इन्द्रियों के साधन से इन्द्रियां अधिक ज़रूरी हैं। टेलीविज़न से तुम्हारी आँखें अधिक ज़रूरी हैं, संगीत या ध्वनि से तुम्हारे कान अधिक ज़रूरी हैं। स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों या आहार से जिह्वा अधिक ज़रूरी है। हमारी त्वचा, जो भी कुछ हम स्पर्श करते हैं उससे अधिक ज़रूरी है।
लेकिन मूर्ख सोचते हैं कि इन्द्रिय सुख देनेवाली वस्तुएं इन्द्रियों से अधिक ज़रूरी हैं। उन्हें मालूम है कि अत्याधिक टीवी देखना आँखों के लिए अच्छा नहीं है, फिर भी वे परवाह नहीं करते और लंबे समय के लिए टेलीविज़न देखते रहते हैं। उन्हें मालूम है कि उनकी शरीर प्रणाली को अत्याधिक खाना नहीं चाहिए, लेकिन वे शरीर से आहार को अधिक महत्व देते हैं।
बुद्धिमान कौन है
बुद्धिमान वह है जो इन्द्रियों की तुलना मन की ओर अधिक ध्यान देता है। यदि मन का ध्यान नहीं रखा, केवल इन्द्रिय सुख के साधन व इन्द्रियों पर ही ध्यान रहा, तो तुम अवसाद में उतर जाओगे। वस्तुओं के प्रति तुम्हारी लालसा तुम्हारे मन से अधिक आवश्यक है। तुम्हारी बुद्धि, बुद्धिमता मन से परे है। यदि तुम केवल मन के अनुसार चलोगे तो तुम डांवाडोल स्थिति में रहोगे। जीवन में तुम्हारी कोई प्रतिबद्धता नहीं रहेगी और तुम और भी दुखी हो जाओगे। जो वस्तु मन की इस प्रवृत्ति को मिटा सकती है, वह है अनुशासन। तुम्हारा मालिक तुम पर दबाव डालता है, तुम्हें इतने दिन काम करना है, सप्ताह के पांच दिन। यदि ये दबाव न हो, तो तुम कभी काम नहीं करोगे।
बुद्धि मन से अधिक ज़रूरी है क्यूंकि बुद्धि ज्ञान की मदद से निर्णय लेती है। कहती है: "यह अच्छा है, यह करना चाहिए। यह नहीं करना चाहिए।" जो सब से बुद्धिवान हैं, वे बुद्धि का अनुसरण करेंगे, मन का नहीं। बुद्धिमता यह है कि तुम भावनाओं की परवाह नहीं करते क्यूंकि वे हमेशा बदलती रहती हैं। लोग बैठ कर कहते रहते हैं, "ओह, मुझे अच्छा लग रहा है, ओह, मुझे बुरा लग रहा है, मुझे ऐसा लग रहा है, मुझे वैसा लग रहा है।" तुम अपने लिए नरक बना लेते हो। तुमने भूतकाल में कुछ लोगों को दुखी किया है और वह दुःख तुम अभी अनुभव कर रहे हो। इस अनुभव को झेलो, इससे भागो मत। जीवन प्रतिबद्धता से चलता है। तुम्हारा जीवन इस ग्रह पर किसी कल्याणकारी कार्य के लिए समर्पित है। यह तुम में निर्भयता, ताक़त, शांति, स्थिरता, जोश, सब कुछ तुम्हारे भीतर से बाहर ले आता है। औरों की चिंता करो, भावनाओं की ज़्यादा परवाह मत करो। किसी भी बात के लिए विलाप करके बैठे मत रहो। इस संसार की कोई भी वस्तु की कीमत तुम्हारे आँसुओं के बराबर नहीं है। अगर तुम्हें आँसू बहाने ही हैं, तो वे कृतज्ञता के, विस्मय के, प्रेम के मीठे आँसू होने चाहिएं। निरर्थक बात के लिए रोना कोई बड़ी बात नहीं है। तुम्हारा जीवन उसके लिए नहीं बना है। तुम्हें यह समझना चाहिए।
सकारात्मक दृष्टिकोण कैसे विकसित किया जाए ? इस पर आधारित एक अद्भुत लघुकथा !
यह फिल्म आचार्य रतनानंद (पिताजी) की छोटी कहानियों पर आधारित है, जिसमें नकारात्मक विचारों जैसे ईर्ष्या पर काबू पाने और सकारात्मक दृष्टिकोण एवं सकारात्मक सोच विकसित करने पर एक महान संदेश है।
सौजन्य: दि आर्ट ऑफ लिविंग ब्यूरो ऑफ कम्युनिकेशन्स
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