बेंगलुरू के पास से बहती कुमुद्वती नदी को पुनर्जीवित करने में जुटे आर्ट आॅफ लिविंग के स्वयंसेवक (Kumudavati river rejuvenation by art of Living Volunteers)
बेंगलुरू। (Success stories) मनुष्य अपने स्वार्थवश जीवन के मूल आधारों को ही नष्ट करने में जुटा है। वनों की कटाई के कारण बारिश कम हो गई। नदी, कुएं, नहर और तालाब सूख रहे हैं। भू-जल स्तर लगातार गिर रहा है। लेकिन इन बदतर हालात के बीच आर्ट आॅफ लिविंग के कार्यकर्ताओं (volunteers) ने बेंगलुरू के पास से बहती कुमुद्वती नदी को पुनर्जीवित (Kumudavati river rejuvenation)करने का बीड़ा उठाया है।
272 गांव (villages) इस नदी पर आश्रित हैं। पिछले 20 वर्षों से कुमुद्वती नदी (Kumudavati river) का पानी सूखने के चलते इन गांवों पर सीधे-सीधे जल संकट का खतरा मंडरा रहा था। हालात इतने बदतर हो गए कि कई लोगों को अपने धंधे बदलने पड़ गए, जबकि कई की जान भी चली गई।
आर्ट आॅफ लिविंग ने ऐसे में कुमुद्वती नदी (Kumudavati river)के कायाकल्प का जिम्मा उठाया। इसके चलते नदी पर आश्रित सभी प्राणियों में जीवन की एक नई आशा का संचार हुआ। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “जब मैं छोटा था तब यहां बहुत ज्यादा पानी था। सभी जानवर यहां पानी पीने पहुंचते थे। अब कुमुद्वती नदी (Kumudavati river)का जलस्तर बढ़ता देख मुझे अपना बचपन फिर से याद आ गया। मैं इसे अनुभव करके बहुत खुश हूं।” नदी के पुनर्जीवित (River rejuvenation) होने से 272 गांवों को सीधा लाभ पहुंचेगा। आर्ट आॅफ लिविंग की परियोजना(rejuvenation) का पहला चरण पूरा हो चुका है।
इस प्रोजेक्ट को एचएएल, आईएएचवी, बॉश का समर्थन प्राप्त है। सरकार भी पर्यावरण संबंधी इस समस्या पर चिंतित है। सरकार ने पर्यावरण संरक्षण की कई परियोजनाएं शुरू की हैं, लेकिन कभी कभी इसे पूरा करने में वह सक्षम नहीं रहती। इसका एक कारण श्रमशक्ति का अभाव है। सरकार को गैर सरकारी संगठनों के साथ काम करना चाहिए। आर्ट ऑफ लिविंग (Art of Living)कुछ गैर सरकारी संगठनों में से एक है, जो कल की भलाई के लिए काम कर रहा है।
संगठन ने पूरे देश में 16 नदियों को पुनर्जीवित (River rejuvenation)किया है। कुमुद्वती नदी (Kumudavati river)पर पिछले तीन साल से काम जारी है। पानी इकट्ठा करने के लिए संस्था ने कई पानी के टैंक और बांधों का निर्माण किया है। पानी स्टोर होने से वष्पीकरण कम होगा और भू-जल स्तर में वृद्धि होगी। इसके अलावा जगह-जगह पेड़ भी लगाए जा रहे हैं।
मुनियप्पा की मुनाफा बढ़ा 50 फीसदी:
38 वर्षीय लाभार्थी मुनियप्पा ने बताया कि यहां खेती करने लायक पानी (water) नहीं था। ऐसे में उसने खेती छोड़कर एक कारखाना में मजदूरी शुरू कर दी थी। एक दिन उन्हें पता चला कि बोरवैल में पानी जमा हुआ है। इसके बाद उसने फिर से कृषि शुरू करने का फैसला किया। वह कहते हैं कि कृषि के लाभ में 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है। उन्होंने केला, टमाटर, सेम और कई अन्य सब्जियां उगानी शुरू कर दी हैं।
सूखे कुओं में फिर भरने लगा पानी
किसान गोपाल कृष्ण कहते हैं कि उनके पास 1.5 एकड़ जमीन व दो गाय हैं। बेंगलुरू (Bangalore)के पास नेलामंगला तहसील के केरेकोट्टीगनारूरू गांव में स्वयंसेवक (volunteers)कदम कुएं साफ कर रहे हैं। वह बताते हैं कि आज से 30 साल पहले कुओं से खेती के लिए पानी का इस्तेमाल होता था। कुछ समय से यह कुआं सूख गया। उन्होंने बताया कि अब कुएं भी पुनर्जीवित (rejuvenation)किए जा रहे हैं। शारदा विद्यापीठ रोड पर स्थित कुएं को उन्होंने पिछले सप्ताह ही साफ किया था। इसके बाद हुई बारिश में यह कुआं भर गया।
संकलन कर्ता: दिलिपकूमार कोली
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