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सत्य और अहिंसा में स्थापित होना ही योग है
अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः ॥३५॥ जब कोई व्यक्ति अहिंसा में स्थापित हो जाता है, तो उसकी उपस्थिति मात्र से ही हिंसा छूट जाती है।. यदि हम अहिंसा में प्रतिस्थापित हो जाते हैं तब हमारी मौजूदगी से ही दूसरे प्राणियों की हिंसा शांत हो जाती है। अगर कोई ... -
ब्रह्मचर्य
" ब्रह्मचर्य प्रतिष्टयम् वीर्यलाभः '' (II सूत्र 38 II) " ब्रह्मचर्य में स्थित होने से शक्ति में वृद्धि होती है " ब्रह्मचर्य क्या है और ब्रह्मचारी कौन है ? हमारे प्राचीन ऋषियों ने जीवन को चार भागों में बाँटा है। जीवन के प्रथम बीस व ... -
योग के आठ अंग
मानव चेतना एक बीज की भांति है।एक बीज में पेड़,पत्तियों,डालियों,फल,फूल और गुणा होते हुए अपनी संख्या बढ़ाने की संभावना होती है।मानव मन भी ऐसा ही है।एक बीज को अंकुरित होकर खिलने के लिए उपयुक्त जमीन,उचित परिस्थितियों,सूर्य के प्रकाश,पानी और उपयुक्त मिट्टी की ... -
आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार
यम और नियम की चर्चा के बाद महर्षि पतंजलि आसन को परिभाषित करते हुए कहते हैं- आसन सूत्र 46: स्थिरसुखमासनम्॥४६॥ आसन क्या है? स्थिरसुखमासनम्- जो स्थिर भी हो और सुखदायक अर्थात आरामदायक भी हो, वह आसन है। अधिकतर जब हम आराम से बैठे होते हैं तो स्थिर नहीं होते ... -
पांच नियमों के पालन का लाभ
सूत्र 40: शौचात्स्वाङ्गजुगुप्सा परैरसंसर्गः॥४०॥ व्यक्तिगत शौच और स्वच्छता रखने से तुम्हारा भौतिक शरीर से मोह उठ जाता है। तुम अपने आंतरिक सूक्ष्म शरीर, प्रकाश स्वरुप के प्रति और अधिक जागरूक हो जाते हो, स्वाङ्ग-जुगुप्सा। शरीर के अलग अलग अंगों के प्रति इतनी ... -
अष्टांग योग के पांच नियम
शौच और संतोष एक ही साथ आते हैं। बिना शौच के संतोष भी नहीं हो सकता है। हमेशा लोगों के साथ ही लगे रहना, हमेशा दूसरों को गले ही लगाते रहना, ऐसा करते रहने से तुम अपनी ऊर्जा को अपने में समाहित नहीं रख पाते हो। हमेशा किसी न किसी के साथ रहने से स्वयं के होने का ... -
शौच और संतोष
पांच यम के बाद महर्षि पतंजलि पांच नियम की चर्चा करते हैं सूत्र 32: शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः॥३२॥ शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान, पांच नियम हैं। शौच शौच अर्थात शुचिता, दो तरह के शौच को परिभाषित किया गया है। पहला है शारीरिक ... -
अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह
सूत्र 37: अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम्॥ सत्य और अहिंसा के बाद तीसरा यम है अस्तेय, अर्थात चोरी नहीं करना। तुम किसी को देखकर कहो कि अरे, काश मेरी आवाज भी उनके जैसे होती, ऐसी इच्छामात्र से ही तुम उनकी आवाज चोरी कर चुके हो। तुम्हें किसी सुन्दर महिला य ... -
सत्य एवं अहिंसा
पांच यम क्या है? महर्षि पतंजलि कहते हैं- सूत्र 30: अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः॥३०॥ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, यह पांच यम हैं। सूत्र 31: जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम्॥३१॥ यह ज्ञान महानतम हैं क्योंकि यह किसी भ ... -
संसार दुःख है।
तुम्हें जन्म से लेकर जीवन में जो भी सुख मिला है, यदि तुम उनको परखोगे तो यह पाओगे कि प्रत्येक सुख के लिए तुम्हें कुछ न कुछ शुल्क चुकाना पड़ा है। यह शुल्क जो तुम चुकाते हो, वही शुल्क दुःख है। महृषि पतंजलि कहते हैं- सूत्र 15: परिणामतापसंस्कारदुःखैर्गुणवृत्ति ...