प्रश्न : गुरुदेव, भारत में अब भी ऐसी जगह हैं जिन्होने बहुत समय बीतने पर भी अपना व्यक्तित्व बनाये रखा, अपनी जीवनशैली बनाए रखी। जहाँ समय बहुत परिवर्तन लाया है वह जगह अपनी जड़ों से संबंध कैसे गहरा कर सकती हैं?
150 साल पुराना है आर्ट ऑफ़ लिविंग का जर्मनी आश्रम
गुरुदेव : आप यूरोप जाओगे, यूरोप में फ्रांस हो, इटली हो वहाँ क्या होता है कि जो पुराने मकान हैं, तीन सौ चार सौ पाँच सौ साल पुराने, गलियाँ है, मकान है इसको गिराने नही देते हैं। उसको वैसे बनाये रखते हैं। अभी हमारा अपना आश्रम जर्मनी में है वो कोई डेढ़ सौ साल पुराना या ऐसा कुछ है, अब वहाँ की सरकार या म्युनिसिपालिटी परमिशन नही देती है फ्रंट में खिड़की भी चेंज करने का। वो बोलते हैं उसको, सामने जैसा है वैसा ही रखना पड़ेगा। हाँ! अंदर जो भी सुविधायें हैं वो आप बदलो। पीछे की तरफ खिड़की-विड़की बदलना है तो बदलो मगर जो सामने की तरफ है ना वो जैसा बना है वैसा ही बनाये रखना। यह कंडीशन होता है। हमारे देश में वो सब चीजे हैं नही। हम पुरानी चीज को कोई महत्व देते नही। आज ही हम, मैने बताया ना, बत्तीस साल बाद एक जगह गये, वहाँ पहले तो इतना अच्छा एक गाँव का वातावरण था। जो मकान बनी हुई थी हवेली जैसे बनी हुई थी। आज जाकर देखता हूँ मैं, बत्तीस साल बाद वो सब बदल गया। सिमेंट विमेंट का सब खड़ा कर दी। वो मंदिर भी। मैने उन लोगों को कहा, मंदिर के ट्रस्टीज को, “अरे भाई इतना बड़ा-बड़ा मूर्ति यहाँ लगाने की क्या जरुरत है आपको? जैसे पुराने जमाने मे था वैसे बनाये रखो।” नहीं तो सीमेंट में बना देते हैं बड़े-बड़े मूर्तियाँ, सब खड़ा कर देते हैं। उसका वो जो पुरातन चीज की जो बात थी वो खो जाती है कहीं। तो हमारे देश में कुछ पुरातत्व संग्रहालय या कुछ पुरातत्व मंदिरों को तो बचाये रखे हैं। मगर गाँव को, छोटे-छोटे शहर को इस तरह बचाया नही गया। यह आवश्यक है! तब हमे पता भी चलता है।
भारत का पुरातत्व ही टूरिज्म का मुख्य बिंदु
यूरोप में खास तौर से कई ऐसे शहरों मे, ये टूरिस्ट सिटी ऐसे वैसी की वैसी बनी रहती है। नया शहर बनाना है उससे थोड़ा हट के, दूर पे बनाते हैं। हमारे यहाँ जैसे वह सब तोड़ फोड़ के वो सब नही करते। हमारे
देश में भी ये ऐसा करना आवश्यक है। कुछ पुराने गाँवों को ऐसे बनाये रखना। वहाँ के जो मकान जैसा-वैसा है, उसी को ठीक-ठाक करके, उसी स्टाईल में वैसा ही बनाये रखना चाहिये। तब भारत की पुरातत्व की बात समझ में आती है। हम देखते हैं वाराणसी इतनी पुरानी हमारी नगरी है, उधर भी देखिये वो पुराने मकानों को तोड़कर अभी नया सिमेंट जैसा लगाते हैं, वही रंग रूप, सिमेंट और प्लास्टर करो, सिमेंट लगा दो, लेंटल लगा दो, कंक्रीट करो, यही कर रहे हैं। वो खप्पर का जो मकान हुआ करताथा, और सब टीक वुड के लकड़ी के खम्भे होते थे घर के अंदर, इसका एक नमूना या उस शहर की जोमॉडल है ना इसको हमे बचा के रखना चाहिये। तब टूरिस्ट को और ज्यादा इंटरेस्ट रहेगा भारत में।
बैंगलोर आश्रम के मधुवनम में मिलता है कर्नाटक के पुराने गाँवों जैसा अनुभव
हमारे अग्रीकल्चर ट्रस्ट के अपने प्रसाद जी ने यहाँ पर यहाँ से दो किलोमीटर पर एक ‘मधुवनम्’ जगह बनाया कि बैंगलोर के जो बच्चे हैं इनको कर्नाटक के गाँव का एक अनुभव मिल जाए। इस कारण से तो वहाँ स्कूलों से बच्चे आते हैं और पूरा गाँव का वातावरण बनाया। इधर ही, सामने अपने ही आश्रम की जगह। पहले हम वहाँ रहते थे, आश्रम आया जाया करते थे। तो उस जगह पर उन्होने ऐसे बना
दिया, वहाँ चरखा है और मग्गा- निकार वहाँ बैठते हैं और बैल गाड़ी और कोल्हू, जहाँ पर गुड़ बनाते हैं, और ये सारी चीज़ें जैसे गाँव में होता था, वैसे भोजन भी ऐसा बनाते है, बिलकुल जो चौखट लगाकर बैठकर खाना खाते हैं। ये सब बनाया, लोग जायेंगे एक अनुभव मिलता है गाँव कैसे होता था, गाँव का अनुभव क्या है।
गुरुदेव की ज्ञान वार्ता पर आधारित।
संकलन एवं संपादन : रत्नम सिंह