यह जान लो कि अपमान (अथवा अनादर) आपको कमजोर नहीं बनाता, बल्कि यह तो आपको बल देता है। जब आपमें अपनेपन की भावना होती है तो आप शर्मिंदगी महसूस नहीं करते। आप जितने अहंकार से जितने अधिक भरे हैं, उतना ही आप अधिक अपमानित महसूस करोगे। पर जब आप बालसुलभ होते हो तथा अपनेपन की भावना रखते हो तो आप कभी अपमानित महसूस नहीं करते।
जब आप सत्य के प्रति समर्पित हैं, न कि अपने अहंकार के प्रति, तब भी आप अपमानित महसूस नहीं करते।
यदि आप अपमानित होने से डरते हो, तो आप न तो भौतिक जीवन में उन्नति कर सकते हो और न ही आध्यात्मिक जीवन में।
जब आप मान-अपमान के संकीर्ण विचारों से ऊपर उठते हो, तब आप अपने वास्तविक स्वरूप - ईश्वरीय रूप , के निकट आ जाते हो। जब आप सर्वदा समस्त जगत व ईश्वर के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत रहते हो तो आप कभी अपमानित महसूस कर ही नहीं सकते।
इसलिए, अपमान से बाहर आने के लिए यह करें :
- अपमानित होने का अनुभव लो
- शिशुसुलभ बनो
- मस्त / सनकी/ दीवाने बनो
- ईश्वरीय प्रेम में ओत-प्रोत हो जाओ
- स्वयं को सत्य के प्रति, ज्ञान के प्रति समर्पित कर दो
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित।