"ब्रह्मचर्य प्रतिष्टयम् वीर्यलाभः'' (II सूत्र 38II)
" ब्रह्मचर्य में स्थित होने से शक्ति में वृद्धि होती है "
ब्रह्मचर्य क्या है और ब्रह्मचारी कौन है ?
हमारे प्राचीन ऋषियों ने जीवन को चार भागों में बाँटा है। जीवन के प्रथम बीस वर्ष, हम ज्ञान प्राप्त करने हेतु कार्यरत रहते हैं। इसी को ब्रह्मचर्य कहा गया है। ब्रह्मचर्य का मूल है कि मनुष्य को सुख के पीछे दौड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि जो सुख के पीछे भागता है वह ज्ञान ग्रहण नहीं कर पाता है।
ब्रह्मचर्य आपको शक्ति देता है, अपार शक्ति देता है। ब्रह्मचर्य योग- जीवन शैली सिर्फ ब्रह्मचर्य से बढ़कर है। 'ब्रह्म' का अर्थ है अनंत, 'चर्य' का अर्थ है- अनंत में गति करना, अपने विशाल स्वभाव को जानना। यह सोचना कि हम केवल शरीर नहीं हैं बल्कि एक ज्योति समान हैं। और दुनिया में ऐसे विचरण करना जैसे कि हम सिर्फ आकाश तत्व हैं। तब ब्रह्मचर्य सहज अपने आप ही हो जाता है।
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जब हम ध्यान में बैठेते हैं तब यह आभास होता है कि हम केवल शरीर नहीं हैं। हम पंख के समान हल्का महसूस करते हैं।हम जितना अधिक आनंदित रहते हैं, उतना ही अधिक हम अनंत चेतना के साथ तालमेल बिठाते हैं, और शरीर के तनाव या शारीरिक भार को उतना ही कम महसूस करते हैं। यही है ब्रह्मचर्य योग अपनी इन्द्रियों में न फंसना, बल्कि अपनी आत्मा की शरण में जाना, जो हमारा स्वभाव है। यही है अपने
स्वभाव में वापस आना । एक छोटी बुद्धि वाला व्यक्ति अपनी तृष्णा आगे हमेशा झुकता रहता है। वह इंद्रियों के सुख के माध्यम से संतुष्टि पाने की कोशिश करता है और बुरी आदतों को अपनाता है। गर्मी उसके सिर में चढ़ जाती है। और जब आपका सिर गर्म होता है, तो आपकी दृष्टि और धारणा धुंधली हो जाती है।
सम्भोग जीवन का एक हिस्सा है, लेकिन उसके के प्रति जुनून एक ऐसी चीज है जो आध्यात्मिक प्रगति में बाधक है। ऐसे व्यक्ति की ऊर्जा कम होती है; वे चारों ओर से एक नकारात्मक और नीरस छंद से घिरे रहते हैं जो किसी को पसंद नहीं आता। इससे दिमाग कमजोर होता है और जीवन में कोई जोश या प्रतिबद्धता नहीं होती है।
ब्रह्मचर्य के लाभ
" ब्रह्मचर्य प्रतिष्टयम् वीर्यलाभः " ब्रह्मचर्य का पालन करने से अत्यधिक शक्ति मिलती हैसृजनात्मकता उदय होती है। एक सच्चा ब्रह्मचारी कामवासना, स्वाद या गंध जैसे इंद्रियों के सुखो में लिप्त नहीं होगा। वह स्वयं को शरीर से अधिक- चेतना या ब्रह्म के रूप में देखता है। एक बार जब आप में ब्रह्मचर्य दृढ़ता से स्थापित हो जाता है, तो आप विशाल और शक्तिशाली बन जाते हैं।
(ये ज्ञान पत्र गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के पतंजलि योग सूत्र के व्याख्यान पर आधारित हैं )