भारत में प्राकृतिक जल संसाधन प्रबंधन के विशेषज्ञ डॉ. लिंगराजु येल कहते हैं, कि” नदी एक जटिल पारिस्थितिकी –तंत्र ( इको -सिस्टम ) है।",अर्थात यह एक जटिल पर्यावरण व्यवस्था है। एक उजड़े हुए जटिल पारिस्थितिकी सिस्टम को फिर से जीवित कर, सुचारु रूप से संचालित करने एवं समृद्ध पर्यावरण-व्यवस्था में बदलने के लिए एक प्रतिबद्ध टीम के अथक (बिना थके )कार्य करने की आवश्यकता होती है, ताकि वह फिर से सांस ले सके।
कुमुदवती नदी के पुनर्निर्माण -कायाकल्प परियोजना की कहानी आशा, प्रतिबद्धता और कठोरता की है। 2013 के मध्य के बाद से, डॉ. येल और उनकी 20 टीम, पूर्णकालिक आर्ट ऑफ लिविंग के पूर्णकालिक(स्थायी) स्वयंसेवकों और कुछ 100,अंशकालिक (सीमित -अवधि ),स्वयंसेवकों ने भारत के चार राज्यों में कुमुदवती नदी को फिर से जीवंत करने के लिए अपना काम शुरू किया एवं टीम ने महाराष्ट्र (22), कर्नाटक (4), तमिलनाडु (3) और केरल (1) में 30 नदियों का काम अपने अधीन किया।
डॉक्टर येल के अनुसार- "फरवरी 2013 में, दी आर्ट ऑफ लिविंग की एक बड़ी टीम ने इस चुनौती को स्वीकार करने का फैसला किया ,और निरंतर उस पर कार्य करने के लिए वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हुए, नदी के पुनरुत्थान हेतु, कुमुदुवती नदी परियोजना पर काम शुरू करने के लिए , गांवों की यात्रा के लिए अपने सप्ताहांत को समर्पित किया।
"डॉ. येल और उनकी टीम आखिर क्या कर रहे है? वैसे एक तरह से देखा जाए तो, जिसके फलस्वरूप पूरे देश भर में मौलिक परिणाम, देश के कई हिस्सों में दिखने की संभावना के समान है।
फ़िलहाल अभी 278 गांव और बेंगलुरु एवं भारत की आईटी कैपिटल ऑफ़ इंडिया, 460 वर्ग किलोमीटर के कुमुदवती नदी के पुनरुत्थान पर कई उम्मीदें लगा रहे हैं।
यह कैसे शुरू हुआ?
वर्ष 2007 में बढ़ते संकट को देखते हुए, प्राप्त सूचना के अनुसार - बेंगलुरु को ताजे पानी की आपूर्ति की 20 प्रतिशत कमी का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि कुमुदवती नदी के थिपैगोंदनहल्ली जलाशय शुष्क हो गया था।
कुछ वर्षों से चल रही समस्या ओर भी बढ़ गई, यह चरम सीमा पर पहुँच गयी। प्रभावित गाँव जिनके द्वारा एक बार नदी प्रवाहित हुई थी।
नदियों की बिगड़ती हुई स्थिति को देखते हुए आर्ट ऑफ़ लिविंग स्वयंसेवकों ने इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ ह्यूमन वैल्यू (आईएएचवी) के तहत,सूख रही नदियों के पुनरुत्थान का कार्यभार संभाला।
नदी सूखी कैसे हुई | How did the river dry up?
- शहरी अतिक्रमण
- वनों की कटाई
- उत्खनन
- भूजल का अत्यधिक मात्रा में उपयोग
यह मुद्दा हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
एक दिन, एक पुराने किसान सोचा कि क्यों ना बढ़ते हुए खाद्य फसलों से औषधीय पौधों में बदलने का विकल्प चुना जाए. क्या कुछ ऐसा ? जिसके द्वारा पूरी तरह से मिट्टी के गुणों को परखा जाए और औषधीय पौधो को उगाया जाए। उसने युकेलिप्टुस वृक्षारोपण शुरू करने का फैसला किया।
वह वैसे ही छोड़ दिया गया, क्योंकि कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने देखा कि भूजल का स्तर तेजी से घट रहा है। स्ट्रीम नेटवर्क, संपन्न कृषि उत्पाद का केंद्र, भी सूखना शुरू हो चुका। एक रिपोर्ट के मुताबिक कुमुदवती नदी,100 स्ट्रीम नेटवर्क तक सूख गयी है।
पानी बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध था और कोई विकल्प नहीं था। किसान ने परिवार की आय को बचाए रखने की उम्मीद के साथ कम पानी में,अधिक मात्रा में फसलों को उगाने का फैसला किया।
यह अनगिनत किसानों की कहानी है, जिनकी आजीविका इस नदी के प्रवाह पर निर्भर करती है। जल संकट और आर्थिक असुरक्षा के कारण बड़ी संख्या में ग्रामीण रोजी रोटी की तलाश में बैंगलुरु चले गए।
पानी की मात्रा में कमी से क्या होता है ? | Lower levels of water translate into:
- कृषि उपज में कमी
- दैनिक उपयोग के लिए पानी के स्तर में कमी
- किसानों की सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता
अच्छी खबर
यह उम्मीद है कि पूरे परियोजना क्षेत्र में काम पूरा होने के बाद कम से कम तीन मौसमों के लिए पर्याप्त वर्षा के साथ, नदी का जल स्तर काफी अधिक होगा। इसमें बेंगलुरू की जरूरतों को पूरा करने के लिए कावेरी के पानी को बढ़ाने, बेल्ट में पर्यावरण संतुलन बहाल करने के साथ-साथ गांवों पलायन करने वाले परिवारों और युवाओं को वापस लाने की अपेक्षा की जा रही है।
हमारे द्वारा किये गए कार्य
वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना
- 436 बोल्डर चेक निर्माण
- 20 से अधिक कुओं का डी -सिल्टेड
- 433 रिचार्ज कुओं और 71 जल पूल का निर्माण
- 44 रिचार्ज बोर-बेल का निर्माण
- 39,000 से अधिक पौधे लगाए गए
- 100से अधिक गाँवो में फैले हुए 66,504 लोगो में जागरूकता लाने का कार्य किया
पिछली बार हुई बारिश से, कई शुष्क कल्याणियों (कदम-कुओं) में पानी के स्तर हुयी बढ़ोतरी से स्थानीय ग्रामीणों और टीम की खुशी और जोश में काफी बदलाव आया, जिसने टीम को अपने प्रयासों को तेज करने के लिए प्रेरित किया।
जनता काआंदोलन
नदी के पुनर्जीवन के उद्देश्य से आर्ट ऑफ लिविंग की पहल, आज एक क्रांति बन गई है।
प्रत्येक रविवार को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को परियोजना, कॉर्पोरेट्स, ग्रामीणों, सरकारी प्राधिकारियों और आम जनता के लिए निवेश करने के लिए नदी के दौरान पेड़ों को पौधे लगाने के लिए शिवगंगा पहाड़ी क्षेत्र में एकत्र करने वाले स्वयंसेवक परियोजना में मदद कर रहे हैं।
डॉ लिंगराजु ने कहा, "क्षेत्र में मौजूदा स्थानीय जल निकायों की बहाली में नौ ग्राम पंचायतों और लघु सिंचाई और जल संसाधन विभाग के समर्थन के साथ, परियोजना जल्द ही पूरा होने की संभावना है।"
किसी भी परियोजना के प्रति आर्ट ऑफ लिविंग के दृष्टिकोण एक समग्र रूप से एक है। तो, कायाकल्प के साथ, दी आर्ट ऑफ लिविंग ने भी युवा नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम (YLTP) और तनाव प्रबंधन कार्यक्रमों को सशक्त बनाने के माध्यम से ग्रामीणों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी ली है।
यह परियोजना किसानों के साथ भी काम करती है, उन्हें प्रोत्साहित करती है, कि उन्हें खेती करने एवं क्लब बनाने के लिए पंचायत स्तर पर जैविक खेती और सामुदायिक खेती करने में पहल की जाए।
सफलता का स्वाद निश्चित रूप से ही मीठा होगा, जब कुमुदवती नदी तेजी से शुरू होती है।, तब इस यात्रा का प्रतिफल पर्याप्त होगा।
Story Credit: प्रलेखन टीम, आर्ट ऑफ लिविंग ब्यूरो ऑफ़ कम्युनिकेशन
Published on: July 2017