दिवाली प्रकाश का पर्व है। गलियाँ और इमारतें रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमग की जाती हैं।
दिवाली के चार पक्ष इस प्रकार से हैं :
1. प्रकाश - यह ज्ञान के विस्तार का प्रतीक है ।
2. पटाखे - चलते हुए पटाखे देखने से अंदर की विस्फोटक प्रवृत्तियों को आराम मिलता है ।
जब बाहर विस्फोट होता है तो अंदर की विस्फोटकता शांत होती है ।
3. उपहार और मिठाइयाँ - उपहार व मिठाइयाँ बाँटने से आपस की कड़वाहट दूर होती है तथा मित्रता का नवीकरण होता है ।
4. प्रचुरता - प्रचुरता की भावना का अनुभव आपके पास जो है उसके प्रति जागरूकता तथा कृतज्ञता लाती है, ज्ञान का उत्सव मनाती है तथा प्रचुरता लाती है । जिनके पास है , उन्हें और दिया जाएगा !
मानव जीवन शरीर ( अथवा पदार्थ ) तथा आत्मा ( अथवा तरंग ) से मिल कर बना है। आनंद का अर्थ ही है एक प्रचंड तरंग हो जाना तथा पदार्थ को भूल जाना ।
कामुक प्रवृत्तियाँ तुम्हें क्षणिक तौर पर प्रचंड तरंगों का अनुभव करा सकती हैं। इसीलिए वह तुम्हें आनंद की एक झलक देती हैं। परंतु यह आनंद अल्पकालिक है और बाद में यह तुम्हें शिथिल कर देता है। सत्संग से मिलने वाला आनंद उच्च स्तर का है। मंत्र और गायन आत्मा में तरंगे उत्पन्न करते हैं। इसीलिए जब तुम गाते हो तो उल्लास दीर्घ काल तक बना रहता है। सूक्ष्म स्तर पर मिलने वाला आनंद चिरस्थायी, स्फूर्तिदायक, ताज़गी देने वाला और मुक्त करने वाला है। स्थूल से मिलने वाला आनंद अल्पकालिक, थकाने वाला तथा बाँधने वाला है ।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी कि ज्ञान वार्ता से उद्घृत
सौजन्य : द फ़्री प्रेस जर्नल