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  1. अष्टांग योग का परिचय

    मानवीय चेतना का बीज मानव की चेतना एक बीज के समान है। जैसे एक बीज में एक वृक्ष की, शाखाओं की, फल-फूल और पत्तियों की,  प्रजनन की संभावनाएं समाहित हैं, वैसे ही अपार संभावनाओं को लिए मानवीय मन होता है। एक बीज के प्रस्फुरण के लिए उवर्रक मिट्टी, उचित सूर्य का प ...
  2. तीन गुणों के पार | Three Gunas

    सूत्र 19: विशेषाविशेषलिङ्गमात्रालिङ्गानि गुणपर्वाणि॥१९॥   पतंजलि आगे व्याख्या करते हैं कि किस तरह तीन गुण हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं- कुछ चीजें सात्विक, कुछ तामसिक और कुछ राजसिक होती हैं। तामसिक गुण में जड़ता अधिक होती है। राजसिक गुण में क्रिया कलाप ...
  3. दुःख निवारण

    जब यह जान लेते हैं कि संसार में सब कुछ दुःख ही है तब दुःख निवारण का उपाय, दुःख को मिटाने का तरीका क्या है? महृषि पतंजलि कहते हैं- सूत्र 16: हेयं दुःखमनागतम्॥१६॥ दुःख के मूल कारण को मिटाना आवश्यक है। जो दुःख अभी जीवन में आया नहीं है, जो प्रस्फुरित नहीं हुआ ...
  4. क्लेशों की विभिन्न अवस्थाएं

    प्रकृति ने यह पांच क्लेश हर शरीर के साथ दिए हैं। अब प्रश्न यह है कि इनकी परत को कितना क्षीण किया जा सकता है और यह कितनी मोटी बनी रह सकती है।  यही तुम्हें जीवन में परिष्कृत या अपरिष्कृत बनाता है। ये क्लेश चार अवस्थाओं में हो सकते हैं:- प्रसुप्तावस्था   में ...
  5. दुःख के पांच स्रोत

    जीवन में दुःख के मूल कारण क्या हैं? सूत्र 3: अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः पञ्च क्लेशाः॥३ अविधा, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश, यही पांच क्लेश हैं। सूत्र 4: अविद्या क्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्ततनुविच्छिन्नोदाराणाम्॥४॥ अविद्या     सूत्र 5: अनित्याशुचिदुः ...
  6. क्लेश, कर्म और ध्यान

    महृषि पतंजलि अब तक कहते हैं कि अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश, दुःख के इन पांच स्त्रोतों को साधना के माध्यम से क्षीण करते जाओ।   सूत्र 10: ते प्रतिप्रसवहेयाः सूक्ष्माः॥१०॥ जब तुम इन क्लेशों को क्षीण करते करते सूक्ष्मतम बनाते जाते हो उसके उपरान्त ...
  7. ईश्वर प्रणिधान

    ईश्वर प्रणिधान- ईश्वर के लिए भक्ति कैसे हो सकती है, प्रेम कैसे उमड़ सकता है?  ईश्वर को अपने आप से अलग देखना पहला कदम है। समर्पण के लिए भी दो की आवश्यकता होती है, भगवान और भक्त। यह मानो कि ईश्वर ही सब कुछ है और तुम कुछ भी नहीं हो।  ईश्वर सर्वशक्तिमान और सर ...
  8. तपसः और स्वाध्याय

      तपसः जो भी तुम्हारे लिए आसान नहीं है, उससे भी इच्छापूर्वक  निकलना ही तपसः है। यह तुम्हें बड़ी मजबूती प्रदान करता है। परन्तु लोग इसे भी खींच खींच कर दिखावे के लिए प्रयोग करने लगते हैं और स्वयं को प्रताड़ित करते हैं। तपसः भी तीन तरह के होते हैं। शरीर के ल ...
  9. क्रिया योग

    देखो, जब कोई बहुत बैचेन होता है तब वो समय के बड़े जागरूक होते हैं, जैसे जैसे हर एक क्षण गुजरता है। उनका पूरा ध्यान किसी एक आगे आने वाली घटना पर होता है, समय पर नहीं। जैसे किसी ट्रेन-बस का इंतज़ार करते वक़्त, इसी धुन में रहता है, क्या ट्रेन आ रही है? क्या ट ...
  10. कर्मों की छाप से मुक्ति

    सूत्र 50: तज्जः संस्कारोऽन्यसंस्कारप्रतिबन्धी ॥५०॥ समाधि के प्रसाद स्वरुप प्राप्त आत्मिक ज्ञान का संस्कार, इस ज्ञान की छाप, बाकी सभी पुरानी छापों को, जो अनावश्यक हैं, उनको मिटा सकती है। जितना तुम ध्यान की गहराई में जाते हो, उतना ही तुम्हारे पुराने छाप मिट ...