अहंकार कब होता है ?
- जब तुम पर ध्यान नहीं दिया जाता।
- जब तुम्हारे ऊपर कम ध्यान दिया जा रहा हो।
- जब तुम पर विशेष ध्यान दिया जा रहा हो।
अहंकार से भारीपन, असहजता, भय तथा चिंता पैदा होती है। अहंकार प्रेम को स्वच्छंद हो कर बहने नहीं देता। अहंकार का मतलब है अलगाव, अपनेपन की कमी, स्वयं को सिद्ध करने की चाहत और कुछ पाने की तीव्र इच्छा। हम सत्य को जान कर अहंकार से ऊपर उठ सकते हैं,अपने आप से यह पूछ कर कि “मैं कौन हूँ।”
प्रायःअहंकार में हम किसी के प्रति तिरस्कार अथवा ईर्ष्या की भावना रखते हैं। इसकी बजाए आपके मन में करुणा होनी चाहिए।
अहंकार का एक सार्थक पहलू भी है : अहंकार किसी को भी कार्यशील रहने को प्रेरित करता है। कोई व्यक्ति किसी काम को ख़ुशी से, करुणा से अथवा अहंकार से कर सकता है। समाज में अधिकतर कार्य अहंकार को बनाए रखने और उसे बढ़ाने के लिए ही किए जाते हैं। किंतु सत्संग में, कार्य प्रेम भावना से ही होते हैं।
जब तुम जागृत होते हो और देखते हो कि सिद्ध करने को अथवा पाने को कुछ भी नहीं है , तो अहंकार अपने आप पिघल कर मिट जाता है।