प्रकाश का त्योहार है दिवाली
‘पू’ का अर्थ है ‘परिपूर्णता’ और ‘जा’ का अर्थ है ‘वह जो परिपूर्णता से जन्मा है’। इसलिए, पूजा का अर्थ है वह जो परिपूर्णता से जन्मा है और पूजा करने से जो प्राप्त होता है – वही परिपूर्णता और संतुष्टि है। पूजा करने से वातावरण में सूक्ष्म तरंगें बनतीं हैं जिससे सकारात्मकता आती है।
दिवाली प्रकाश का त्योहार है। भगवान बुद्ध ने कहा है, "अप्प दीपो भवः" -आप स्वयं ही प्रकाश बन जाईये। सभी वेद और उपनिषद भी यही कहते हैं - "आप सभी प्रकाश हैं। आप में से कुछ प्रकाशित हो गए हैं और कुछ अभी प्रकाशित नहीं हुए हैं। लेकिन सभी के अंदर प्रकाश देने की क्षमता है।" दिवाली वह दिन है जब हम अंधकार को दूर करते हैं। और अंधकार को मिटाने के लिए एक रोशनी काफी नहीं है, उसके लिए पूरे समाज को प्रकाशित होना होगा। परिवार में केवल एक सदस्य का खुश होना काफी नहीं है, प्रत्येक सदस्य को खुश होना होगा। यदि एक भी सदस्य खुश नहीं है, तो बाकी लोग भी खुश नहीं रह सकते। इसलिए प्रत्येक घर को प्रकाशित होना होगा।
दूसरी चीज़ जो हम सबको अपने जीवन में लानी है वह है 'मिठास'। केवल मिठाई मत बांटिए, बल्कि सभी लोगों को मिठास बांटिए। दिवाली का त्योहार हमें यही याद दिलाता है कि यदि मन में कोई कड़वाहट है, कोई दबाव या दिल में कोई तनाव है तो पटाखों की तरह उन सबको फोड़ दीजिए और एक नए जीवन की शुरुआत कीजिए, उत्सव मनाईये!
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अमावस की रात को मनाते हैं दिवाली और इस दिन मां लक्ष्मी की आराधना शुभ है
दिवाली को अमावस की रात को मनाते हैं और इस दिन लक्ष्मी देवी की पूजा करते हैं। वह दिव्यता जो हमें समृद्धि प्रदान करती है - देवी लक्ष्मी उसी का रूप हैं। भारत में भगवान् केवल पुरुष नहीं, बल्कि स्त्री रूप में भी पूजे जाते हैं। जिस प्रकार सफ़ेद रोशनी में सात रंग होते हैं, उसी प्रकार एक दिव्यता के अलग-अलग रूप होते हैं। इसलिए आज के दिन हम ऋग्वेद के कुछ प्राचीन मन्त्रों के द्वारा देवी लक्ष्मी का आवाहन करते हैं और इससे सकारात्मक तरंगें एवं समृद्धि प्राप्त करते हैं।
दिवाली के पहले वाले दिन को 'धनतेरस' कहते हैं। पुराने दिनों में इस दिन लोग अपनी सभी धन-समृद्धि को लाकर ईश्वर के सामने रख देते थे। आमतौर पर धन को या तो बैंक में रखते हैं या लॉकर में छुपाकर रखते हैं। लेकिन पुराने दिनों में, धनतेरस के दिन लोग अपने सारे धन को सामने रखकर देखते थे और समृद्ध महसूस करते थे। केवल सोना-चांदी ही धन नहीं है, ज्ञान भी धन है। तो इस प्रकार से उत्सव मनाया जाता था। आपको अपने ज्ञान को भी संजो कर रखना चाहिए और समृद्ध महसूस करना चाहिए। धनतेरस 'आयुर्वेद' का दिन भी है, क्योंकि जड़ीबूटियां भी धन हैं। जड़ीबूटियां और पेड़-पौधे भी धन हैं। ऐसा कहते हैं कि धनतेरस के दिन ही मानवता को अमृत दिया गया था।
महसूस कीजिए कि आप बहुत सौभाग्यशाली हैं
आज के दिन ऐसा महसूस कीजिए कि आप बहुत सौभाग्यशाली हैं और तृप्त महसूस कीजिए! जब भी हम खुद को धन्यभागी समझते हैं, तब हमें जीवन में और मिलता है। बाइबल में कहावत है - "जिनके पास है, उन्हें और दिया जाएगा और जिनके पास नहीं है, उनसे जो भी थोड़ा-बहुत है वह भी ले लिया जाएगा।" पुराने ज़माने से यही विचार रहा है कि जीवन में समृद्ध महसूस कीजिए। समृद्धि हमारे भीतर से शुरू होती है और फिर ही बाहर व्यक्त होती है। तो आज इस भावना के साथ वापिस जाइए कि आपके पास बहुत आशीर्वाद है।
श्री श्री रविशंकर जी के ज्ञान वार्ता से संकलित
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