आशा के सपनों की सिलाई

वो पीता है और मुझे मारता है, वो मुझपर अवैध सम्बंध होने का आरोप लगाता है। जब मैं रोती हूँ और उसके आरोपों क झुठलाती हूँ तो वो मुझे दोबारा मारता है और, सो जाता है। मुझे सिर्फ सिलाई का सहारा है।जब मैं सिलाई सिखाती हूँ तो राहत पाती हूँ। इस काम को सिखाते वक़्त मैं अपनी पीड़ा और आंसू भूल जाती हूँ। पर मेरे पति को मेरा बाहर जा कर सिलाई सिखाना पसंद नहीं। 

मैं आपको बता दूं कि मेरी शादी 10 साल की उम्र में हो गई थी। मेरे पति को पोलियो था और वो जीवन यापन के लिए कमा नहीं पाते थे। हमने अपनी पहली सन्तान को खो दिया था,  क्योंकि हम उसे प्राथमिक उपचार उपलब्ध नहीं करा पाये थे।

उस समय जब मैं बड़ी मुश्किल से मुस्कुरा पाती थी, तभी गाँव में  यूथ लीडरशिप ट्रेनिंग कार्यक्रम (YLTP) आयोजित हुआ।

कार्यक्रम के दौरान, मुझे ऐसे शिक्षक और मित्र मिले जिनकी संगत से मेरा ध्यान मेरे दुखों से हट कर दूसरों तक मदद पहुंचाने की ओर गया। मैंने अपना ध्यान अपने गाँव वालों के लिए आयोजित होने वाले समुदायिक सशक्तीकरण कार्यक्रमों की ओर लगा दिया। जीवन सिर्फ पति के हाथों मार खा के दुखी होना नहीं रह गया था। जो आमदनी मुझे संस्था से मिलती थी, उससे मैंने सिलाई मशीन खरीदी। एक छोटी सुई और धागे से कपड़े बनाना मुझे बहुत मुश्किल लगता था।मुझे सिलाई की शुरुआती शिक्षा मेरी माँ से मिली थी। सिलाई मशीन से काम करना बहुत आसान और सुविधाजनक हो गया।

एक दिन मैं अपने गाँव की किशोरावस्था की लड़कियों से,  YLTP कार्यक्रम के बारे में बात कर रही थी, तभी एक विचार मेरे मन में आया। मैने सोचा क्यूँ  ना इन्हे सिलाई सिखाई  जाये। ये इन्हें आर्थिक रूप से सशक्त भी बनायेगी और इन्हे उन सब मुश्किलों का सामना भी नहीं करना पड़ेगा जिनका सामना मैंने किया।मैने ये सुझाव अपने शिक्षकों से साझा किया तो उन्होंने इसे बहुत पसंद किया और तुरंत अपनी सहमती भी दे दी। 

अब तक, मैं 250 लड़कियों और महिलाओं को अपने राज्य, उत्तर प्रदेश के, बहराइच जिले में, निशुल्क, सिलाई का प्रशिक्षण दे चुकी हूँ।प्रशिक्षण देने के लिए, सरकारी स्कूल हमें कमरे प्रदान करते हैं। बहुत सी लड़कियां अब अपनी आमदनी खुद कमा रही हैं। और ये देख कर बहुत अच्छा लगता है कि, ये लड़कियां अपनी शिक्षा का आर्थिक वहन खुद कर रही हैं। जो इज्ज़त मुझे इनसे मिलती है, वो मुझे गर्व से भर देती है। हांलाकि ,घर में वातावरण पूरी तरह से विपरीत है पर, मैं अब शिकायत नहीं करती। जो आमदनी मुझे संस्था से मिलती है उससे मैं मेरा घर चलाने के साथ साथ मेरी माँ का खयाल रखती हूँ और अपने बच्चों को स्कूल भेजती हूँ।

सिलाई के माध्यम से, ना केवल मैं, मेरे पति द्वारा पहुँचाई जाने वाली पीड़ा से ध्यान हटा पाती हूँ। इसके अलावा, मुझे भविष्य के लिए आशा भी मिलती है कि,  गाँव की लड़कियां, आर्थिक रूप से सक्षम बन कर, अपने पांव पर खड़ी होने के साथ साथ गर्व से अपना सिर समाज में भी ऊंचा रख सकती हैं। 

- प्रभावती तिवारी, सिलाई प्रशिक्षक, आर्ट ऑफ़ लिविंग

वन्दिता कोठरी द्वारा लिखित