10 साल के कॉर्पोरेट जीवन के बाद, मुझे एहसास हुआ,कि जीवन सिर्फ पैसा कमाने से भी कहीं बढ़कर है। कॉर्पोरेट जीवन कॉफी और सिगरेट पर चल रहा है बस,और सोमवार को कार्यालय में घुसनाऔर शुक्रवार को बाहर आना।
मैं बिहार के एक छोटे से शहर से हूं,मैंने अपना बचपन,भैंसों को गंगा में नहलाते हुए बिताया,औरअपने माता-पिता को हमारे खेत में बीज बोने में मदद की। मैं अपनी बुनियादी जड़ों की ओर वापस जाने के लिए तरस रहा था,तभी फिर मुझे सही जगह नौकरी मिली। आर्ट ऑफ लिविंग आश्रम में एक पर्माकल्चर परियोजना के समन्वय का अवसर मुझे मिला।
उस समय जगह बंजर थी, पत्थर से बिखरे हुए थे,वहां खरपतवार भी नहीं उगते थे।तीन महीने के भीतर हमने इसे हरा-भरा स्वर्ग बना दिया हमने एक भी बोरवेल खोदे बिना इस जगह को प्रबंधित किया।
हमने सिर्फ पर्माकल्चर (डेवलोपमेंटऑफ एग्रीकल्चरल एकोसिस्टम) के सिद्धांतों का इस्तेमाल किया।
अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मीडिया के माध्यम से यह एक पर्यटक आकर्षण का केंद्र बन गया।
मुझे नहीं लगता कि बड़ी पर्यावरण परियोजनाओं के लिए सरकार को करोड़ों रुपये लगाने की जरूरत है। बल्कि,उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर कुछ करने वाले व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।
फिर ऐसी परियोजनाअछूती ही रह जाती है।
मैंने इसे अपने पर्माकल्चर प्रोजेक्ट के साथ होते हुए देखा है। इतने सारे लोगों को इस एक परियोजना से सीख एवं प्रेरणा मिली है।
एक बार,एक व्यापारी ने मुझसे कहा कि वह देखेगा,कि मैं जो काम सिखाता हूं,उससे उसके लिए क्या लाभ हैं। उनके पास 90 एकड़ जमीन और 5000 लीटर का चिलर था।
उसने गहन रासायनिक खेती का इस्तेमाल किया था,उसने वह सब हटा दिया।अपनी जर्सी गायों को बेच दिया, प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल बंद कर दिया।अब उसके पास एक विशाल सेट- अप है,वह निरंतर चलता है।
एक और उदाहरण में, एक ऐप्पल इंजीनियर ने आश्रम के पर्माकल्चर साइट पर कुछ समय बिताने के बाद अपनी नौकरी छोड़ने और अपने गांव में कुछ इसी तरह की स्थापना(सेट- अप ) करने का फैसला किया। अब वह अपने गांव के सरपंच हैं।
मेरे सबसे खुशी के पलों में से एक पल था,जब यह सब मेरे गांव में शुरू हुआ। मेरे पिता,जो कभी रासायनिक खेती पर बहुत अधिक निर्भर थे,उन्होंने हमारी सभी जर्सी गायों को बेच दिया और एक देसी नस्ल की गाय खरीदी। उन्होंने गांव में सभी को गाय के गोबर का उपयोग करने के लिए कहना शुरू कर दिया, न कि रसायनों का। अब गांव वालों ने मुझसे उनके लिए 10बोस इंडिकस गायों की व्यवस्था करने को कहा है।
मेरे गाँव में यह एक क्रांति बन गया है,एक ऐसी जगह जहाँ इंटरनेट तक नहीं पहुँचा है।
एक दिन ऐसा हुआ कि मैं आश्रम के एक ग्रुप से बात कर रहा था और किसी ने इसे रिकॉर्ड कियाऔर फेसबुक पर डाल दिया। वीडियो को “एक मिलियन” व्यूज मिल चुके हैं। मुझे ऐसी कुछ भी उम्मीद नहीं थी।हालांकि मैंने वीडियो को पहले स्थान पर नहीं रखा।
अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं किस राज्य, किस जगह,किस मेट्रो में जाता हूंऔर मैं किससे मिलता हूं, अब वे बस इसके बारे में जानते हैं।
कल ही, मैं आश्रम के डाइनिंग हॉल से बाहर निकल रहा था तभी एक कपल रुका और वह बोले कि “वीडियो के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,अब जब भी मैं रसोई के कचरे को प्लास्टिक की थैली में बाँधता हूँ,तो मुझे बस वह बात याद आती है,जब आप कहते हैं कि - “ प्लास्टिक की थैली में जो कचरा बाँधते हैं,और फेंक देते हैं, वह चाँद पर नहीं जाता,वह पृथ्वी पर ही रहता है,”। इसलिएअब मैं पहले बैग खोलता हूं,और सड़ने वाले कचरे को एक जगह और प्लास्टिक के कचरे को दूसरी जगह फेंकता हूं।
आपके वीडियो का मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है।
“ - बिनय कुमार, संस्थापक सदस्य, आश्रम पर्माकल्चर प्रोजेक्ट.”