वर्तमान युग में तनाव एक अपरिहार्य साथी है। इससे गम्भीर बीमारियाँ हो सकती हैं और आपकी मानसिक शांति छिन सकती है। इसलिए इसको प्रारम्भिक अवस्था में ही रोकना हितकर होगा , है न ? गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ने हमें तनाव व उसके दुष्परिणामों द्वारा परेशान किए जाने वाले वाले प्रश्नों व संशयों को लेकर व्यावहारिक तथा विनोदपूर्ण तरीक़े से उत्तर दिए हैं ।
तनाव क्या है?
जब बहुत कुछ करना हो , बहुत कम समय में और ऊर्जा क्षीण हो ।
क्या तनाव से मेरा प्रदर्शन बेहतर होता है?
कभी-कभी, थोड़ा बहुत तनाव तुम्हें बेहतर करने के लिए प्रेरित कर सकता है। तथापि, यह लोगों की सृजनात्मकता बढ़ाने के लिए मुख्य भूमिका नहीं निभाता। यह विचार कि “आवश्यकता अविष्कार की जननी है”, अब पुराना हो चुका!
अगर तनाव ही प्रेरित करने का मुख्य तरीक़ा होता तो लेबनान व अफगानिस्तान जैसे युद्ध ग्रस्त देश विश्व के नायक होते! किंतु इन्होंने गत 40:वर्षों में विश्व को कोई नयी खोज नहीं दी है।
किसी भी व्यक्ति को सृजनात्मक एवं आविष्कारशील होने के लिए, उसके मन का तनाव रहित होना अति आवश्यक है।
तनाव का समाधान क्या है?
आप अपने स्वयं के अनुभव से सीख सकते हैं। आपके जीवन में अवश्य ऐसे पल आए होंगे जब तुम्हें लगा होगा कि अब सब समाप्त है, अंत आ चुका है, ऐसा हुआ है न? फिर भी तुम अभी तक जीवित हो और उछल कूद रहे हो! ऐसा और क्या है जो तुम्हारी सहायता कर सकता है ? ध्यान का अभ्यास करो ; इससे तुम्हारे जीवन में स्पष्ट परिवर्तन आएगा।
तनाव के परिणाम :
चिंता, नकारात्मकता, उदासी और निराशा।
मैं तनाव से मुक्त कैसे होऊँ?
- यह स्वीकार करो कि तुम सदैव चिंताग्रस्त रहते हो , वैसे , चिंता का परिणाम शून्य ही है ! तुम अभी भी यहाँ हो। विश्व टूट कर तुम्हारे सिर पर नहीं गिरा !
- भस्त्रिका प्राणायाम तथा सुदर्शन क्रिया करो। इनके अभ्यास से तुम्हें लाभ होगा।
- उन लोगों की सुनो जिनके जीवन में तुमसे बड़ी व अधिक समस्याएँ हों ।एक दिन किसी पागलखाने में व्यतीत करो !
- वहाँ मरीज़ों को सुनो, व उनके जीवन पर दृष्टि डालो । इससे तुम्हें जीवन को परिप्रेक्ष्य में देखने की शिक्षा मिलेगी।
- किसी शमशान घाट अथवा क़ब्रिस्तान में जाओ और यह याद रखो कि एक दिन तुम्हें भी वहाँ आना ही है।
क्या आपने चिंता से निपटने के लिए निर्देशित ध्यान का प्रयास किया है?
जीवन अस्थायी है । भूतकाल घटनाओं को लेकर चिंता करना व्यर्थ है ।इस यथार्थ को जानने व स्वीकारने से चिंताओं से पार पाने में सहायता मिलती है ।
मैं स्वयं को नकारात्मक विचारों से कैसे बचाऊँ?
नकारात्मक विचार नियमित रूप से हमारे मन में आते रहते हैं और संशय पैदा करते रहते हैं। यह सब ऐसे सवाल खड़े कर देते हैं, जिनका कोई जवाब नहीं होता, फिर भी यह हमें कष्ट देते हैं और हमारे भीतर हिंसक प्रवृत्तियाँ जन्म ले लेती हैं ।
कई बार, ऐसे लोगों को केवल कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए होता है जो उनकी बात सुन सके । उनको सिर्फ़ ध्यान देने वाले और उनको समझने वाले की आवश्यकता होती है, न कि किसी समाधान की। यह बात उग्रवादियों पर भी लागू होती है, जिनको तिरस्कार की नहीं, अपितु करुणा की आवश्यकता होती है क्योंकि वे जीवन में बहुत आहत हुए होते हैं।
तथापि, यह महत्वपूर्ण है कि किसी भी नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के साथ सहानुभूति न दर्शायी जाए क्योंकि ऐसा करने से हम उनके अवास्तविक विश्वासों को ही बल देंगे।
मैं उदासी से कैसे बाहर निकलूँ?
इसका एक रहस्य है ! उदासी किसी अन्य के द्वारा नहीं दो जाती - यह आपके अपने मन द्वारा दिया गया उपहार है!
उदासी से बाहर आने के लिए यह चार उपाय हैं :
- अपनी इच्छाओं को त्यागो । किसी भी इच्छा से एक गेंद की तरह ही व्यवहार करो और उसे लात मार कर अपने से बहुत दूर फेंक दो ।
- इच्छाओं का त्याग करने के लिए बहुत साहस व आत्मनियंत्रण की आवश्यकता होती है । अपने भीतर के शौर्य को जगाओ ।
- अपने कार्यकलापों की ज़िम्मेदारी लो और स्वयं को समझने का प्रयास करो।
- सब कुछ ईश्वर को समर्पित कर दो , क्योंकि ईश्वर बिना प्रश्न किए सब कुछ स्वीकार करते हैं ।
कुंठाओं पर कैसे विजय पाएँ?
निराशा अथवा कुंठा का उदय तब होता है जब हम दूसरों से हर कृत्य में उत्कृष्टता की अपेक्षा करते हैं। हमारी अपेक्षा होती है कि लोग, संस्थान और यहाँ तक कि राष्ट्र भी आदर्श हों। हम चाहते हैं कि सब काम समयानुसार हों और जीवन ऐसे चले जैसे हमारी कल्पना में है। जब ऐसा नहीं हो पाता, और प्रायः ऐसा होता ही है, तो हम निराश हो जाते है।
चूँकि हम बाह्य जगत में आदर्शवादिता को ढूँढने में लगे रहते हैं, अपने भीतर की त्रुटियों की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने भीतर देखें। जब हम स्वयं को सुधारने का प्रयास करते हैं और हमारा उद्देश्य अपनी पूर्णता होता है तो हमारा ध्यान दूसरों की त्रुटियों की ओर जाता ही नहीं। यहाँ तक कि हम दूसरों को सुधारने में भी योगदान दे सकते हैं। इस से हम अपनी कुंठाओं पर विजय पा सकते हैं।
तनाव कम करने के लिए सुदर्शन क्रिया का अभ्यास करें
जब हम तनावग्रस्त होते हैं तो हमारे अंदर कोर्टिसोल नाम के हार्मोन निकलते हैं। यह हार्मोन मस्तिष्क की कोशिकाओं द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले न्यूरो- ट्रांसमिटर की कार्य प्रणाली में बाधाएँ उत्पन्न करता है, जिससे मस्तिष्क भ्रमित हो जाता है और काम करना बंद कर देता है। कोर्टिसोल कुछ ऐसी रासायनिक प्रतिक्रियाओं को भी उत्पन्न करता है जो मस्तिष्क की कोशिकाएँ को मारने का काम करती हैं।
सुदर्शन क्रिया विज्ञान द्वारा प्रमाणित एक ऐसा तनाव प्रबंधन का उपाय है जिसमें श्वास का उपयोग भावनाओं को नियंत्रित करने में होता है। अनेकों स्वतंत्र शोध किए गए हैं जो यह दर्शाते हैं कि सुदर्शन क्रिया से मन की एकाग्रता और सजगता में वृद्धि होती है। भारत के मनोरोगों के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा किए गए शोध कार्यों में पाया गया है कि सुदर्शन क्रिया करने वाले व्यक्तियों में कोर्टिसोल अति अल्प मात्रा में पाया जाता है। सुदर्शन क्रिया से प्रोलेक्टिन के स्तर में भी वृद्धि होती है - जो एक स्वास्थ्यकारी हार्मोन है ।
स्वीडन के शोधकर्ताओं ने भी पाया है कि श्वास की यह प्रक्रिया तनाव, चिंता और निराशा को कम करती है , तथा आशावादिता और स्वास्थ्य में वृद्धि करती है । इसके कोई दुष्परिणाम नहीं हैं और यह अवसादरोधक औषधियों से सस्ती भी है।
यदि आप सुदर्शन क्रिया सीखना चाहते हैं, तो आर्ट ऑफ लिविंग के हैप्पीनेस कार्यक्रम में शामिल हों।