प्रश्न : गुरुजी, शास्त्रों के अनुसार माँ को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, और वह है भी। और तभी अर्धांगिनी कहा गया है। लेकिन दोनों की रीति रिवाजों से हमेशा बनती नहीं है। मैं माँ से कुछ कहूँ तो पत्नी गलत समझती है। और पत्नी से कुछ कहूँ तो माँ गलत समझ लेती है। अब तो ऐसा हो गया है की दोनों एक साथ आएं तो घर में अशान्ति हो जाती है। कृपया मार्ग बताएं।
ऐसे सुनों जैसे सुना ही नहीं
गुरुदेव : बस, भई इस परिस्थितिसे मैं परिचित नहीं हूँ। फिर भी मैं एक बात कहूँ। तुम बहरे बन जाओ। जब एक दूसरे की बात कहते हैं ऐसे सुनों जैसे सुना ही नहीं। कालांतर में सब ठीक हो जाता है। जब किसी एक की बात ले के यदि तुम उस पर अमल करने लगते हो तो मुसीबत में पड़ने लग जाते हो। सिर्फ पत्नी और माँ की बात नहीं। दुनिया में कही भी, किसी भी एक पक्ष की बात को हम लेते है और दूसरे पक्ष के लिए कान नहीं देते। माने दूसरे पक्ष को नहीं सुनते है तो कहीं ना कहीं गड़बड़ होता है। इसलिए तुम्हें बड़े संवेदनशील रहना पड़ेगा। किसी का मन, कब कैसा होता है यह तुम्हारा कोई, तुम्हें पता नहीं है।
नाप-तोल के करो बातें
इसलिए तुम्हें भगवान के भरोसे, नाप तोल के बातें करनी पड़ेगी। और जब भी झंझट की बात हो तो ज्ञान में ले के आओ। सिर्फ ज्ञान की बातों से ही दुनियादारी की उलझन से ऊपर उठ सकते है। समझा बुझाने से कभी संभव होता ही नहीं। दुखी हो जाता है व्यक्ति। और तुम दोनों तरफ से पीट जाओगे फिर नहीं तो।
इसलिए पत्नी को समझाओ, माँ बड़ी है, माँ को सम्मान करो। माँ को समझाओ, वह छोटी है, उसको अभी मैच्यूरिटी नहीं है, इसको थोड़ा सा तुम भी किसी तरह से सह लो, बोलना।
सहनशक्ति बढ़ाने के लिए सुदर्शन क्रिया का सहारा लो
तो इस तरह से दोनों तरह से सहनशक्ति को बढ़ाने के लिए ही तो सुदर्शन क्रिया करा दो दोनों को। कभी बैठ के ध्यान, साधना करेंगे तो समझने लगेंगे। उलझन से ऊपर उठनेका मार्ग सिर्फ सत्संग है, सिर्फ सत्संग। और सत्संग के बावजूद भी यदि उलझन रहें तो यह कर्मफल है, उसमें तुम्हें, यह नहीं करो, जो करना है तुमने कर लिया अब और कोई, कुछ उसको स्वीकार करना चाहिए ऐसा।
संकलन एवं संपादन : रत्नम सिंह
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित