काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशिष्ट का उपयोग करेगी आर्ट आॅफ लिविंग | Solid waste management plant for Kashi Vishwanath temple

 

आर्ट आॅफ लिविंग पर्यावरण दिवस पर वाराणसी में पायलट परियोजना प्रारंभ करने जा रही है । काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी और अन्य मंदिरों ने निकलने वाला अवशिष्ट अब गंगा में बहाने की बजाय उसका प्रसंस्करण किया जाएगा

वाराणसी। आर्ट आॅफ लिविंग और कोल इंडिया लि. तथा वाराणसी नगर निगम वाराणयी में ठोस अवशिष्ट प्रबंधन परियोजना पर्यावरण दिवस पर प्रारंभ करने जा रहे हैं। ठोस अवशिष्ट प्रबंधन के प्लांट को आर्ट आॅफ लिविंग संचालित करेगा और काशी विश्वनाथ और अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों से निकलने वाले फूलों के अवशिष्ट का प्रसंस्करण कर उपयोग में लाया जाएगा। इस प्रसंस्कृत अवशिष्ट को आर्गेनिक खाद के रूप में शहरी क्षेत्र के बगीचों व खेती के लिए उपयोग में लाया जाएगा।

अभी तक यह अवशिष्ट राम घाट पर गंगा में डाला जाता था। वाराणसी नगर निगम ने इसके लिए जगह उपलब्ध करवा दी है तथा प्लांट के लिए गंगा व अन्य जगहों से अवशिष्ट की भी व्यवस्था करने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की है।

इसका प्रारंभिक ट्रायल पर्यावरण दिवस 5 जून पर प्रारंभ किया जाएगा। इस कार्यक्रम के लिए शहर के मेयर राम गोपाल मोहाले, म्यूनिसिपल कमीश्नर हरिप्रताप साहनी और आर्ट आॅफ लिविंग के अपेक्स सदस्य रमेश अग्रवाल, परियोजना निदेशक शुभ्रा रे तथा दल के सदस्य ऋषि मेहरा के साथ अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहेंगे। अनुमान है कि प्रतिदिन 2000 टन अवशिष्ट का प्रबंधन करेगा और प्रतिवर्ष 730000 टन का अवशिष्ट जो गंगा या आस-पास के क्षेत्रों में बहाया या डाला जाता था उससे बचा जा सकेगा। इससे यहाॅं के स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। इससे बनने वाले कम्पोस्ट खाद से यह स्वयं संचालित हो सकेगा।

यह हरित अभियान गंगा बचाओ अभियान में आर्ट आॅफ लिविंग की ओर से एक कदम है। यह अनुमान है कि इस नदी से 500 मिलियन लोग का जीवन चलता है और भारत की एक तिहाई जनसंख्या इसी गंगा के बेसिन में रहती है। लेकिन लगतार दोहन और अवशिष्टों के कारण गंगा विश्व की सार्वधिक 5 प्रदूषित नदियों में से एक हो गई है।
वाराणसी में चढावे के रूप में सबसे अधिक अवशिष्ट इकट्ठा होता है और गंगा मे जाता है। इनमें भक्तों द्वारा कई तरह के फूल, धूप, प्लास्टिक पैकेट आदि चढाए जाते हैं और यह सब त्यौहारों पर कई गुना बढ जाता है।

आर्ट आॅफ लिविंग लगातार इस संबंध में समाज के लोगों को जागरूक करती आ रही है और सामाजिक जिम्मेदारी के तहत गंगा को बचाने के लिए अपील कर रही है। श्मेश अग्रवाल, अपेक्स सदस्य, आर्ट आॅफ लिविंग कहते हैं कि, ‘‘प्रशासन मंदिरों से निकलने वाले अवशिष्टों के निपटान से बहुत ज्यादा परेशान था और ज्यादातर इसे गंगा में बहाया जाता था। यह अपने आप में पहली परियोजना है जो प्रारंभ की जा रही है।’’

विदित है कि आर्ट आॅफ लिविंग ने इसी तरह की व्यवस्था दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता, कामाख्या मंदिर आसाम, विंध्याचल उत्तर प्रदेश तथा तारापीठ पश्चिम बंगाल में पूर्व में की है।

सोर्स - हैलो बिहार