87 वर्ष के युवा जिन्होनें बदल दी भारत के घाटशिला में आदिवासियों की तस्वीर

भारत की राष्ट्रीय युवा नीति कहती है कि अगर आप 15 से 29 साल के हैं तो ही आप युवा हैं लेकिन गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं कि युवा होना आपकी उम्र पे कतई निर्भर नही करता; वह तो आपका जीवन जीने का जोश, उत्साह और दुनिया मे कुछ कर गुजरने का जज़्बा निर्धारित करता है। इस राष्ट्रीय युवा दिवस पर हम आपको बताने जा रहे हैं “87 साल के एक युवा” की कहानी, जिन्होंने अपनी अच्छी खासी इंजीनियर की नौकरी छोड़कर, 8 करोड़ आदिवासी भारतीयों के सुनहले भविष्य की नींव रखी। 

एक रास्ता जो शहर की चकमक से जंगल की तरफ चल निकला

साल 1993... बृज भूषण चावला अपनी मल्टीनेशनल कंपनी में एक उच्च पद से इस्तीफा देकर 47 साल की उम्र में एक बड़ा, सुविधाओं से सजा हुआ शहर छोड़कर चल निकले थे झारखण्ड प्रदेश के एक छोटे से शहर घाटशिला के, एक ऐसे आदिवासी गाँव की ओर, जहाँ न बिजली थी, न साफ पानी, न शिक्षा, न सड़क और न ही अस्पताल। वहाँ थे तो केवल जंगल, पेड़ और शिकार कर अपना भरण पोषण करने वाले जनजातीय समूह के लोग।

बृज भूषण चावला जब घर से निकले थे तो उनका कौतूहल था ऐसे लोगो के बारे में जानना, जो 20वीं सदी में भी बिना किसी आधुनिक सुख सुविधा के जंगल मे रहकर, अपना भरण-पोषण करते हैं। और अपना पूरा जीवन शहरों के विज्ञान तकनीक से दूर वहीं प्रकृति की गोद मे बिता देते हैं। 

दूसरा कारण ये भी था कि 90 के दशक में आये दिन सरकार या मीडिया में जनजातीय लोगों को लेकर कोई न कोई दखल और खबर ज़रूर रहती थी।

कुछ और ही कह रहे थे आदिवासियों के हालात

पर बृज भूषण जी जब वहाँ पहुँचे, तो वहाँ के हालात कुछ और ही कह रहे थे। ये आदिवासी सदियों से शहरी सभ्यता, विकास और प्रगति की दौड़ से बाहर थे, पर जब भारत की बढ़ती आबादी के लिए अनाज उगाने और कारोबारियों को उनके उद्योग स्थापित करने की ज़रुरत आयी तो लोग जंगल की ओर बढ़ने लगे और मुद्दा बनाया गया जनजातीय लोगों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का ।

पर इनके विकास के नाम पर जो हुआ वो हृदयविदारक था। इनसे इनके जंगल छीन लिए गए। अशिक्षा, शहरी भाषा और कानून की अनभिज्ञता जनजातीय लोगों के लिए एक अभिशाप बन गयी। व्यापारी बिचौलियों ने इनकी अज्ञानता का पूरा फायदा उठाया और बहुत ही सस्ते दामों पर इनमे से कई लोगों की ज़मीनें ले लीं। 

जनजातीय समाज के लोगों की ये स्थिति हमारे तथाकथित विकसित समाज के मुँह पर एक बड़ा तमाचा थी। बृज भूषण चावला इनकी ये स्थिति देखकर भीतर से आहत थे और इतना तो समझ पा रहे थे कि इस समाज को एक संवेदनशील और तात्कालिक सहायता की आवश्यकता है। 

विकास की शुरुआत के लिए शिक्षा सबसे अच्छा विकल्प

कहते हैं अगर कहीं विकास की शुरुआत करनी हो तो शिक्षा सबसे पहला और सबसे उत्तम विकल्प होता है। प्रश्न था 8 करोड़ आबादी वाले जनजातीय समूहों के विकास का। और चुनौतियों का कोई अंत नही था। सबसे बड़ी चुनौती थी इन लोगों का विश्वास जीतना क्योंकि ये लोग पहले ही इस विकसित आदिम समाज से काफी आहत हो चुके थे।

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर से मुलाकात और बदल गया घाटशिला का नक्शा

ये सब कशमकश चल ही रही थी, इसी बीच बृज भूषण चावला को 1999 में गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी से मिलने का अवसर मिला। और वहाँ गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी के कहने पर शुरुआत हुई  ट्राइबल वेल्फयेर प्रोजेक्ट की। 

साल 1999 में ही आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े 3 लोगों ने मिलकर 15000 रुपये इकट्ठा कर सुवर्णरेखा नदी के किनारे बसे आज के झारखंड स्थित “घाटशिला” कस्बे में एक सरकारी बिल्डिंग में पहला स्कूल खोला। उसी जनजातीय समाज से एक शिक्षक नियुक्त किया गया ताकि वहाँ के लोग इस शुरुआत से जुड़ पायें। 

बृज भूषण चावला की मेहनत रंग ला रही थी। अगले एक साल में आस-पास के गाँवों में 300 बच्चों के लिए 5 और स्कूल खोले गए। आदिवासी समुदाय के लोग अब चावला जी और उनकी टीम से जुड़ने लगे थे। उनका टूटा हुआ विश्वास वापस पाने में बृज भूषण जी सफल रहे।

20 स्कूलों में पढ़ते हैं 3600 बच्चे

यात्रा यहीं नहीं रुकी, झारखंड के इस जनजातीय समुदाय के लोगों के बीच आज 20 स्कूल

हैं जहाँ 3600 बच्चे पढ़ रहे हैं। इन स्कूलों को  श्री श्री विद्यामंदिर के नाम से जाना जाता है। इन्ही स्कूलों में शाम को वहाँ के प्रौढ़ लोग भी पढ़ने आते हैं। शिक्षा की ये लहर यहाँ के लोगों में महिला विकास, कौशल विकास और नशामुक्ति की अनुपम अलख जगा चुकी है। 

बतौर बृज भूषण चावला, केवल किताबी शिक्षा किसी भी समुदाय के विकास के लिए पर्याप्त नहीं होती, इसीलिए हमने इन लोगों को योग, ध्यान, और सुदर्शन क्रिया से भी जोड़ा।

बच्चे और प्रौढ़, सुदर्शन क्रिया और ध्यान से करते हैं अपने दिन की शुरुआत

बच्चे और यहाँ के लोग अपनी सुबह की शुरुआत योग, सुदर्शन क्रिया और ध्यान से करते हैं जो इन्हें मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत और प्रेरित रखती है। यहाँ के बच्चे संगीत और खेल में भी उतने ही सक्रिय रहते हैं जितने कि अपनी पढाई-लिखाई में।’

आदिवासी बच्चे ई-लर्निंग के माध्यम से करते हैं पढ़ाई 

2015 से इन स्कूलों में ई-लर्निंग भी शुरू की जा चुकी है। शहर से कोसों दूर जंगलों में रह रहे ये लोग कंप्यूटर, कौशल विकास और साक्षरता के मामले में समाज की मुख्य धारा से कहीं कम नहीं हैं। और ये प्रयास लगातार जारी है। 

अपने अथक प्रयासों के लिए सम्मानित हो चुके हैं बृज भूषण चावला

यूनाइटेड नेशंस और आर्ट ऑफ़ लिविंग एक साथ मिलकर 8 सहस्राब्दी विकास लक्ष्य की ओर कार्यरत हैं। इन 8 लक्ष्यों में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है–  सार्वभौमिक शिक्षा! बृज भूषण चावला जी ने दुनिया को भारत की ओर से, इस क्षेत्र में एक अभूतपूर्व योगदान दिया है। उनके इस प्रयास के लिए उन्हें आर्ट ऑफ़ लिविंग की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है।

वर्तमान में चावला जी आर्ट ऑफ़ लिविंग की कई सेवा परियोजनाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हुएहैं। वे  आर्ट ऑफ़ लिविंग ट्राइबल वेल्फयेर के निदेशक भी हैं।  2015 से वह कोलकाता में आर्ट ऑफ़ लिविंग के उड़ान प्रोजेक्ट के लिए  भी कार्य कर रहे हैं। ‘उड़ान’ उन अनूठी परियोजनाओं में से एक है, जहाँ सेक्स वर्कर्स की बच्चियों को मुफ्त शिक्षा और छात्रावास की सुविधा प्रदान की जाती है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था- 'उठो जागो और लक्ष्य प्राप्त किये बिना मत रुको। बृज भूषण चावला जी और उनके लक्ष्य की यात्रा स्वामी विवेकानंद के इस कथन को बखूबी चरितार्थ करती है। 

राष्ट्रीय युवा दिवस पर आर्ट ऑफ़ लिविंग आप सभी युवाओं  को असीम शुभकामनाएँ प्रेषित करता है।

लेखिका : रत्नम सिंह 

आप अपने विचार ratnam.singh@digital.artofliving.org पर भेज सकते हैं।