बैंगलुरू 26 अप्रेल 2017 : इस वर्ष 9 और 10 मई को प्रथम राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती सम्मेलन का आयोजन बैंगलुरू में किया जा रहा है। देषभर में उपजे कृषि संकट और इसके हितग्राहियों के साथ मिलकर इस सम्मेलन में प्राकृतिक खेती को बढाने पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
9 और 10 मई को होने वाले इस प्रथम राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती सम्मेलन का आयोजन बैंगलुरू स्थित आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र में आयोजित हो रहा है। इसमें सलाहकार समूह, विषय विषेशज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी, किसान और शिक्षाविद् सम्मेलन की मूल भावना ‘‘विश्व पोषण एवं खाद्य सुरक्षा के लिए अभिनव दृष्टिकोण पर अपने मंतव्य रखेंगे।
इस सम्मेलन में कृषि केन्द्रीय मंत्री श्री राधा मोहन सिंह, आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रवि शंकर जी, जावारा इंडीजीनियस के प्रमुख और संस्थापक श्री इबू हेलियांती हिलमेन, गायों के प्रजनन के अंतर्राष्ट्रीय विषेशज्ञ गोपालभाई सुतारिया और कृषि के अन्य सिद्धहस्त हस्ताक्षर इसमें षामिल होने जा रहे हैं।
गुरूदेव श्री श्री रवि शंकर जो इस सम्मेलन के मार्गदर्शक भी हैं, वे कहते हैं कि, ‘‘कृषि मानव के अस्तित्व का अभिन्न अंग रही है। किसी भी सभ्यता को यदि विकसित होना है तो वहॉं कि कृषि को समृद्ध और संगत होना होगा। हमें भी अपनी प्राथमिक उद्योग कृषि पर ध्यान देना होगा। हमारी धरती पर सबकुछ उपलब्ध है। हमें सिर्फ इसके संसाधनों का उचित रूप से उपयोग करना होगा।’’
इस सम्मेलन को आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल सांईस एण्ड टेक्नोलॉजी ट्र्स्ट के द्वारा प्राकृतिक खेती और इससे पोषण एवं खाद्य सुरक्षा को बढाने के तरीके जानने के लिए आयोजित किया जा रहा है। यह भी लक्ष्य रखा गया है कि भारत की समस्त खेती भूमि को 2025 तक प्राकृतिक खेती में बदलना है। इस संदर्भ में 2 लाख किसानों को श्री श्री इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल सांईस एण्ड टेक्नोलॉजी ट्र्स्ट तैयार भी किया जा चुका है जो इस खेती से लाभ भी ले रहे हैं।
रामकृष्णा स्वामी जो इस सम्मेलन के कर्ता-धर्ता हैं कहते हैं, ‘‘अब हम अच्छी तरह समझ गए है कि रसायन युक्त खेती लम्बी अवधि तक की नहीं है और प्रतिवर्ष उपज घटती जा रही है, पर्यावरण को नुकसान भी पहुॅंचा रहे हैं। विश्व की जनसंख्या 2050 तक 12 बिलियन तक हो जाने की संभावना है और जैविक खेती एकमात्र लंबे समय तक चलने वाली प्रणाली होगी जो इतनी जनसंख्या को परिपूरित कर पाएगी।
यह सम्मेलन अपने आप में प्राकृतिक खेती आंदोलन हेतु ज्ञान की अभिवृद्धि के लिए एक मंच का कार्य करेगा। इसके तहत इस क्षेत्र में हो रहे नवीन कार्य, समन्वय, बेहतर सरकारी कार्ययोजना पर विस्तार से विचार विमर्श किया जाएगा। उच्च कोटि के वैज्ञानिक, इस क्षेत्र में कार्य कर रहे महानुभावों से सम्मेलन के तकनीकी सत्रों में अपने अनुभव को सबके समक्ष रखेंगे। इन आदर्श माडलों से आगे का मार्ग प्रषस्त हो सकेगा। इस सम्मेलन में वित्तीय व कार्यगत समस्याओं के निवारण के लिए भी चर्चा की जाएगी तथा सफलता की कई कहानियों को भी इस अवसर पर बॉंटा जाएगा।
इस सम्मेलन की प्रमुख विषेषताए इस प्रकार हैं-
- इस प्रथम सम्मेलन में रसायन मुक्त खेती के लिए उभरने वाली तर्कसंगत और लंबे समय तक चलने वाली तकनीकों, नीति पर विचार-विमर्ष।
- इस सम्मेलन का एक उद्देष्य यह भी है कि कृषि से संबंधित समस्त हितग्राही सरकारी प्रतिनिधि, कृषि आधारित संगठन, शिक्षाविद् जो राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर के रहेंगे, सभी को प्राकृतिक खेती के प्रचार के लिए एक मंच पर लाना।
- जो लोग प्राकृतिक खेती कर रहे हैं उन्हे प्रशासन, उद्योग, शिक्षाविदों से जोडना और साथ ही सम्मेलन के दौरान लिए जाने वाले निर्णयों में एकरूपता स्थापित करवाना।
- प्राकृतिक खेती में प्रयुक्त होने वाली तकनीकों जो कि आर्गेनिक फार्मिंग से अलग हैं उनका परिचय करवाना।