आयुध पूजा का महत्त्व
विजयादशमी कृतज्ञता का दिन है। इस दिन हमने जीवन में जो भी कुछ प्राप्त किया है, उसके लिए हम कृतज्ञ होते हैं।
इस ब्रह्माण्ड में कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है, या फिर सब कुछ महत्वपूर्ण है। ज़रा सोचिये, आप मोटर साइकिल चला रहे हैं और आपकी कमीज़ में बटन नहीं है, तब क्या होगा? कमीज़ उड़कर आपके चेहरे के ऊपर आ जाएगी। यह छोटे से बटन भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।
हमें जीवन में वस्तुएं सिर्फ आकार नहीं बल्कि उनकी उपयुक्तता से निर्णायक है। अपने दैनिक जीवन में इस्तेमाल की वस्तू, साधन और उपकरणों की कार्यक्षमता, गुण आयुध पूजा के माध्यम से पूजा जाता है।
आयुध पूजा क्या है?
‘आयुध पूजा’ वह दिन है जिसमें हम इन उपकरणों का आदर करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञ होते हैं क्योंकि इनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है। छोटी-छोटी चीज़ें जैसे पिन, चाकू, कैंची, हथकल से लेकर बड़ी मशीनें, गाड़ियाँ, बसें इत्यादि – इन सभी का आदर होता है। यह एक ही दिव्यता का अंग हैं।
एक सुईं जैसी छोटी सी वस्तु का भी उद्देश्य है। सुईं न हो, तो आपने जो कपड़े पहन रखे हैं, वो भी नहीं होंगे। इसलिए, बहुत छोटी-छोटी चीज़ें जीवन में बहुत महत्व रखती हैं।
इसमें छोटी वस्तुओं जैसे कि पिन, चाकू, कैंची, पत्तियां, कंप्यूटर, मशीनरी, कारें और बसों जैसे बड़े उपकरण शामिल हैं।
आयुध पूजा की कहानी और ऐतिहासिक सन्दर्भ
पांडवों को जब १३ साल का वनवास और १ साल का अज्ञातवास में भेजा गया था तब जाने से पहले उन्होंने अपने हथियार शमी वृक्ष पर छुपाये थे और ऐसा कहा जाता है विजयदाशमी के दिन हि अर्जुन ने अपने हथियारों को वापस लाया। इसी के बाद उन्होंने युद्ध की तैयारी शुरू की और कुरुक्षेत्र के युद्ध में वह विजयी हुए। पांडव विजयदाशमी दिन पर वापस आये इसीलिए पर यह दिन नया कार्य शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है। लेकिन कर्नाटक में, विजयदाशमी के एक दिन पहले आयुध पूजा मनाई जाती है।
प्राचीन काल में हथियारों की (शास्त्रों की) भी पूजा की जाती थी क्योंकि शास्त्रों द्वारा ही दुश्मन को पराजित किया जा सकता था। उदाहरण के लिए, देवी चामुंडेश्वरी (पार्वती देवी के अवतार) कर्नाटक के राक्षस महिषासुर का वध किया । इसी की स्मरणार्थ आयुध पूजा की परंपरा वहाँ चली आ रही है।
उपकरणों का आदर
"हम जब हर चीज के प्रति आदर से ओतप्रोत होते है, तब हमारा जीवन पूर्णत्व को प्राप्त होता है।" -
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
जब हम किसी चीज़ के महत्व को जानते हैं, तो वह चीज कई गुना ज्यादा उपयुक्त हो जाती है। जब हम अपने जीवन को खुशहाल बनाने वाली चीजों को महत्व देते हैं तब हमें सभी चीज़ों से संतुष्टि मिलती है। आपका दिमाग अधिक से अधिक लालच और इच्छाओं से परेशान नहीं होता।
गुरुदेव कहते हैं कि आप हमेशा अपनी चीजों के प्रति सम्मान खो देते हैं और यह जानबूझकर नहीं होता है। जिसका आप सम्मान करते हैं वह आपके से कुछ बड़ा हो जाता है। जब आप पूरे ब्रह्मांड का सम्मान करते हैं, तो आप सौहार्द से रह सकते हैं।
तब आपको इस दुनिया में कुछ भी स्वीकार या अस्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है। स्वामित्व का सम्मान लालच और ईर्ष्या से राहत देता है। इसलिए, जीवन के हर पल का सम्मान करने के कौशल को विकसित करें।
अपनी जीवन उपयोगी वस्तुओं को जानकर उनका सम्मान करना - यही आयुध पूजा है।
परंपरा के अनुसार नवरात्रि का उत्सव शरद ऋतू के आरम्भ में मनाया जाता है, जब प्रकृति में सब कुछ परिवर्तित हो रहा होता है। ये नौ रातें बहुत अनमोल होती हैं, क्योंकि साल के इन दिनों में सृष्टि की कुछ सूक्ष्म ऊर्जाएं बहुत बढ़ी हुयी होती हैं। ये सूक्ष्म ऊर्जाएं अंतर्मुखी होने में, प्रार्थना और जाप करने में और आध्यात्मिक साधना करने में हमारी मदद करती हैं जिससे इनका अनुभव और अधिक गहरा होता है।
एक ही दिव्यता
सभी उपकरण मन के द्वारा रचित हैं और मन ईश्वर के द्वारा रचित है। बल्कि, मन ईश्वर ही है। और इस मन में कुछ निर्माण करने के जो भी विचार आते हैं, जैसे हवाई जहाज, कैमरा, माइक – ये सभी विचार एक ही स्त्रोत से आये हैं – और वह स्त्रोत है ‘देवी’।
इसी का जाप हम चंडी होम में करते हैं –
"या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता"
अर्थात, देवी माँ जो प्रत्येक जीव के अन्दर बुद्धि के रूप में निवास करती हैं – उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ। यह एक ही दिव्यता है जो हर जीव में बुद्धि बनकर प्रकट होती है।
यह एक ही दिव्यता है जो हर मनुष्य में भूख और नींद के रूप में उपस्थित है और यह एक ही दिव्यता है जो उत्तेजना और अशांति के रूप में भी व्याप्त है। केवल यह सजगता, कि हर ओर केवल एक वही दिव्यता मौजूद है – हमारे मन को शांत कर देता है।
तो आपको यह कहने की ज़रुरत नहीं है कि, ‘मैं इस मन का क्या करूं?’ आप अपने मन के साथ कुछ भी करने का प्रयास न करें! केवल विश्राम करें! जितना भी हो सके उतना सेवा के कार्य करें और केवल विश्राम करें।
अगर आपको सोचना ही है, तो यह सोचिये कि आप विश्व के लिए क्या कर सकते हैं। ये सोचने का कोई लाभ नहीं है कि आप अपने मन के साथ क्या करें। एक परम शक्ति है जो आपके मन को संभाल रही है। आज के दिन (विजयादशमी) आईये हम सब यह संकल्प लें कि हमें जीवन में जो भी कुछ मिला है उसका उपयोग हम विश्व के कल्याण के लिए करें। आईये कुछ बड़ा सोचें।