पित्त के लंबे समय के असंतुलन के प्रभाव
कफ के लंबे समय के असंतुलन के प्रभाव
परिचय
आयुर्वेद को जीवन का विज्ञानं भी कहा गया है। ऐसा माना जाता है की सारा ब्रह्माण्ड पंच महाभूतों (पांच महा तत्वों) से मिलकर बना जो हैं-आकाश, वायु,अग्नि, जल एवम पृथ्वी । ये पांच महाभूत शरीर में सुक्ष्म ऊर्जा के स्त्रोत हैं और इसिलए एक दूसरे से ताल-मेल बनाकर हमारे शरीर में व्याप्त रहते हैं। आयुर्वेद इन पाँच महाभूतों के इस सिद्धांत पर कार्य करता है। इन तत्वों के शरीर में संतुलन पर ही हमारा स्वाथ्य बना रहता है।
हर व्यक्ति में कुछ ऊर्जा स्त्रोत दूसरे ऊर्जा स्त्रोत से अधिक होते हैं और वही उस व्यक्ति के शरीर की प्राकृतिक व्यवस्था (प्रकृति) को निर्धारित करते हैं, शरीर के प्राकृतिक दोष कुछ इस प्रकार हैं:
- वात दोष - वायु व आकाश तत्व का अधिक होना
- पित्त दोष - अग्नि तत्व का अधिक होना
- कफ दोष - पृथ्वी व जल तत्व का अधिक होना
दोष, व्यक्ति के शरीर, प्रवृत्तियों (भोजन की रूचि, पाचन), मन और भावनाओं को प्रभावित करते हैं।
उदाहरण के लिए, कफ प्रकृति के लोगों के शरीर मजबूत कदकाठी के, धीमा पाचन, अच्छी स्मरण शक्ति और सुदृढ़ भावनात्मक दशा स्पष्ट पृथ्वी तत्व दर्शाती है। अधिकतर लोगों की प्रकृति दो दोषों के संयोजन से बनती है। जब वात, पित्त और कफ संतुलन में नही होते हैं तो दोषों के असंतुलन के अनुरूप लक्षण प्रकट होते हैं।
वात असंतुलन
वात दोष तीनो दोषों में सबसे प्रमुख है। इसका मुख्य कारण यह है कि यदि वात दोष लंबे समय तक बना रहता है तो पित्त व कफ के दोष का असन्तुलन भी प्रकट होने लगता है। वात वायु और आकाश तत्व का संयोजन है।
वात के मुख्य लक्षण
शारीरिक लक्षण | व्यवहारिक लक्षण |
क़ब्ज़ | चिंतित, झुंझलाहट |
गैस | अधीरता |
पानी की कमी | जीवन के प्रति निराशा |
सूखी रूखी त्वचा | अपनी ज़िम्मेदारियों से भागना |
शरीर में दर्द | डर और घबराहट का अनुभव |
मुख में खट्टे व कसैला स्वाद | सब बेबुनियाद लगना |
कमज़ोरी, थकान, ओज की कमी | अत्यधिक चलना फिरना /बात करना |
अनिद्रा | |
अंगो का फड़कना / कंपन | |
भ्रमित, डर और घबराहट का अनुभव | |
ज़्यादा ठण्ड लगना/ गर्माहट की चाह |
वात असंतुलन के प्रभाव
- मांसपेशियों में थकान
- जोड़ों का दर्द
- जकड़न
- सिर दर्द
- क़ब्ज़
- वजन कम होना
- मरोड़
- ऐठन
- कंपकपी
- कमज़ोरी
- पेट दर्द
- शुष्की
- भय
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पित्त असंतुलन
पित्त दोष अग्नि / ऊष्मा से संबंधित है। जहाँ कहीं भी परिवर्तन है, पित्त प्रकृति कार्य कर रही है। आहरनाल, लिवर (यकृत), त्वचा, आँखे या मस्तिष्क इन सभी स्थानों पर पित्त कार्य करता है।
पित्त के सामान्य लक्षण
शारीरिक | व्यवहारिक |
अधिक भूख-प्यास | बोल चाल |
सीने में जलन, एसिडिटी | काम करने में चिड़चिड़ाहट |
आँखे, हाथों व तलवों में जलन | गुस्सा, चिड़चिड़ाहट, आक्रामकता,विवाद प्रिय |
बहुत गर्मी लगना | अधीरता और हड़बड़ाहट |
त्वचा में दाने, मुहाँसे, फुंसी | निराशा |
पित्त की उल्टी | |
प्रकाश के प्रति अति संवेदनशीलता | |
शरीर में तीक्ष्ण गंध | |
सिर दर्द, जी मचलाना | |
दस्त | |
मुख में कड़वा स्वाद | |
ज़्यादा गर्मी लगना और ठंडे वातावरण की चाह |
पित्त असंतुलन के प्रभाव
- अत्यधिक एसिडिटी
- शरीर में जगह जगह सूजन
- रक्त स्राव
- उच्च रक्तचाप
- जलन
- अधिक मल त्याग
- त्वचा में चकत्ते, फुंसी, मुहाँसे
- सनक / तीव्र इच्छा
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कफ असंतुलन
कफ दोष सबसे भारी दोष माना गया है। यह शरीर को उपयुक्त आकार और तैलिये रसायन प्रदान करता है। कफ के यही कार्य शरीर में वात का सञ्चालन करते हैं और पित्त को बैलेंस करते हैं। एक बड़े भारी भरकम फुटबॉल प्लेयर में आपको अधिक मात्रा में कफ मिलेगा। कफ शरीर के पृथ्वी और जल तत्त्व से मिलकर बना है।
कफ के लक्षण
शारीरिक | व्यवहारिक |
आलस्य | भारीपन |
भूख न लगना | अवसाद |
जी मचलना | दुःख |
शरीर में पानी जमा हो जाना | काम में मन न लगना |
जकड़न | दूसरों पर आश्रित मह्सूस करना |
बलगम बनना | लालच |
मुँह में स्राव | मोह |
साँस लेने में तकलीफ़ | |
अत्यधिक नींद आना | |
मुँह में मीठापन |
कफ असंतुलन के प्रभाव
- मुटापा
- सूजन
- शरीर मे पानी जमा हो जाना
- अधिक बलगम
- अति विकास
- अवसाद
अपने शरीर में होने वाले इन दोष और विकारों के बारे में जान कर हम उपयुक्त उपचार द्वारा इन्हे शरीर में वापिस बैलेंस कर सकते हैं। अगली बार जब आपको अस्पष्टता, भय या शरीर पर लाल चिक्कते हों तो आप समझ सकते हैं के आपके शरीर में कौनसा दोष आ गया है और किसी पेशेवर आयुर्वेदिक वैद्य की मदद से उस दोष का उपचार कर सकते हैं। शरीर को विकारों से बचाने का रामबाण उपाए त्रिदोषों को शरीर में बैलेंस करना है। अब आप जान ही चुके हैं की इन त्रिदोषों के कम या ज़्यादा होने के क्या कारन हो सकते हैं, जल्द से जल्द किसी पेशेवर आयुर्वेदिक वैद्य से संपर्क करें और सही उपचार की मदद से जीवन को स्वस्थ बनाएं।