कभी नशे के अंधेरों से घिरे दारा आज दूसरों के लिए आशा के दीपक बन गए

एक व्यक्ति जो जान से मारने को तैयार था एवं एक वह व्यक्ति जो अपने माँ –बाप  का चहेता है। दो भिन्न-भिन्न व्यक्ति ? नहीं, एक ही व्यक्ति – दारा सिंह

दारा शिक्षा के स्कूल की बजाय नशे के स्कूल में चला गया

दारा सिंह एक साधारण लड़का था - एक किसान का बेटा। राजस्थान के खेड़ा के दूरदराज गाँव में बड़ा हो रहा था। उसके जीवन में मोड़ तब आया जब विद्यालय जाने के लिए उसे घर छोड़ना पड़ा। सही तरीके के शिक्षा पाने की जगह नशीली पदार्थों से उसका मेल मिलाप करा दिया गया। बेईमान तत्वों ने उसे नशीली पदार्थों की लत की ओर धकेल दिया। वह स्वयं अपने आदत के वशीभूत नशीली पदार्थों का विक्रेता बन गया। नशे की लत ने इतना भयंकर रूप ले लिया कि वह नशे की जरूरतों को पूरी करने के लिए चोरी करने, यहाँ तक कि जान से मारने के लिए तैयार हो गया।

सुदर्शन क्रिया से जीवन में आया नया मोड़

तब उसके जीवन में एक नया मोड़ आया। उसे पकड़ लिया गया। सन् 2001 में 750 ग्राम हीरोइन बिहार में चोरी-छिपे ले जाने की कोशिश करने के जुर्म में उसे 12 वर्ष की सजा हो गई। राजस्थान पुलिस ने दारा सिंह को जेल की कोठरी में बंद कर दिया। उस समय उन्हें यह नहीं पता था कि वही व्यक्ति बस कुछ वर्षों पश्चात ही 450 बच्चों का एवं स्वयं के अभिभावकों का चहेता बन जाएगा। एक व्यक्ति जिसका जीवन जुर्म और अपराध से भरा था, दूसरों के लिए एक आदर्श बन जाएगा।

यह सब संभव हो पाया एक सरल श्वास तकनीक के कारण । सुदर्शन क्रिया सकारात्मक संभावनाओं की दुनिया में विचरण करने का द्वार खोल देता है।

उदयपुर जेल में आर्ट ऑफ़ लिविंग कारावास कार्यक्रम ने दारा का जीवन बदल दिया

सर्वप्रथम उसके लिए जेल एवं उसके बाहर के जीवन में कोई अंतर नहीं था। उसके अन्दर भय कचोटता रहता था। सब समय अपने अंदर कहीं भाग जाने एवं पकड़े जाने की घटना का बदला लेने की भावना से वह ग्रस्त था । सन 2007 में उदयपुर जेल में आर्ट आफ लिविंग कारागृह कार्यक्रम में उस ने भाग लिया।

सुदर्शन क्रिया एक शक्तिशाली अनुभव था। वह अपनी आहत भावनाओं का सामना करने के लिए अब तैयार था। "मैं रोया। जैसे जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ता गया मुझे शांति का अनुभव होने लगा। मैं इस तकनीक का अभ्यास करता रहा एवं मेरे विचार बदलने लगे। मैं और अधिक सकारात्मक होता गया "  दारा सिंह ने बताया।

दारा ने युवा नेतृत्व प्रशिक्षण(YLTP)एवं उन्नत ध्यान कार्यक्रम(AMP) में भी पूरा भाग लिया एवं इससे उसे मदद मिली। गुरुदेव श्री श्री रविशंकर का सरल किंतु गहन शिक्षण के कारण वह एसे फैसला लेने में सक्षम हुआ जो कि उसके जीवन के क्रम को सदा सदा के लिए बदल दिया। वह कुछ बदलाव लाना चाहता था एवं अंततः वह बदलाव लाने में सफल भी हुआ।

12 वर्ष की सजा 7 वर्ष में रिहा

वाईएलटीपी के दौरान दारा को सुदर्शन क्रिया लगातार 41 दिन तक करने के लिए प्रेरित किया गया। बिना किसी विघ्न के लगातार 41 दिनों तक सुदर्शन क्रिया करने की स्थिति में आते-आते उसे 2 वर्ष लग गए। इन 2 वर्षों में वह अधिक केंद्रित एवं अधिक सकारात्मक हो गया। संयोग से 41वें दिन उच्च न्यायालय ने उसे रिहा करने का हुक्म जारी कर दिया।

दारा अपनी प्रतिबद्धता को संपूर्ण रूप से एक नए स्तर पर ले आये 

दारा का जीवन कभी भी आसान नहीं था। जेल से रिहा होने के बाद अपने प्रति लोगों के पूर्वाग्रह से उवरना उसके लिए अत्यंत ही कठिन कार्य था। उसके प्रति सभी मे जो भय एवं घृणा की भावना थी उसे अपनत्व की भावना में बदलना था ।उसके व्यवहार में आमूल परिवर्तन, अपने नियमित ध्यान के द्वारा उसे अपनें  साथी ग्राम वासियों के हृदय में स्थान मिल पाया। दारा योगा एवं ध्यान कार्यक्रम का आयोजन करने लगा । कार्यक्रम के अंत में लोगों को ताजगी एवं नया ऊर्जा का एहसास होता था एवं इसके लिए वे दारा के प्रति कृतज्ञ थे ।दूसरों के कल्याण के लिए दारा के वास्तविक चिंता के कारण लोग उस पर विश्वास करने लगे।

कभी अंधेरों से घिरे दारा अब दूसरों के लिए आशा का दीपक बन गए 

2011 में वह स्वयं आफ लिविंग के विभाग में कार्यकर्ता के रूप में शामिल हो गया। लोगों को तनाव से मुक्ति दिलवाने की उसके पास क्षमता थी। श्वास प्रक्रिया तकनीक लोगों को पसंद आने लगा। वे इस क्रिया के द्वारा अपने को उन्नत समझने लगे। दारा के शब्दों में - "लोग आगे आकर मेरे साथ जुड़ने लगे। बेहतर जीवन के लिए उनके लिए मैं एक आशा का दीप बन गया। दारा को आर्ट आफ लिविंग द्वारा स्थापित विद्यालय का प्रशासक नियुक्त किया गया। यह विद्यालय 450 से अधिक बच्चों को शिक्षा प्रदान करता है, जिसमें से 55% बालिकाएं हैं। इनमें से 80% बच्चे अपने परिवार में विद्यालय जाने वाले प्रथम पीढ़ी के हैं। मुख्यधारा पाठ्यक्रम के साथ-साथ उन्हें योग सिखाया जाता है, निशुल्क पौष्टिक आहार, निशुल्क यूनिफॉर्म, पाठ्यपुस्तक, स्कूल बैग दिया जाता है एवं दैनिक आवागमन की व्यवस्था की जाती है। दारा को 12 शिक्षक एवं चार कर्मचारी सहयोग देते हैं। सरकार द्वारा विद्यालय को मान्यता प्राप्त है। उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि सभी बच्चे भी विद्यालय पसंद करते हैं। उनमें से कुछ बच्चे कहते हैं :

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    सुलोचना,विद्यार्थी

    10 वर्षीय सुलोचना कक्षा 4:  वह बेहद खुश है उसके भाई-बहन भी इसी विद्यालय में पढ़ते हैं, जिसके कारण आनंद आता है।वह विद्यालय आने में कभी नागा नहीं करती। उसे गणित, विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान पसंद है एवं अच्छे नंबर लाती है। शिक्षक गण स्वीकार करते हैं कि वह एक उज्जवल विद्यार्थी है )।

 

  • सोनू, विद्यार्थी

  • 11 वर्षीय सोनू कक्षा 5: पहले वाले विद्यालय में सप्ताह में दो बार ही वह जाता था। किंतु दारा के विद्यालय में रोज आता है ।

 

  • जीतमल, अभिभावक

    जीतमल के तीन बच्चे विद्यालय में पढ़ते हैं। दारा के भूतकाल को नजरअंदाज करते हुए दारा के क्षमताओं एवं गाँव के बच्चों के शिक्षा के प्रति दारा के वास्तविक चिंता के प्रति वह आश्वस्त हैं। वह कहता है "बच्चे अच्छी तरह से पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी देखभाल अच्छी हो रही है। मुझे खर्चों की चिंता नहीं करनी पड़ती। इससे अधिक मैं क्या आशा कर सकता हूँ।

 

 


 

 

 

 

 

 

  • धनराज अभिभावक

धनराज के तीन बच्चे कक्षा 4,6 और 8 में पढ़ते हैं। उनमें से एक सुलोचना है। उसके स्वयं की पढ़ाई कक्षा 6 तक ही हुई है एवं उसकी धर्मपत्नी ने कभी विद्यालय का मुंह नहीं देखा। ऐसी पृष्ठभूमि में उसे इस बात का गर्व है कि उसके तीनों बच्चे पूर्ण शिक्षा निशुल्क प्राप्त कर रहे हैं। दारा के सेवा भावना से  उसे प्रेरणा मिलती है।

यह माध्यमिक विद्यालय को अब उच्च माध्यमिक विद्यालय में विस्तृत किया जा रहा है। सभी सुविधाओं में सुधार लाया जा रहा है। विद्यालय की प्रगति की तरह दारा सिंह की जीवन यात्रा भी अविश्वसनीय रही है। नशे की लत से बच्चों की शिक्षा, कैद से कैदियों का सुधार, क्रूरता से दयालुता। पर  दारा के चरित्र एवं कार्य पर सबसे अधिक अर्थ पूर्ण व्याख्या अभिभावकों का है। वे अपने बच्चों को किसी दूसरे विद्यालय में नहीं भेजेंगे। अपने मूल्यवान बच्चों के लिए वे सिर्फ दादा पर पर ही विश्वास कर सकते हैं।

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