'दीपावली' एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ "प्रकाश की पंक्तियाँ" होता है| भारतीय कैलेंडर के हिसाब से यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है| यह पर्व ज्ञान (प्रकाश) का अज्ञानता (अंधेरे) पर विजयी होने का प्रतीक है|
पटाखे और आतिशबाजी
क्रोध, ईर्ष्या या भय - जो भी नकारात्मकता आपके मन में पिछले एक साल में जमा हो गई है, वह सभी पटाखे के रूप में विस्फोट हो जाना चाहिए| प्रत्येक पटाखा के साथ, किसी भी व्यक्ति के लिए आपके मन में जो भी नकारात्मकता हो उसका विस्फोट करें या पटाखे के उपर उस व्यक्ति का नाम लिखें और उसका विस्फोट करें और सिर्फ यह जाने कि सभी बुरी भावनाएं, ईर्ष्या, आदि जला दिए गए हैं। लेकिन हम क्या करते हैं? नकारात्मकता को मिटाने के बजाय, या तो हम उस व्यक्ति को मिटाना चाहते है या अपने आप को नकारात्मकता की आग में जलाया करते हैं। आपके पास दूसरा रास्ता भी होना चाहिए। सभी नकारात्मकता या बुरी भावनाएं पटाखे के साथ फोड दें और फिर से उस व्यक्ति के साथ मित्रता बनाए, तब आप प्रेम, शांति और आनंद के साथ हल्कापन महसूस करेंगे| इसके पश्चात् उस व्यक्ति के साथ मिठाई बांटे और दीवाली का जश्न मनाएं। उस व्यक्ति को नहीं लेकिन उस व्यक्ति के अवगुणों का पटाखों से विस्फोट करना ये सही मायने में दिवाली है।
यह उत्सव ढलते चाँद के पखवाड़े के 13 दिन से प्रारंभ होता है।
पहला दिन - धनतेरस
उत्सव के पहले दिन, घरों और व्यावसायिक परिसर को पुनर्निर्मित किया जाता है और सजाया जाता हैं। धन और समृद्धि (लक्ष्मी) की देवी के स्वागत के लिए रंगोली की डिजाइन के सुंदर पारंपरिक रूपांकनों के साथ रंगीन प्रवेश द्वार बनाए जाते है। उसकी लम्बी प्रतीक्षा का आगमन दर्शाने के लिए, घर में चावल के आटे और कुमकुम से छोटे पैरों के निशान बनाएं जाते है। पूरी रात दीपक जलाए जाते है। इस दिन को शुभ माना जाता है इसलिए, महिलाएं कुछ सोने या चांदी या कुछ नए बर्तन खरीदती है और भारत के कुछ भागों में, पशु की भी पूजा की जाती हैं।
इस दिन को धन्वन्तरि-(आयुर्वेद के भगवान या देवताओं के चिकित्सक) का जन्मदिन माना जाता है और धन्वन्तरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन पर, मृत्यु के देवता- यम का पूजन करने के लिए सारी रात दीपक जलाएं जाते हैं इसलिए यह 'यमदीपदान' के रूप में भी जाना जाता है। यह असमय मृत्यु के डर को दूर करने के लिए माना जाता है।
दूसरा दिन - नर्क चतुर्दशी
दूसरे दिन नर्क चतुर्दशी होती है| इस दिन सुबह जल्दी जागना और सूर्योदय से पहले स्नान करने की एक परंपरा है। कहानी यह है कि दानव राजा नरकासुर- प्रागज्योतीसपुर (नेपाल का एक दक्षिण प्रांत) के शासक- इंद्र देव को हराने के बाद, अदिति (देवताओं कि माँ) के मनमोहक झुमके छीन लेते हैं और अपने अन्त:पुर में देवताओं और संतों की सोलह हजार बेटियों को कैद कर लेते हैं। नर्क चतुर्दशी के अगले दिन, भगवान कृष्ण ने दानव को मार डाला और कैद हुई कन्याओं को मुक्त कराकर, अदिति के कीमती झुमके बरामद किये थे। महिलाओं ने अपने शरीर को सुगंधित तेल से मालिश किया और अपने शरीर से गंदगी को धोने के लिए एक अच्छा स्नान किया। इसलिए, सुबह जल्दी स्नान की यह परंपरा बुराई पर दिव्यता की विजय का प्रतीक है। यह दिन अच्छाई से भरा एक भविष्य की घोषणा का प्रतिनिधित्व करता है।
तीसरा दिन - लक्ष्मी पूजन
तीसरा दिन समारोह का सबसे महत्वपूर्ण दिन है-लक्ष्मी पूजा। यह वह दिन है जब सूरज अपने दूसरे चरण में प्रवेश करता है। अंधियारी रात होने के बावजूद भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है। छोटे छोटे टिमटिमाते दीपक पूरे शहर में प्रज्वलित होने से रात का अभेद्य अंधकार धीरे-धीरे गायब हो जाता है। यह माना जाता है कि लक्ष्मीजी दीपावली कि रात को पृथ्वी पर चलती हैं और विपुलता व समृद्धि के लिए आशीर्वाद की वर्षा करती है। इस शाम लोग लक्ष्मी पूजा करते है और घर की बनाई हुए मिठाई सभी को बांटते है।
यह बहुत ही शुभ दिन है क्योंकि इसी दिन कई संतों और महान लोगों ने समाधि ली और अपने नश्वर शरीर छोड़ दिया था। महान संतो के दृष्टांत में भगवान कृष्ण और भगवान महावीर शामिल हैं। यह वो दिन भी है जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद माता सीता और लक्ष्मण के साथ घर लौटे थे।
इस दिवाली के दिन के बारे में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी कठोपनिषद से भी है| एक छोटा सा लड़का था जिसका नाम नचिकेत था| वह मानता था कि मृत्यु के देवता यम, अमावस्या की अंधेरी रात के जैसे रूप में काले हैं लेकिन जब वह व्यक्ति के रूप में यम से मिला, तो वह यम का शांत चेहरा और सम्मानजनक कद देखकर हैरान रह गया। यम ने नचिकेता को समझाया केवल मौत के अंधेरे के माध्यम से गुजरने के बाद व्यक्ति उच्चतम ज्ञान की रोशनी देखता है और उसकी आत्मा, परमात्मा के साथ एक होने के लिए अपने शरीर के बंधन से मुक्त होती हैं। तब नचिकेता को सांसारिक जीवन के महत्व और मृत्यु के महत्व का एहसास हुआ। अपने सभी संदेह को छोडकर, उसने फिर दिवाली के समारोह में हिस्सा लिया।
चौथा दिन - गोवर्धन पूजा (बलि प्रतिपदा)
समारोह का चौथा दिन वर्ष प्रतिपदा के रूप में जाना जाता है और राजा विक्रम की ताजपोशी को चिह्नित करता है। यह वो दिन भी है जब भगवान कृष्ण ने भगवान इंद्र की मूसलाधार बारिश के क्रोध से गोकुल के लोगों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था।
पांचवा दिन - भाईदूज
भाइयों और बहनों के बीच प्रेम का प्रतीक दर्शाता है। भाई उन्हें उनके प्यार की निशानी के रूप में एक उपहार देते हैं।
यह माना जाता है कि धन (लक्ष्मी देवी) बहुत क्षणिक है और यह केवल वहीं रहती है, जहां कड़ी मेहनत, ईमानदारी और कृतज्ञता हो। श्रीमद भागवत में, वहाँ एक घटना के बारे में एक उल्लेख है जब देवी लक्ष्मी ने राजा बली का शरीर छोड़ दिया और भगवान इंद्र के साथ जाना चाहती थी। पूछताछ पर उन्होंने कहा कि वह केवल वहीं रहती है, जहां 'सत्य', 'दान', 'तप', 'पराक्रम' और 'धर्म' हो।
इस दिवाली हम सब प्रार्थना करे और आभारी महसूस करें। विश्व के हर कोने में समृद्धि हो और सभी लोग प्यार, खुशी और अपने जीवन में विपुलता का अनुभव करे।
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