विषाक्त भोजन उगाना बंद करें

इंदौर के सुदूर क्षेत्रों से चलकर,वह मोटर साइकिल से भोपाल आते थे। नंदकिशोर बरहर, ये  जानने के लिए उत्सुक थे कि प्राकृतिक कृषि किस प्रकार से करनी है। श्री श्री प्राकृतिक कृषि कार्यक्रम से वह बहुत प्रभावित थे। उन्होनें बोने के लिए 50 किलो बांसी गेहूँ (एक प्रकार का गेहूँ )लिया। प्राकृतिक कृषि का अभ्यास करते हुए गेहूँ बोने के बाद, उन्होनें एक एकड़ जमीन में 22 क्विंटल गेंहू उगाया, जिसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। रासायनिक कृषि द्वारा अधिकतम फसल केवल 18 से 19 क्विंटल होती है। नंद किशोर अब प्राकृतिक कृषि करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

सतत कृषि का महत्व

सतत कृषि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और  इसके स्वास्थ्य की रक्षा करके पारिस्थितिक तंत्र का पोषण करती है। किसान, सतत कृषि में प्राकृतिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं, जिससे बेहतर गुणवत्ता और अधिक मात्रा में फसल प्राप्त होती है। इसमें रसायन मुक्त बीजों का प्रयोग किया जाता है, जिनमें प्राकृतिक खाद लगाई जाती है जो जैव विविधता के लिए आवश्यक है। इस प्रकार से उत्पन्न किया गया भोजन खाने योग्य और स्वास्थ्यवर्धक होता है।

एक विषाक्त चक्र

कृषि क्षेत्र में कई क्रान्तियाँ देखी गई हैं,जिनमें रासायनिक कृषि को प्रोत्साहित किया गया। लंबे समय तक रासायनिक कृषि करने से किसानों का भविष्य, उनकी फसल और उनका जीवन बहुत बुरी तरह से तबाह हो गया। भोपाल और मध्यप्रदेश के किसानों ने यूरिया का छिड़काव करने वाली कैन को फेंक दिया है और अब वे भी प्राकृतिक कृषि कर रहे हैं।

बटनलाल मीणा, भोपाल में चाँदपुर गाँव के एक आदरणीय वृद्ध पुरुष ने बताया, "रसायन का प्रयोग करने के बाद से जमीन की पानी सोखने की क्षमता में वृद्धि हुई है। स्कीम के अन्तर्गत आने वाले रसायन और उर्वरक हमारे लिए बहुत महँगे हैं। इनका प्रयोग करने से मिट्टी पानी को सोखना बंद कर देती है और कुछ समय के बाद यह विषाक्त हो जाती है। इसे फिर से उर्वर बनाने के लिए कोई उपाय नहीं है और हमारा मार्गदर्शन करने वाला भी कोई नहीं है।"

किसानों ने एकमत होकर यह मान लिया है कि कीटनाशक जहरीले हैं। पहले भारत में, किसानों का आत्महत्या करना, अधिक खर्च, फसल की कम पैदावार और मिट्टी का अनुपजाऊ हो जाने का विषाक्त परिणाम थे। किसानों को यह याद दिलाया गया कि उनके पूर्वज किस प्रकार से कृषि करते थे।

एक प्राचीन तकनीक के चमत्कार

दीपक मीणा, एक छोटे से गाँव, बेसंखेड़ा के किसान ने बताया, "हम अपने भविष्य को लेकर परेशान थे और हमें कोई आशा नहीं थी। हम केवल यह जानते थे कि प्राचीन तरीके से कृषि केवल गोबर के द्वारा की जाती है लेकिन अन्य तकनीकों के बारे में आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री प्राकृतिक कृषि प्रोग्राम में हमें बताया गया। श्री श्री प्राकृतिक कृषि किसानों के लिए एक ऐसा प्रोग्राम है,जिसमें प्राकृतिक कृषि की कम खर्च या फिर शून्य खर्च वाली तकनीकों के बारे में सिखाया जाता है।"

प्राकृतिक कृषि को एक जोखिम मानकर दीपक ने 10 किलो गेंहू बोया।

दीपक ने मुस्कुराते हुए, हमें गेंहू और चावल की अपनी फसल दिखाते हुए कहा," इससे मुझे 70 क्विंटल फसल प्राप्त हुई। मेरा विश्वास है कि विषाक्त भोजन को ना तो खाना चाहिए और ना ही उगाना चाहिए।अगले वर्ष, मैं बोने के लिए एक क्विंटल बीज लाऊंगा।"

अपने पहले ही प्रयास में कई किसानों ने यह बताया कि श्री श्री प्राकृतिक कृषि में सिखाए गए तरीकों से बहुत कम खर्च में मिट्टी की गुणवत्ता और उर्वरता में बहुत अधिक सुधार हुआ। प्राकृतिक कृषि के लिए देसी गाय, पानी और पुरातन बीज (वे बीज,जिन्हें पुरानी पीढ़ियों ने सुरक्षित रखा हुआ थे ),जिन्हें बिना रसायन के उगाया गया थे; की आवश्यकता होती है।

इसी बीच, रवीन्द्र श्रीवास्तव, भोपाल के कृषि विस्तार अधिकारी, इस प्रोजेक्ट की सफलता को देखने के लिए उपस्थित थे। श्री श्री प्राकृतिक कृषि द्वारा होने वाले परिवर्तन को "स्वागत परिवर्तन" कहते हुए उन्होंने कहा, "जब रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है तो मिट्टी को खाद मिल जाती है लेकिन इसके लगातार प्रयोग से मिट्टी विषैली हो जाती है।"

एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, "एक समय में पंजाब को उसके सुनहरे खेतों के लिए जाना जाता थे, लेकिन अब वह कैंसर प्रवृत्त राज्य बन गया है। वहाँ किसानों ने अधिक उत्पादन के लालच में रसायनों और यूरिया के प्रयोग को बढ़ा दिया। वह एक बहुत बड़ी गलती थी।"

प्राकृतिक कृषि - जिसमें सब कुछ प्रयोग हो जाता है

आज बाज़ार में (मिलावटी या अप्राकृतिक) हल्दी, तिल और धनिए से लेकर दूध, सब्जियाँ और फल उपलब्ध हैं। श्री श्री प्राकृतिक कृषि के सत्रों के द्वारा, किसानों ने रासायनिक कृषि के मिट्टी एवम् इससे उत्पन्न होने वाले भोजन के सेवन से होने वाले बहुस्तरीय प्रभावों को समझा। इससे अब वे प्राकृतिक कृषि करने के लिए सहमत हो गए हैं और विश्वास करते हुए एक अन्य तकनीक का प्रयोग करना चाहते हैं।

बिसरी लाल, चाँदपुर, उत्तरप्रदेश के एक किसान ने यह बताया, "रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से फसल लंबी, चमकदार और मुलायम होती है। यह बहुत अद्भुत है। इस तकनीक के द्वारा सभी भारतीय किसानों को बहुत अच्छी फसल मिलेगी, कम लागत से बहुत कुछ बचा पाएंगे, पानी की बचत होगी और उन्हें धन लाभ होगा। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्राकृतिक रूप से उगाए गए भोजन को खाकर भारत की जनता भी चमक उठेगी।"

क्रांति की शुरुआत हमसे होती है

किसान एक क्रांति की शुरुआत करने जा रहे हैं। यह क्रांति भारत को फिर से सोने की चिड़िया ( किसानों के लिए ,इस अभिव्यक्ति का अर्थ वह धरती है,जिसमें सुनहरा गेहूँ उगता है) बना देगी।

बिसरी लाल ने कहा, "जब किसान श्री श्री प्राकृतिक कृषि की तकनीकें सीखेंगे और बाज़ार में अपनी फसल बेचने के लिए जाएंगे तो मैं गारंटी लेता हूँ कि हर किसान प्राकृतिक कृषि करना शुरू कर देगा।"

हम इन किसानों को सफल होने के लिए सहयोग करेंगे। आप मिलावटी दूध, अनाज और फलों की आपूर्ति को रोक सकते हैं। इसके बजाय, पोषण युक्त भोजन का समर्थन करें। सब कुछ हमारे चुनाव से ही शुरू होगा कि हम चाहते क्या हैं? क्रांति की शुरुआत हमसे ही होगी!

कहानी लिखने का श्रेय: मोनिका पटेल

प्रकाशन : 16 अगस्त, 2013