गुरुदेव का बचपन याद आ रहा है

भानुमति नरसिंहमन अपने भाई गुरुदेव के साथ अपने बचपन को याद करते हुए।

मेरा जन्म 11 जनवरी 1958 को पापनाशम में उसी घर में हुआ था, जहां गुरुजी का जन्म हुआ था।  संस्कृत में बहन को सहोधरी कहते है...वह जो गर्भ को बाटती  है।  बस यह विचार कि मेरे गुरु ने एक ही गर्भ को बांटा है, मुझे कृतज्ञता से भर देता है और मेरा जीवन  कृतज्ञता कि यात्रा के साथ जारी है और हर क्षण हर्ष से भरा रहता है!

अधिकतर लोग मुझसे पूछते हैं कि मुझे यह कब अनुभव हुआ कि वह मेरे गुरु हैं।  सच  यह है कि मैंने उनका हमेशा अनुगमन किया, शुरुआत में अनजाने में और बाद में ज्ञान के साथ , लेकिन उनके शब्दों और उनके पद्चिन्हों ने मुझे आगे बढ़ाया और मेरा मार्गदर्शन किया।

उन्होंने मुझे खेलना, गाना गाना, ध्यान करना, पूजा करना, देखभाल करना, सेवा करना सिखाया है ... सूची अंतहीन है।  जब गुरुजी लगभग पाँच वर्ष के थे और मैं तीन वर्ष की थी, तब हमारा खेल उसी पूजा का अनुकरण (बराबरी) करना था जो हम अपनी दादी जी को करते हुए देखते ।  गुरुजी अपना छोटा शिवलिंग बनाते, फूल चढ़ाते, कुछ छंदों के मंत्रोच्चारण करते और कुछ मिठाइयाँ चढ़ाते थे।  मैं उनके बगल में ही आँखें बंद कर मिठाई का इंतजार करती थी।  एक बार मैंने उनसे पूछा कि हमें क्यों चढ़ाना (भोग) होता है क्योंकि भगवान तो वैसे भी नहीं खाते हैं।  उन्होने मुझसे सहजता से कहा, "बिल्कुल भगवान इसे खाते है, वे इसे अधिक मधुर कर  हमें वापस दे देते है!"

एक छोटा सा शिव मंदिर था हमारे घर के पास, जहां हम रोज जाया करते थे। उस मंदिर में 108 शिवलिंग थे और गुरुजी हर एक के चारों ओर 'ऊँ नमः शिवाय' का जाप करने के लिए कहते थे।  हम तब भी 5 और 3 साल के थे।  मैं एक या दो को छोड़ देती और  खत्म करती थी और अंत में गुरुजी मुझे हाथ पकड कर  उन एक या दो के पास ले जाते और  पूरा करा देते! हर चीज़ अद्भुत थी जो वो करते थे, उसमें जागरूकता, ध्यान और पूर्णता होती थी।

उनमें  नटखटपन और हास्य का स्पर्श भी था।  एक बार, स्कूल से वापस आने के बाद, हमने पिताजी (हमारे पिता) की सभी फाइलों से भरा सूटकेस खाली कर दिया और उसमे अपने खिलौनों  भर दिए!  वे एक महत्वपूर्ण मिटिंग के लिए जाने वाले थे और वह हमारे सभी खिलौने अपने साथ ले गए!  जब उन्होंने अपना ब्रीफकेस खोला, तो निश्चित रूप से सभी उपस्थित लोगों के लिए यह आश्चर्य की बात थी।  यद्यपि, हमारे पिता जी ने हमारे सेंस ऑफ ह्यूमर की तारीफ की और हमें प्रोत्साहित किया।  हमारे माता-पिता ने हमें बड़ा होने के लिए इतना सुंदर वातावरण दिया है।  मेरे पिता का दृष्टिकोण बहुत वैज्ञानिक था और मेरी माँ बहुत पारंपरिक थीं।  हालाँकि, वे दोनों बडा दृष्टिकोण रखते थे और हममें भी उन्हीं गुणों का पोषण किया करते।

गुरुजी स्कूल में भी नेता थे।  कभी-कभी हमारे अद्धयापक गण भी उनसे सांत्वना के लिए बात करते थे।  उन्हें उनसे बात करने मे अच्छा और हल्का लगता था।  वे बहुत प्रतिभाशाली छात्र भी थे।  वे संगीत, नृत्य और रंगमंच में भाग लेते थे और श्रेष्ठ प्रदर्शन भी करते थे।  हालाँकि, एक चीज जो वह कभी नहीं करते थे, फुटबॉल खेलना।  वे कहते थे, वे किसी भी चीज़ को लताड नहीं सकते जो उसके पास आती थी!

आज लाखों लोग जीवन के सभी श्रेत्रो और विशव भर से उनके पास आए हैं, उनसे मार्गदर्शन के लिए ,  उनकी उपस्थिति से उत्थान महसूस कर रहे हैं।  मैंने उन्हें संसद के सदस्यों, व्यापारियों, साधारण गृहिणियों, किसानों, मजदूरों से मिलते देखा है – अधिकतर सभी एक ही दिन में, और वे एक  ही उत्साह और देखभाल के साथ हर एक से बात करते हैं।  वह दुनिया के जिस भी हिस्से में है, यही जारी है। वह एक शहर से दूसरे शहर, एक देश से दूसरे देश, समय क्षेत्रों में, लगातार यात्रा करते है और हर जगह लोग उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।  उन्हें कभी भी जेट-लैग्ड नहीं होता है।  वह उनकी चिंताओ को संबोधित करते हैं, उन्हें ज्ञान के साथ ऊपर उठाते हैं, उनका ध्यान में मार्गदर्शन करते हैं, उन्हें सेवा करने के लिए प्रेरित करते हैं, और उनके जीवन को एक उच्च उद्देश्य देते हैं।  मैं अकसर कहती हूं, अगर आपको कोई संदेह है कि वे दिव्य है, तो बस एक बार उसके साथ यात्रा करें और आपको पता चल जाएगा।

एक बार किसी ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें कभी थकान महसूस होती है।  उन्होंने उत्तर दिया, “सूरज कभी चमकते थकता है, या बहती नदी?  मैं कभी ऐसा कुछ नहीं करता जो मेरे स्वभाव में न हो।"

मैं कहती हूं, हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमारे साथ एक जीवित गुरु हैं।  यह सच है कि हमें कई किताबों या शास्त्रों में बहुत प्रज्ञा, मुक्ति के रहस्य आदि मिल सकते हैं, लेकिन केवल एक जली हुई मोमबत्ती ही दूसरे को रोशन कर सकती है।  केवल गुरु ही हमें इस ज्ञान को अपने जीवन में अनुभव करने और एकीकृत करने में सहायता कर सकते हैं।  केवल गुरु ही हमें इतना प्यार और प्रकाश कि ओर प्रेरित कर सकते हैं और हमें एक अचल मुस्कान दे सकते हैं।