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  1. समाधि का प्रसाद

    पतंजलि कहते हैं, सूत्र 41: क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदञ्जनतासमापत्तिः॥ जब मन की पाँचों वृत्तियों की गतिविधि तुम्हारे अधीन हो, तब समाधि संभव है। जब मन की यह पांच वृत्तियाँ क्षीण होने लगती हैं और तुम्हारे अधीन होने लगती हैं, ...
  2. सबीज समाधि

    सबीज समाधि सबीज समाधि का अनुभव तुम बाहरी कार्यकलाप के दौरान करते हो। जब तुम एक बच्चे थे, तब तुम यही अनुभव कर रहे होते थे। बच्चे इधर उधर उतावले होकर नहीं देखते हैं उनकी नजर में बड़ी स्थिरता होती है। छोटे बच्चे टकटकी लगाकर देखते हैं, उनकी आँखों में गहराई हो ...
  3. इंद्रियों का स्थायित्व और समाधि में ठहराव

    जब कभी पृथ्वी कुछ क्षण मात्र के लिए हिलती है, तब भयंकर आपदा आती है। हम इस पृथ्वी पर इसलिए रह पाते हैं क्योंकि यह स्थिर है।  कभी-कभार पृथ्वी एक क्षण के लिए हिलती भर है और सब कुछ उखाड़ फेंकती है, कुछ क्षण में ही तुम्हारा  जीवन कई दिनों के लिए थम जाता है। जब ...
  4. निद्रा और स्वप्न का ज्ञान

    Sutra 38: स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा॥ निद्रा और स्वप्न का ज्ञान बड़ा रोचक है।  हम रोज़ाना सोते हैं, पर हम कभी अपनी निद्रा को नहीं समझ पाते, उसे जान नहीं पाते, यह बड़ी विडंबना की बात है। यह ऐसे ही है जैसे किसी व्यक्ति के पास लाखों करोड़ों रुपये हों पर उसे ...
  5. गुरु एवं आध्यात्मिक पथ

    आगे पतंजलि कहते हैं, सूत्र  37: वीतरागविषयं वा चित्तम् अपने मन को आत्मज्ञानी के विचारों में ही व्यस्त रखो। तुम्हारा मन जल की तरह है, जैसे जल को जिस बर्तन में डालो, वह उसी का आकार ले लेता है उसी तरह मन को जैसे विचारों में संलग्न रखो, मन वैसा ही बन जाता है। ...
  6. दुःख के पार जाओ

      सूत्र 36: विशोका वा ज्योतिष्मती॥ कभी तुम यदि किसी दुखी व्यक्ति के पास बैठो तो देखोगे कि थोड़ी देर में तुम भी दुखी होने लगते हो। इसी तरह यदि कोई प्रसन्नता और अत्यधिक उत्साह  से भरा हुआ है और तुम उनके पास जा कर बैठो तो थोड़ी देर में तुम भी हंसना, खेलना शु ...
  7. सुदर्शन क्रिया से एकतत्त्वभ्यास

    महृषि पतंजलि हमारे मन के बड़े अच्छे विशेषज्ञ है। महृषि पतंजलि जानते थे की कोई भी व्यक्ति सभी के लिए एक जैसा भाव नहीं रख सकते और भावनाएं बदलती रहती हैं और पोषित भी की जा सकती हैं।  इसीलिए वह कहते हैं की मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा के अलग अलग भाव रखकर ...
  8. योगी का लोकव्यवहार

    समाज में तरह तरह के लोग होते हैं। भिन्न भिन्न लोगों के साथ एकतत्त्वाभ्यास कैसे संभव है? भिन्न भिन्न लोगों में एक तत्त्व को कैसे देख सकते हैं? तब आगे यह बताते हुए महर्षि कहते है: “ सूत्र 33: मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित ...
  9. ईश्वर, कर्म और ज्ञान ।

    " सूत्र 24: कॣेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः " पतंजलि कहते हैं कि ईश्वरीय चेतना पांच तरह के क्लेशों- अविधा, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश से मुक्त होती है। इसी तरह ईश्वर कर्मों से भी मुक्त है। कर्म चार प्रकार के होते हैं। चार प्रकार ...
  10. ईश्वर क्या है?

    ईश्वर  को समर्पण मात्र से भी तुम चेतना की उस पूर्ण स्फुरित अवस्था को प्राप्त कर सकते हो।  अब ईश्वर क्या है, कौन है, कहाँ है? यह कहना आसान है की ईश्वर को समर्पित करो पर ईश्वर है कहाँ, किसी ने देखा तो नहीं। यह अगला प्रश्न है।   ईश्वर कौन है? इस अस्तित्त्व क ...