संशय एक दुर्गम व अपरिभाषित क्षेत्र है। स्लेटी रंग मतलब न तो वह सफ़ेद है और न ही काला । ऐसे में , किसी संशय का निवारण कैसे करें ?
संशय को काला अथवा सफ़ेद, कोई एक, मान लो।
यदि आप अपने संशय को सफ़ेद मान लेते हो तो फिर कोई संदेह है ही नहीं। ऐसे ही यदि संशय को काला मान लो और उसे स्वीकार कर लो । दोनों ही अवस्थाओं में तुम स्वीकार कर ही रहे हो, अतः आगे बढ़ जाओ।
इसी प्रकार तुम किसी व्यक्ति को ईमानदार अथवा बेईमान, में से किसी एक रूप में देखो और उसे स्वीकार कर लो। ऐसा करने से तुम्हारा मान शांत रहेगा। तब तुम संशय के दुर्गम क्षेत्र में नहीं रहोगे। यह दृढ़ विश्वास रखो कि “ यह व्यक्ति बेईमान है, फिर भी वह मेरा ही एक अंग है। वह जैसा भी है, मुझे स्वीकार्य है।” बस यही। बात खतम !
संशय एक ऐसी अवस्था है जब आप न तो इस छोर पर टिके हैं न ही दूसरे छोर पर। वहीं से तनाव उत्पन्न होता है। इस ओर या उस ओर, एक दिशा में आगे बढ़ो और अपने आधार को पुनः प्राप्त करो।
क्या तुमने कभी ध्यान दिया है कि तुम सामान्यतः केवल उन्ही चीजों पर संदेह करते हो जो तुम्हारे जीवन के लिए सकारात्मक हैं ? तुम कभी नकारात्मक चीजों को लेकर संदेह में नहीं होते। तुम किसी व्यक्ति की ईमानदारी पर संदेह करते हो किंतु किसी की बेईमानी पर विश्वास कर लेते हो। ऐसे हीजब कोई तुमसे नाराज़ होता है तो तुम्हें उसकी नाराज़गी को लेकर कोई संशय नहीं होता। परंतु जब कोई तुमसे कहे कि वो तुमसे बहुत प्यार करता है तो तुम्हारे भीतर संशय उठ जाता है : क्या वह सच में मुझ से प्यार करता है? जब तुम अवसाद में होते हो तो कभी सोचते हो कि क्या मैं सच में अवसाद में हूँ? नहीं, तुम अपने अवसाद को एक वास्तविकता मान लेते हो। फिर भी, जब तुम प्रसन्न होते हो, तो तुम्हें संशय होता है : क्या मैं सच में खुश हूँ ; क्या यही है जो मुझे चाहिए था? तुम अपनी योग्यता पर तो संदेह करते हो, परंतु क्या तुमने कभी अपनी अयोग्यता पर संदेह किया है ?
अपने जीवन में सकारात्मक चीजों पर संशय करने की इस प्रवृत्ति को देखें। संशय को उसके उचित स्थान पर ही रखें और केवल संशयों पर ही संशय करें।
नकारात्मक पर ही संशय करो और अपना विश्वास सकारात्मकता पर बनाए रखें।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी कि ज्ञान वार्ता पर आधारित