जीवन में सभी समस्याएँ इसलिए आती हैं क्योंकि आप घटनाओं को अत्यधिक महत्व दे देते हैं। परिणाम स्वरूप घटनाएँ बड़ी हो जाती हैं और आप छोटे रह जाते हो।
मान लीजिए : आप एक व्यस्त सड़क पर मोटर साईकिल पर जा रहे हैं और आपके आगे एक अन्य वाहन धुआँ छोड़ते हुए चल रहा है । ऐसे में आपके पास तीन विकल्प हैं :
- आप शिकायत कर सकते हैं, किसी तरह इस को सहन करें और फिर भी उस वाहन के पीछे चलते रहें।
- आप धीमे हो जाएं अथवा कुछ देर प्रतीक्षा करें ताकि वह वाहन आपसे दूर हो जाए।
- आप युक्ति लगा कर कुशलता से उस वाहन से आगे निकल जाएं और उसे भूल जाएं।
जैसा कि पहले केस में है, आप में से अधिकतर लोग घटनाओं से बंधे रह कर ऐसे दुखी होते रहते हो, जैसे पूरी यात्रा में धुआँ अंदर लेते रहना।
दूसरी अवस्था में आपको स्थायी राहत नहीं मिलती, क्योंकि एक अन्य बड़ा वाहन आपके आगे आ सकता है। उसी प्रकार से किसी घटनाओं अथवा परिस्थियाँ से मुँह फेरना कोई स्थायी समाधान नहीं है ।
शांत हो जाओ और जैसे हो वैसे बने रहो !
घटनाएँ आती हैं और चली जाती हैं , वे फूलों की तरह नश्वर हैं।
किंतु प्रत्येक घटना / परिस्थिति व व्यक्ति में कुछ शहद अवश्य होता है।
मधुमक्खी की तरह हर एक घटना , हर एक पल से मधु निकालते रहो - और आगे बढ़ो।
मधुमक्खी की भाँति व्यस्त रहो तथा अपने स्वभाव में बने रहो।
अपने हृदय को किसी सुरक्षित स्थान पर रखो ; यह अत्यंत कोमल है। घटनाएँ और छोटी छोटी चीज़ें इस पर गहरे निशान बना देते हैं। अपने हृदय को सुरक्षित तथा मन को स्वस्थ रखने के लिए आपको परमात्मा से बेहतर कोई स्थान नहीं मिल सकता। व्यतीत हो रहा समय ( काल) तथा घटनाएँ आपको छू भी नहीं पाएँगे ; वह कोई निशान नहीं छोड़ पाएँगे।
किसी भी बहुमूल्य रत्न को स्थापित करने के लिए उसको सोने अथवा चाँदी में जड़ना पड़ता है ; बुद्धिमता व ज्ञान सोने -चाँदी की भाँति आपके हृदय को परमात्मा में स्थापित कर देते हैं।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित