Sutra 38: स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा॥
निद्रा और स्वप्न का ज्ञान बड़ा रोचक है। हम रोज़ाना सोते हैं, पर हम कभी अपनी निद्रा को नहीं समझ पाते, उसे जान नहीं पाते, यह बड़ी विडंबना की बात है। यह ऐसे ही है जैसे किसी व्यक्ति के पास लाखों करोड़ों रुपये हों पर उसे उन्हें खर्च न करना आता हो और जो बड़ी दरिद्रता में अपना जीवन व्यतीत कर दे। अथवा जैसे किसी व्यक्ति के सामने छप्पन भोग हो पर उसे यह समझ ही न हो की वह भोजन है और उसे कैसे खाते हैं, और वह भूख से मरा जा रहा हो।
ऐसा ही हमारे जीवन के साथ है, हम सोते हैं पर हम निद्रा को नहीं जान पाते हैं। हम स्वप्न देखते हैं परन्तु स्वप्न क्या है, इसकी हमें कोई समझ नहीं होती है।
निद्रा
जब हम सोते हैं तब क्या होता है? हम सब कुछ छोड़ देते हैं, तब ही निद्रा संभव है।
यदि हम एक भी चीज को पकड़ कर बैठेंगे तो हम सो नहीं सकते। हमारी सभी पहचान, पुरुष-महिला, अमीरी-ग़रीबी, बुद्धिमानी-बेवकूफी, सब कुछ नींद में छूट जाती है। गहरी नींद में अमीर-गरीब, महिला-पुरुष का कोई अंतर नहीं रहता, हम अपनी सभी पहचान छोड़ देते हैं। हमारी सभी पसंद-नापसंद भी निद्रा में छूट जाती है। हम नींद में किसी को साथ भी नहीं ले जा सकते चाहे कोई हमारा कितना भी प्रिय क्यों न हो।
निद्रा में तुम अपनी सभी पहचान, राग-द्वेष, पसंद-नापसंद से परे होते हो, तुम्हें उन सभी को छोड़ना ही पड़ता है। जैसे तुम सब कुछ छोड़कर निद्रा में कुछ भी नहीं करते, केवल विश्राम करते हो, वैसे ही ध्यान में भी तुम सब क्रिया कलाप छोड़कर, पूर्ण विश्राम करते हो।
ईश्वर के लिए और अपने स्वयं के भले के लिए हम ध्यान में कुछ भी नहीं करते हैं। ध्यान में भी निद्रा के जैसे ही सब छोड़ देने से समाधि घटती है।
स्वप्न
अज्ञानी लोग अपने स्वप्न को यथार्थ में बदलना चाहते हैं परन्तु आत्मज्ञानी इस संसार की वास्तविकता को भी स्वप्न जैसे ही जानते हैं। स्वप्नों की विवेचना(विचार-विमर्श) करना बहुत बड़ा अज्ञान है, इस जीते जागते संसार का स्वप्न मात्र होने का एहसास ही आत्मज्ञान है।
यदि तुम किसी आत्मज्ञानी के पास जाओगे और पूछोगे भी कि मैंने ये स्वप्न देखा, इसका अर्थ क्या है? तब वह बोलेंगे, अरे छोड़ो स्वप्न, जाग जाओ। और यदि तुम किसी स्वप्नों की विवेचना और व्याख्या करने वालों के पास पहुँच गए तब वह तुम्हारे स्वप्नों के उलटे सीधे अर्थ निकालने लगेंगे, यह बड़ा अज्ञान है।
पांच तरह के स्वप्न
स्वप्न पांच प्रकार के होते हैं।
1). पहले स्वप्न अपूर्ण इच्छाओं की वजह से होते हैं, जैसे तुम पानी पीना चाहते थे पर पी नहीं पाए तो स्वप्न में भी पानी पीते हो। ऐसे ही किसी को आइसक्रीम खाने की बहुत इच्छा हो और सेहत के लिए वह न खाये तब रात में सपने में वह अपने आप को आइसक्रीम खाते हुए ही देखता है। ऐसे ही तुम किसी प्रेमी-प्रेमिका के साथ घूमने जाना चाहते थे पर नहीं जा पाये, तब सोते समय सपने में यही आता है कि तुम सैर पर उनके साथ घूमने जा रहे हो। इच्छाएं और भय इसी तरह स्वप्न बनकर उठते हैं।
2) दूसरी तरह के स्वप्न में भूतकाल के कुछ बीते हुए अनुभव, उनके तनाव और यादें उभरती हैं।
3) तीसरी तरह के स्वप्न में तुम्हें भविष्य के लिए सहज बोध उठता है, भविष्य में जो हो सकता है वह सब स्वप्न की तरह आता है।
4) चौथी तरह के स्वप्न इन सभी प्रकार के स्वप्नों का मिश्रण होते हैं।
5) पांचवी तरह के स्वप्न का कुछ भी सम्बन्ध तुमसे न होकर, उस स्थान से होता है। जैसे तुम यदि इटली के किसी होटल में ठहरे हो तब तुम्हारे सपने में वहां की भाषा में ही कुछ आता है। ऐसे सपने में जो लोग होते हैं उनके वाद विवाद भी तुम सुनते हो पर कुछ समझ नहीं आता है, क्योंकि वह सब वहीं की भाषा में होता है।
पाँचवी तरह के ऐसे स्वप्न उस स्थान विशेष के प्रभाव से उभरते हैं।
स्वप्न इस तरह पांच प्रकार के होते हैं परन्तु तुम यह नहीं समझ पाते हो कि तुम्हारा स्वप्न इन पांचो में से कौनसा है।
प्रायः सपने चौथी तरह के ही होते हैं, जिनमें सब का मिश्रण होता है। ऐसे में तुम यह नहीं पता लगा सकते कि कौनसा सपना भविष्य के लिए है, यह हो भी सकता है पर जरूरी नहीं कि वैसा ही हो।
ज्ञानी पुरुष ऐसे सभी सपनों को सिरे से नकार देंगे। स्वप्न में ऐसा कुछ नहीं रखा है, देखो तो यह जागृत संसार भी एक सपना ही है। अभी तुम यह पढ़ रहे हो, कल तुम इस समय कुछ और कर रहे होंगे, तब यह एक स्वप्न जैसा ही हो जायेगा। अगले सप्ताह जो भी तुम करोगे, वह अभी स्वप्न जैसे ही है।
स्वप्न का ज्ञान और सत्य के प्रति जागरूकता
तुम्हारा मन अधिकतर सपने में ही तो रहता है, या तो गहरी निद्रा में सो जाता है या स्वप्नावस्था में रहता है। कभी दिन में सपने देखता है कभी रात में, हवा में महल बनाता और बिखेरता रहता है, यही सिलसिला अधिकतर चलता रहता है। पर जिस भी क्षण तुम यह जान लेते हो कि अरे! यह तो सपना है। उसी क्षण एक सजगता आ जाती है, उसी क्षण ही तुम पूरी तरह से जीवंत होते हो, जागे हुए होते हो। बाकी समय निद्रा जैसी अवस्था बनी रहती है परंतु जैसे ही यह जाग्रति आ जाए कि अरे मैं तो गहरी नींद में था, तुम जाग उठते हो।
पतंजलि इस सूत्र में बड़ी सुंदरता से कहते हैं कि निद्रा का ज्ञान होते ही तुम जाग जाते हो। जब भी कोई सो रहा होता है, उसे यह पता ही नहीं होता कि वह सो रहा है, जिस क्षण में वह जानते हैं कि यह निद्रा थी, वो सो रहे थे, उसी क्षण वह जाग चुके होते हैं। जैसे कोई व्यक्ति दिन में सपने देखते हो, तब उन्हें पता नहीं होता की वह दिन में सपने देखते हैं। जैसे ही उन्हें यह पता चलता है की अरे मैं तो सपने देख रहा था, तुरंत उसी क्षण में वो जाग चुके होते है।
कभी कभी जब तुम क्रिया प्राणायाम करते हो और उनका कुछ प्रभाव न दिखता हो तब अपने आप से पूछो, कि क्या तुम यह करते समय कुछ कल्पना करने, दिन में सपने देखने में लगे थे या निद्रा में चले गए थे - क्योंकि यही दो संभावनाएं हैं, कोई तीसरी संभावना नहीं है।
यदि तुम दिन में सपने देख रहे हो, तब कितना भी क्रिया प्राणायाम का कुछ प्रभाव नहीं होता है। प्राणायाम करते समय भी मन अपने ही सपनों के उधेड़ बुन में लगा रहता है, अरे मैं इस देश का राष्ट्रपति बन जाऊंगा। मन ऐसे ही सपनो में लगा रहता है, इसीलिए राजनीतिक लोगों के लिए साधना में बैठ पाना बड़ा मुश्किल होता है। क्योंकि मन निरंतर नए सपने बुनता रहता है और उन्हें इसका होश भी नहीं होता कि वह दिन में कोरे सपने मात्र देख रहे हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं है।
स्वप्न और निद्रा का ज्ञान हो जाना भी उसी क्षण में तुम्हें सत्य के प्रति जागरूक कर देता है।
अगले सूत्र में पतंजलि कहते हैं कि आध्यात्म में एक ही रास्ते को चुनो। इस ज्ञान की सुन्दर विवेचना के लिए पढ़ें अगला ज्ञान पत्र।
<<पिछले पत्र में पढ़ें,गुरु एवं आध्यात्मिक पथ अगले पत्र में पढ़िए,इंद्रियों का स्थायित्व और समाधि में ठहराव >>
(यह ज्ञान पत्र गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के पतंजलि योग सूत्र प्रवचन पर आधारित है। पतंजलि योग सूत्रों केपरिचय के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें। )