एक साधक की पत्री ( का पत्र )

कैलेंडर में बहुत से ऐसे दिन होते हैं जब हम अपने प्रिय जनों का सम्मान करते हैं , जैसे फादर डे , मदर डे, सेक्रेटेरी डे, जन्मदिवस इत्यादि , है कि नहीं ? अतः इस आने वाली  विशेष पूर्णिमा के दिन हम सद्ग़ुरु का सम्मान करते हैं ।यह सम्मान उस गुरु तत्त्व का है जो हमें अपने स्वयं ( आत्मन ) की ओर लाता है । कितना सुंदर है , कितना अद्भुत है अपने गुरु के प्रति कृतज्ञ होना , क्योंकि चाहे जो भी हो ,अंततः गुरु के लिए अपने शिष्यों  की सेवा ही सर्वोपरि है ।

 गुरु पूर्णिमा का दिन ही वह दिन है जब हम अपने गुरु के प्रति कृतज्ञ होते हैं ।किंतु देखा जाए तो हम वास्तव में क्या कर रहे होते हैं ?  गुरु ने हमें कितना कुछ दिया है , हम उसी  के लिए ही तो सम्मान पूर्वक गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रहे होते हैं । 

गुरु पूर्णिमा ही वह दिन है जब हम पीछे मुड़ कर गत वर्ष अथवा जब से अपने गुरु संग पथ पर चले हैं , अतीत में झांकते हैं और चिंतन करते हैं कि “ मैं कहाँ था और कहाँ आ पहुँचा हूँ , और कैसे ? “ वास्तव में जब हम ध्यानपूर्वक देखें तो यह “ कैसे “ का उत्तर है केवल और केवल “ कृपा “ । अतः यह दिन उस कृपा  का सम्मान करने का ही दिन है । कृपा एक ऐसी अद्भुत अनुभूति है जो अपरिहार्य है ; अगर आप रुक कर , शांत हो कर सोचें , तो इस पर चिंतन कर के वास्तव में यह अनुभव कर सकते हो ।

इसलिए , अपने स्वयं की आध्यात्मिक यात्रा का सम्मान करें , अपने जीवन में उस प्रकाश का आदर करें जो आपको उस छोर से यहाँ तक लाया है । 

मेरी दादी अक्सर मुझसे कहा  करती थी , “ अगर अपना शीश दे कर भी तुम्हें सदगुरु  मिलते हैं तो जल्दी से उस अवसर को लपक लो , तुम्हें  इससे सस्ता सौदा नहीं मिलेगा । “ 

मुझे नहीं पता कि गुरु को इतने शीश  की दरकार है , परंतु फिर भी …..

शास्त्रों में कहा गया है कि :

“ ज्ञान और बुद्धि की कृपा सिर्फ़ और सिर्फ़ गुरु के द्वारा ही प्रदान की जा सकती है ।” 

बहुत सारे महान देवी देवता हैं , फिर भी बुद्धि का उपहार , आत्मन का ज्ञान , तथा जीवन में प्रेम और 

प्रकाश  का उद्गम एक गुरु से ही हमें प्राप्त हो सकता है ।

अतः आज का दिन सच में कृतज्ञता में डूबने का दिन है ।