जब आप संसार की किसी वस्तु को जानने की जिज्ञासा में यह प्रश्न करते हैं कि "यह क्या है?" तो दरअसल किसी चीज़ को इस दृष्टिकोण से जानने की उत्सुकता रखना आपको विज्ञान की ओर अग्रसर करता है। और यदि आप ये प्रश्न करते हैं कि "मैं कौन हूँ?" तो यह दृष्टिकोण आपको आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करता है।
वस्तुनिष्ठ विश्लेषण ‘विज्ञान’ है और आत्मनिष्ठ विश्लेषण 'आध्यात्म'।
क्या आप जानते हैं, ऐसा कहा गया है कि बुद्धिमत्ता का पहला चिन्ह है कि कुछ भी न कहो, दूसरा चिन्ह है कि चूंकि आप पहला चिन्ह खो चुके हो तो जब तक पूछा न जाय तब तक कुछ भी न कहें। इस देश में लगभग सभी शास्त्र एक प्रश्न से शुरू होते हैं। दूसरे देशों के विपरीत यहाँ हमने हमेशा अनुसंधान की भावना को बढ़ावा दिया है। विज्ञान का मूल अनुसंधान की भावना है। पूर्व में हमेशा हमने आपको प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित किया है। हम यह कभी नहीं कहते कि प्रश्न मत पूछो, हम कहते हैं कि प्रश्न पूछो। मुझसे एक अध्यापक ने पूछा कि विज्ञान और आध्यात्मिकता में क्या भेद है ? विज्ञान क्या है ? विज्ञान माने - “यह क्या है?” का व्यवस्थित विश्लेषण ही विज्ञान है। विश्लेषण और समझ! "यह क्या है?", यह विज्ञान है और "मैं कौन हूँ?" यह आध्यात्मिकता है। वस्तुनिष्ठ विश्लेषण ‘विज्ञान’ है और आत्मनिष्ठ विश्लेषण ‘अध्यात्म’ है। पूरब में विज्ञान और अध्यात्म कभी भी एक-दूसरे के विरोधाभासी नहीं रहे । यहाँ कभी किसी वैज्ञानिक को सताया नहीं गया।
पश्चिम में कहते हैं तुम पहले विश्वास करो, एक दिन तुम्हें अनुभव भी हो जाएगा। उसमें भी कुछ सत्य है। देखिए, जब आपके पास एक बीज होता है और आप वह बीज बोते हैं तब आप विश्वास करते हैं कि बीज अंकुरित होने जा रहा है और एक दिन वह अंकुरित भी होता है। पश्चिम में आप पहले विश्वास करते हैं और तब एक दिन आपको परिणाम मिलेगा। पूर्व में हम हमेशा कहते हैं कि पहले अनुभव करें और तब आप अपना विश्वास स्वयं सिद्ध कर सकते हैं। यह एक कारण है कि विश्व के पूर्व में विज्ञान और आध्यात्मिकता कभी भी एक दूसरे को खंडित नहीं करते।
हम हमेशा "तत्त्व ज्ञान" के विषय में बात करते हैं, तत्व ज्ञान माने सिद्धांतों का ज्ञान होना । प्रो. डोर (एक महान परमाणु वैज्ञानिक), ने जब हमारे आश्रम का दौरा किया तो उन्होंने बताया कि प्राचीन मिस्र के लोग केवल 4 तत्वों का ही ज्ञान रखते थे । वे (पांचवे तत्व) आकाश तत्व से अनजान थे। मैंने उनसे कहा, भारत में तो हम युगों से, पृथ्वी तत्व के बारे में जानते हैं। हमने (महाभूतों की चर्चा के दौरान) हमेशा ‘पंच’ ‘महाभूत’ कहा। इतना ही नहीं, हम हमेशा से ‘समय’ को भी एक तत्व के रूप में ही मानते आए हैं। कुल मिलाकर 36 तत्व हैं। देश (स्थान), काल (समय) आदि सब तत्वों के रूप में ही गिने जाते हैं | यहाँ तक कि ‘शिव’, जो चेतना की एक अवस्था है; को भी एक तत्व ही माना जाता है ।
विज्ञान के लिए हानिकारक क्या है ?
अब, विज्ञान के लिए हानिकारक क्या है? पहला है - ‘अवधारणा’ और दूसरा है ‘पूर्वाग्रह’! यदि आप किसी प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं, तो हम आपको बताते हैं, आप खुद को वैज्ञानिक नहीं कह सकते क्योंकि पूर्वाग्रह आपको ठीक प्रकार से वस्तुओं का अनुभव नहीं करने देगा। स्पष्ट धारणा के लिए, आपके पास एक ऐसा मन होना चाहिए जो तनावमुक्त, स्वस्थ और जीवंत हो; एक ऐसी आत्मा जो उत्साह और रचनात्मकता से भरी हो और जिसमें दुनिया के किसी भी कोने से सीखने की तत्परता हो | किसी का भी विरोध करने के लिए आपको सबसे पहले उसका अध्ययन करने की आवश्यकता होती है और वही है विज्ञान! यदि आप किसी चीज का अच्छी तरह से अध्ययन करते हैं और उसके बाद उसे छोड़ते हैं, तब यह कहा जा सकता है कि आप वैज्ञानिक स्वभाव के हैं।
जैसे कुछ लोग अध्यात्म के नाम पर कई तरह के निरर्थक काम करते हैं, वैसे ही वैज्ञानिकों की आड़ में भी कुछ ऐसे लोग होते हैं, जिनका मन पूरी तरह से पूर्वाग्रहों, कई तरह के भय और अदूरदर्शिता से ग्रसित रहता है। यदि आप अपने ज्ञान के प्रति पूरी तरह से निश्चित हैं, तो फिर आप किसी के भी विचार सुनने में भयभीत नहीं होंगे। चूंकि आपको खुद पर विश्वास नहीं है, इसलिए आप दूसरों की बात सुनने से डरते हैं। नास्तिकता भी इस देश की संस्कृति का एक हिस्सा रही है। यहाँ कई ‘दर्शन’ माने जाते रहे हैं और ऐसा कहा जाता है कि पहले आप उन सबका अध्ययन करें, उन सभी को सुनें और जानें; उसके बाद जो आपको सही लगता है उसका चुनाव करें। यदि आप सशक्त हैं, तो कभी भी किसी विषय पर भयभीत नहीं होंगे या बिना जाने किसी भी चीज को ‘लेबल’ नहीं करेंगे, "यह अवैज्ञानिक है।"
निमहंस (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस) के वैज्ञानिकों ने हमारी तकनीक - ‘सुदर्शन क्रिया’ पर शोध किया है और दुनिया भर के कई अन्य शोधकर्ताओं ने भी यह माना है कि लाखों लोग सुदर्शन क्रिया (श्वास तकनीक) से लाभान्वित हो रहे हैं।
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आज हमने खुद सुना कि भौतिकी का नोबेल पुरस्कार एक वैज्ञानिक को दिया गया है, जिन्हें मस्तिष्क की कोशिकाओं पर ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया के बारे में पता चला है। यह वही है जो हम प्राणायाम के दौरान करते हैं, जिसे हम युगों से जानते हैं। जो लोग इसका अभ्यास करते हैं, उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
जिसे हमने भारत में ‘ध्यान’ कहा, उसे ही बाहर से आए कुछ लोगों ने माइंडफुलनेस कहा। जब ‘ध्यान’ को एक पश्चिमी लिबास में प्रस्तुत किया जाता है, कुछ लोग तब जाकर इसे अपनाते हैं; यही पूर्वाग्रह है। इस देश में लोगों का एक छोटा समूह इसी तरह के पूर्वाग्रह से पीड़ित रहा है पर मुझे विश्वास है कि वे लोग जल्द ही ऐसे पूर्वाग्रहों से बाहर निकल पायेंगे।
प्रश्न: सफलता, कभी-कभी मेरी खुद की प्रसिद्ध होने की इच्छा से प्रेरित होती है; जो अहंकार से आती है। क्या यह बुरा है?
गुरुदेव: नहीं! इसे रहने दीजिए। अपने अहंकार से ऐसा होने दें लेकिन अपने लिए कुछ नियम अवश्य निर्धारित कर लें और उन सीमाओं को पार न करें। सेवा को भी जीवन का हिस्सा बनाएं। इसके बिना कहीं कुछ भी आकर्षक नहीं है।
प्रश्न: क्या नास्तिक 'ध्यान' सीख सकते हैं?
गुरुदेव: नास्तिक बहुत अच्छी तरह से ध्यान कर सकते हैं। आपको ध्यान करने के लिए किसी भगवान पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। जैन धर्म और बौद्ध धर्म ईश्वर का उपदेश नहीं देते, लेकिन वे ‘ध्यान’ का उपदेश देते हैं। यहाँ तक कि हिंदू धर्म का भी कहना है कि यदि कोई विश्वास नहीं है, फिर भी आप ध्यान करें और आत्मविकास करें।
प्रश्न: शांति की आंतरिक यात्रा में बुद्धि की क्या भूमिका है?
गुरुदेव: बुद्धि की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इस यात्रा की प्रेरणा ही बुद्धि से आती है। केवल बुद्धि के माध्यम से आपको यह जागरूकता और तर्क मिलता है कि मैं शरीर, मन या प्राण नहीं हूं, यद्यपि कुछ और हूं !
प्रश्न: जीने की कला क्यों ('आर्ट' ऑफ लिविंग), जीने का विज्ञान ('साइंस' ऑफ लिविंग) क्यों नहीं?
गुरुदेव: आप इसे चाहे जिस नाम से भी बुला सकते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि यह जो ‘है’,‘वही है’ !
प्रश्न: क्या साम्यवाद और आध्यात्मिकता दूर हैं? क्या आप कम्युनिस्टों के साथ सहज महसूस करते हैं ?
गुरुदेव: एक सच्चा कम्युनिस्ट वह है, जो हर किसी की परवाह करता है और किसी भी प्रकार के अंधविश्वास और संकीर्ण मानसिकता से मुक्त है। यदि आप किसी चीज में विश्वास नहीं करते हैं, तो आप कम्युनिस्ट नहीं हैं। आप एक संकीर्ण विचारधारा वाले, अदूरदर्शी व्यक्ति हैं।
प्रश्न: हम आदिवासी आबादी को नक्सलियों में बदलने से कैसे रोक सकते हैं ?
गुरुदेव: उन्हें उनकी अपनी आदिवासी संस्कृति पर गर्व है। किसी गलत समझ ने उन्हें नक्सलवाद की ओर प्रेरित किया है। उनकी आधारभूत जरूरतें पूरी करें। उचित शिक्षा और नौकरी का अवसर उन्हें नक्सल मानसिकता से बाहर निकलने में सहायता करेगा।
प्रश्न: हमारे पास विज्ञान संस्थानों की तरह आध्यात्मिकता के संस्थान क्यों नहीं हैं ?
गुरुदेव: मुझे लगता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में एक आध्यात्मिक संस्थान है।
प्रश्न: हम अनुसंधान के दौरान तर्क और अंतर्ज्ञान का मिश्रण कैसे उपयोग कर सकते हैं ?
गुरुदेव: दोनों (तर्क और सहज बोध) जीवन में जरूरी हैं। आमतौर पर मैं उन लोगों को प्रतिदिन आधे घंटे संगीत सुनने का सुझाव देता हूं, जो बहुत सारी दिमागी गतिविधि करते हैं। और इसी तरह जो लोग हर समय संगीत गा रहे हैं, उन्हें मैं पहेलियां सुलझाने के लिए कहता हूं।
प्रश्न: लोग अपने आध्यात्मिक विकास को कैसे माप सकते हैं ?
गुरुदेव: आप कितना मुस्कुराते हैं, आपमें कितना आत्मविश्वास है, आपने कितने करुणामय कार्य किए हैं, आप मुक्त कैसे महसूस करते हैं और आप कितनी खुली हुई मानसिकता के हैं।
** यह लेख अक्टूबर 2019 में, भारतीय विज्ञान संस्थान, भारत में गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी द्वारा युवा वैज्ञानिकों को दिए गए एक अंग्रेजी संबोधन का अनुवाद है।
अनुवादक : रत्नम सिंह