अभाव से .... पूर्णता की ओर !! - स्वामी प्रणवानंदजी

स्वामी प्रणवानंदजी  का उत्साह, जोश और सेवा के प्रति  तत्पर भाव, उनके समक्ष बिताये कुछ समय में ही आभास किया  जा सकता है। अपने व्यस्त दिनचर्या में भी हर पल को उपयोगी बनाना और दूसरों की सेवा में लगे रहने की सीख उनसे मिलती है। स्वामीजी आज कल आर्ट ऑफ़ लिविंग महाराष्ट्र के  ब्युरो ऑफ कम्युनिकेशन के समन्वयक, अॅडव्हान्स मेडिटेशन प्रोग्राम, प्राणायाम ध्यान शिवीर, श्री श्री योगा, युवा नेतृत्व प्रशिक्षण शिवीर, मीडिया, अॅपेक्स, और सहज समाधी ध्यान आदि शिवीर लेने के लिये उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, के साथ साथ  महाराष्ट्र में  भी सफर करते हैं। २०१३ से  महाराष्ट्र में शुरू हुई जल जागृती अभियान के स्वामीजी समन्वयक है। इस जल जागृती अभियान के द्वारा अब तक २८  नदियां पुनर्जीवित हो चुकी है।

स्वामीजी ने अपनी जीवनवृत्त सुनाते हुए कहा कि ’मैं ‘संतोष कापडणे सर’ के नाम से जाना जाता था।  कोर्स करने के पहले मै क्रोध, अहंकार और जीवन की अनियमितताओ से परेशान था। शतरंज सिखाने से काफी पैसे  कमाकर भी, मेरे पास पैसे कम ही पडते थे। जनवरी २००० में शतरंज प्रतियोगिता  के समय रश्मीन पुलेकर(अब पूर्ण कालीन प्रशिक्षक)ने आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम  के बारे में जानकारी दी और फरवरी २००० में मै और आनंद वैशंपायन(अब स्वामी वैशंपायन),  दोनो ने मिलकर नाशिक में यह कार्यक्रम किया।

क्लीन बोल्ड

आगे वार्तालाप जारी रखते हुए उन्होंने कहा  कि, ‘कार्यक्रम करने से पूर्व, मैं यह मानता था कि, ’ मैं सबकुछ जानता हूं और मेरे ज्ञान से  अधिक मुझे कोई नहीं  सिखा सकता’।  और तो और मुझे  दाढी वाले बाबाओं पर बिलकुल विश्वास नहीं था। मेरे नज़रिये में ऎसे बाबा केवल लोगों को फसाते हैं ऐसी मेरी सोच थी। मैं सिर्फ अपने मित्र का दिल रखने के लिए और अपनी  जिज्ञासा के कारण शिविर में शामिल हुआ था। लेकिन शिवीर के दुसरे दिन ही, सुदर्शन क्रिया करने के पश्चात मैं पूरी तरह से क्लीन बोल्ड हो गया। "

अपना अनुभव बताते हुए संतोष जी (स्वामीजी) ने कहा कि “सुदर्शन क्रिया और शिवीर की विभिन्न प्रक्रियांए करने के बाद मेरी चिडचिडाहट कम हो गई। रोज़ाना तीस चालीस कप चाय का व्यसन छुट गया, प्रातः जल्दी उठने का नियम बन गया, अशांत मन शांत होने लगा। गर्म स्वभाव में नरमाई आ गयी। शतरंज खेलते और सिखाते समय मन केंद्रित होने लगा। ” उसके पश्चात लोगों को शिवीर करवाने  एवं शिवीर में सहायता करने में वह जुट गए। शिवीर करने वाले सभी प्रतिभागियों के जीवन में शांती और आनंद की लहर उठते देखकर स्वामीजी को गुरुदेव, साधना, सेवा, सत्संग में दिलचस्पी बढने लगी। परन्तु शतरंज खेलने की वजह से सभी चीजो में वे काफी सावधानी बरतते थे।

दिव्य दर्शन

मन में कई प्रश्न उभर रहे थे, जैसे ‘ सुदर्शन क्रिया का निर्माण कर्ता कौन?  कहीं यह कोई जादू टोना तो नहीं? इस जिज्ञासा के साथ मैं अगले कार्यक्रम करने के लिए  रिषीकेश पहुंचा और वहीँ मुझे सौभाग्यवत गुरुदेव के ‘दर्शन’ हुए। वे सरलता से भरपूर, सादे, मुस्कराते हुए व्यक्तित्व के लगे। सबको आशीर्वाद देते हुए, और प्रसाद बांटते  हुए वे पूछ रहे थे ‘तुम सब खुश हो ना?’ उनके एक मात्र दर्शन से मन की सब शंकाएं दूर हो गयी, सभी प्रश्न और संदेह की लहरें,  गंगाजी में बह गये। उनकी संगत में मन स्थिर हो गया और  उनसे बार बार मिलने की तीव्र इच्छा होने लगी। वह ऐसे दिव्य दर्शन थे कि उस पल में मेरी ज़िन्दगी बदल सी गई। गुरुदेव भी सहजता  और उत्साह के साथ सबसे मिलते रहे। "

जिस  आनंद प्राप्ती का अनुभव उन्हें  हुआ, वही आनंद औरों को भी मिले इस उद्देश से स्वामी प्रणवानंदजी ‘आर्ट ऑफ लिविंग ’के प्रशिक्षक बने। इसके पूर्व कोई  भी धार्मिक या अध्यात्मिक कार्य में समय ना देनेवाले और रुची ना रखने वाले स्वामी प्रणवानंदजी धीरे धीरे इस सेवाकार्य में जुट गए जिसके फलस्वरूप उनका जीवन आनंद से भरपूर हो गया।  

समृद्ध जीवन

स्वामीजी ने कहा कि "गुरुदेव की सेवा का कार्य जैसे जैसे मै आगे ले जा रहा था, वैसे वैसे मेरे जीवन में समृद्धी बढती रही। गुरुदेव ने बिना मांगे ही सब कुछ दे दिया था  । स्वामीजी ने सेवा और परोपकार का महत्व समझते हुए अपना अनुभव बताया कि जब वे ज्ञान का प्रसार और लोकसेवा के लिये उत्तर भारत के  सफर पर निकले तब उनके पास केवल ४०० रुपये थे। उनका पूरा सफर, आवास की व्यवस्था, सेवा आदि का  खर्चा कैसे हुआ यह उन्हे पता ही नहीं चला। कार्य समाप्त कर जब वे  घर पहुचें, तब भी  उनके पास ४०० रुपये बाकी थे और यह देख  वे विस्मित हो गये। 'जब हम सेवा और परोपकार के कार्य में मगन  रहते है, तब ईश्वरीय शक्ती हमारा ख्याल रखती है। '  यह अनुभव उन्हें सेवा में कई बार हुआ।

६ जुन २०१७ को गुरुदेव ने उन्हें  स्वामी प्रणवानंद का नाम दिया और उनकी  सेवा का सन्मान किया गया। इस सेवा कार्य एवं  ज्ञान के प्रसार के लिये उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात के साथ साथ  महाराष्ट्र का सफर करते हुए स्वामीजी अब रुद्रपूजा और पदयात्रा भी करते हैं। सेवा की अनेक योजनाओं मे उनका सहभाग है।

स्वामी प्रणवानंदजी इस समृद्धी का रहस्य बताते हुए बोल रहे थे कि, “मेरे जीवन में गुरु के  आगमन से ही जीवन पूर्णतः समृद्ध हो गया और गुरुदेव ने मेरी जिंदगी सुहानी बना दी। अपने लिये तो सभी जीते है, परन्तु  औरों के लिये जीना और सहायता करने में जो आनंद प्राप्त होता है वह अनमोल है। इसके लिये केवल एक ही मार्ग है, ‘आर्ट ऑफ लिविंग ’