आत्म सम्मान को पुनः जागृत करने के 4 बेहतर उपाय

 

आत्म सम्मान को पुनः जागृत कैसे करें?



 

अपने उपन्यास 'द ब्लूएस्ट आई' में, टोनी मोरिसन ने एक लड़की के बारे में लिखा था जो अपने रुप से खुश नहीं थी। उसे नीली आँखें चाहिए थीं पर उसकी आँखें काली थीं। वह चाहती थी कि उसके पास एक सुखद परिवार होता परन्तु उसका परिवार खुश नहीं था। उसका कमज़ोर आत्म सम्मान उसके परिवार के लोगों में तालमेल के अभाव के कारण केवल और कमज़ोर ही हुआ जो उसके स्वयं के प्रति प्रेम के पूर्ण अभाव को दर्शा रहा था।

 

हम में से कुछ के घर पर, स्कूल में, साथियों और परिवार के बीच इसी प्रकार के अप्रसन्न पल रहे होंगे। हमने झूठ पर विश्वास किया कि हम उतने अच्छे नहीं हैं। हो सकता है हम में से कुछ लोगों की शुरूआत अच्छी रही हों परंतु बाद में असफलताओं ने हमारे आत्म सम्मान को क्षतिग्रस्त कर दिया हो। अभी भी, हम में से कुछ के जीवन में सब कुछ हमारे पक्ष में जा रहा होगा परंतु, हमारा निरंतर अपने आप से नकारात्मक बात करना हानिकारक हो सकता है।

 

कारण जो भी हो, यहाँ आत्मा की मरम्मत करने की और खोये हुए आत्म सम्मान को पोषण देने की संभावना है। यहाँ आपके आत्म सम्मान में कमी को दूर करने की कुछ सुझाव हैं :

 


 

1. उत्पीड़न पर लगाएं रोक 

जितना आप सोचते हैं कि आप प्रतिकूल परिस्थितियों और लोगों के शिकार हुए हैं, आप उतना ही कमज़ोर महसूस करते हैं। अपने भूतकाल को एक सपने जैसे देखें और भविष्य का सामना मजबूत और निडर होकर करें !

2. मन का हटाएं बोझ 

जिन पलों में आपको छोटा महसूस करवाया गया, जिन पलों में आपने खुद को कम महसूस किया ऐसे असफलता के उदाहरण आपको हानिकारक भावनात्मक बोझ देते हैं। भावनाएं जो किसी बुरी यादों से जुड़ीं हों, आपके आत्म सम्मान को नुकसान पहुंचाती हैं। आत्म विश्वास के पोषण के लिए उन्हें छोड़ना जरूरी  है। परन्तु आप उन भावनाओं को कैसे छोड़ सकते हैं जिन्होंने आपके मन को काफी लम्बे समय तक तोड़ा ? ध्यान के माध्यम से !

ध्यान करने से आत्म सम्मान को बढ़ाना एक वास्तविकता है। ध्यान की प्रक्रिया न केवल आपके मन को परेशान करने वाली भावनाओं को साफ़ करती हैं बल्कि, आपको अपने आप के प्रति सहज भी बनाती है। जब आप अपने आप के साथ सहज होते हैं, आपके आत्मविश्वास वृद्धि होती है। जब हम कमजोर होते है तो हमें कोई भी आकर कुचल देता है। यह इस संस्कार का अज़ीब सा नियम बन गया है। हमें अपने लिए मजबूत होना ही पड़ेगा, हमें कॉन्फिडेंट रहना होगा और इसमें मेडिटेशन हमारी मदद करता है।

 

3. नकारात्मक सोच से रहें दूर 

कभी कभी, यह हमारा ही दिमाग होता है जो निरंतर संदेह व अन्य नकारात्मक बातों से हमें नीचे खींच रहा होता है। अपनी कमियों पर असन्तोष व्यक्त करने की बजाय, उन्हें सुधारने का संकल्प लें। किसी भी आतंरिक नकारात्मक संवाद में लिप्त होने की बजाय, उनका निरीक्षण तब तक करें, जब तक वे विलुप्त न हो जाएँ।

4. अपने आप से तुलना करें 

दूसरों से अपनी  तुलना करना एक ऐसी प्रवृत्ति है जो कई बार खुद को नुकसान पहुंचाने वाले विचारों को जन्म देती है । ये एक ऐसी प्रवृत्ति है जो न तो हमें उपयोगी बनाती है और न ही खुश रहने देती है|

जबकि अगर आप खुद के साथ मुकाबला करते हैं, तो आप न केवल और अधिक उपयोगी होते हैं परंतु मजबूत आत्म सम्मान के स्वामी होते हैं| इसलिए, आप के बगल में बैठे व्यक्ति या मित्र से बेहतर होने की बजाय अपने पिछले दिन व पिछले वर्ष से बेहतर होने का प्रयास करें।