भाग के लिए देवी का एक विशेष रूप है। इन सभी 13 देवियों को उन्हीं के विशेष मन्त्रजाप के द्वारा आवाहन किया जाता है और उन्हें विशेष आहूति दी जाती हैं। ऐसा करने से, उस विशिष्ट देवी के आशीर्वाद का विशिष्ट प्रभाव मिलता है।
- 64 योगिनी और 64 भैरव की पूजा
- कादंबरी पूजा
- वदुका भैरव पूजा
- गौ पूजा
- गज पूजा
- अश्व पूजा
- कन्यका पूजा
- सुवासिनी पूजा
- दम्पति पूजा
इन सभी की आहुति मंगल आरती के उपरांत देते हैं –
- सौभाग्य द्रव्य समर्पण - 108 प्रकार की औषधीय जड़ी बूटी और फल, मुख्य होमा कुंड में श्रीसूक्त मन्त्रजाप के साथ डाले जाते हैं।
- वसोधरा – अब चमका मन्त्र का जाप होता है।
- महा पूर्णाहूति – अंत में एक लाल साड़ी, घी, सूखे नारियल में शहद, नवरत्न, पंचलोहा की आहूति देते हैं।
- संयोजन – पूजा के प्रभाव और तरंगें अब मुख्य कलश में स्थानांतरित कर दी जातीं हैं।
- रक्षाधारण – मुख्य होमा कुंड से रक्षा ली जाती है और उसे कलश में लगाया जाता है, इसके बाद पूजा होती है।
- कलाशाभिशेकं – इस मुख्य कलश के पवित्र जल को अब देवियों की मूर्ति को अर्पण करते हैं।
- विशेष प्रार्थनाओं के द्वारा पूरी पृथ्वी को आशीर्वाद दिया जाता है, और अब इस पवित्र जल को पूज्य गुरुदेव पर छिड़का जाता है, और उन सभी लोगों पर जिन्होंने इस यज्ञ में भाग लिया है।
- इसके बाद गुरु सबको प्रसाद देते हैं और सबको आशीर्वाद देते हैं। इस प्रकार चंडी होमा के 1008 भाग हैं।
प्रश्न: वेद छात्रों को किस प्रकार की ट्रेनिंग दी जाती है, कि वे समय अनुरूप सारे कार्य संपन्न कर लेते हैं?
उत्तर: वेद अगमा संस्कृत महा पाठशाला के सभी छात्र प्रत्येक दिन योग, सुदर्शन क्रिया और ध्यान करते हैं, जिससे वे शारीरिक और मानसिक रूप से सजग रहते हैं। वह गुरुकुल के ट्रेनिंग प्रोग्राम के नियमों का भी पालन करते हैं।
इन छात्रों को मन्त्र दीक्षा भी दी जाती है, जिससे वे चंडी होमा संपन्न कर सकते हैं। इन्हें होमा के प्रत्येक चरण के बारे में भली-भाँति ट्रेनिंग दी जाती है जिससे वे वे चंडी होमा के दिन सभी कुछ सुचारू रूप से समय-अनुसार कर पाते हैं। छात्रों को प्रायोगिक तौर पर चंडी होमा कराया जाता है जो अगम पाठशाला में महा चंडी होमा के एक हफ्ते पहले करते हैं। इसके साथ ही देवी महत्मियम का जाप भी 12 हफ़्तों तक करने का अभ्यास होता है।
प्रश्न: नवरात्रि के दौरान जो छह यज्ञ संपन्न होते हैं, वे क्या हैं? और उनका एक व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
गणपति होम – किसी भी कार्य की पूर्ति के लिए, सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाएं प्रकट होती हैं। ये ऊर्जाएं, ज़रूरी नहीं कि बाहरी वातावरण में ही हों, ये हमारे शरीर और मन में भी हो सकती हैं। इसीलिये, हम गणेश जी की पूजा करते हैं, जो सभी बाधाओं को दूर कर देते हैं। परंपरा के अनुसार किसी भी यज्ञ को आरम्भ करने से पहले गणेश होमा और पूजा करी जाती है।
सुब्रमन्य होम – भगवान सुब्रमन्य ‘विजय’ के भगवान हैं। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए ‘ज्ञान शक्ति’ की आवश्यकता होती है। इसीलिये सुब्रमन्य मंत्रों के जाप से भगवान सुब्रमन्य का आवाहन किया जाता है।
नवग्रह होम – नौ ग्रह बहुत महत्वपूर्ण हैं और इनकी गति (ग्रहगति) पूरी पृथ्वी को और उसपर रहने वाले सभी जीवों को प्रभावित करती है। इसलिए नौ ग्रहों का सम्मान करते हुए, नौ अलग-अलग तरह की आहूति दी जाती है। इसके साथ ही हर ग्रह से सम्बंधित विशिष्ट मन्त्रों का जाप भी किया जाता है। अलग-अलग ग्रह हमारे शरीर के अलग भागों को प्रभावित करते हैं और ये अलग-अलग अनाज और रत्नों को भी प्रभावित करते हैं। पृथ्वी पर जो भी घटना हो रही है, इन ग्रहों का उनपर पूरा प्रभाव रहता है। इसलिए हम नौ ग्रहों की पूजा करते हैं जिससे वे किसी भी नकारात्मक प्रभाव को हम पर पड़ने न दें और जो सकारात्मक प्रभाव वे हमारे ऊपर डाल रहे हैं, उसे और अधिक बढाएं।
रूद्र होम – रूद्र होमा हमें शान्ति देता है और जीवन से सभी दुखों को मिटा देता है। रूद्र मन्त्र, जिसमें नमक औरचमक मन्त्र हैं, उनका इस होमा में जाप किया जाता है। रूद्र मन्त्रों के जाप से हम ध्यान की गहराई में जा पाते हैं और इससे सत्व, रजस और तमस गुणों में संतुलन आता है। रूद्र के मन्त्र तीनों गुणों का विलय कर देते हैं और ध्यान की अवस्था में स्थित कर देते हैं| आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में 11 पंडित रूद्र होमा संपन्न करते हैं। ये 11 बार रूद्र मन्त्रों का जाप करते हैं, जिसे ‘एकादशा रूद्र होमा’ कहते हैं।
सुदर्शन होम – सुदर्शन होमा किसी भी बुरी नज़र या नकारात्मक प्रभाव को मिटा देता है और हमें परम आनंद की ओर ले जाता है| ‘सुदर्शन मन्त्र’ और ‘विष्णु सहस्रनाम’ का जाप इस होमा में किया जाता है। ‘लक्ष्मी मन्त्र’ और ‘श्रीसूक्त मन्त्र’ का जाप भी सुदर्शन होमा में किया जाता है।
ऋषि होम – यह होमा नवरात्रि के अंतिम दिन में किया जाता है। ऋषि वे हैं जो दृशतारः हैं, और इन्होंने गहरी समाधि प्राप्त करके आकाश में से वेदों को प्राप्त किया है। हम ऋषि होमा को संपन्न करके इन ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए हमें यह परम अलौकिक ज्ञान दिया। सप्तऋषि और अन्य विशेष ऋषियों से प्रार्थना की जाती है और इसका आरम्भ ‘गुरु पूजा’ से होता है। जहाँ तक मैं जानता हूँ, पूज्य गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी की अद्भुत अनुकम्पा से ऐसी पूजा केवल आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में ही होती है।
अभिप्राय देने हेतु या अधिक जानकारी के लिए लिए संपर्क – webteam.india@artofliving.org
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