पानी की कमी को सबसे खतरनाक परिणाम माना जाता है, पर्यावरण क्षति और भारत ने अभी से ही इस जल संकट का असर महसूस करना शुरू कर दिया है । जनसंख्या में वृद्धि के साथ, भारत देश ने पिछले 20 सालों में 25 प्रतिशत तक ताजे पानी की उपलब्धता में न्यूनीकरण या घटाव देखा है । भारत के कई गाँवों में पानी के लिए संघर्ष का असर दिख रहा है जिनमें से कुछ को सूखा-प्रवण के रूप में भी चिह्नित किया गया है ।
ऐसा एक गाँव है काप्सी जो भारत देश के महाराष्ट्र में है। सूखे में पड़े रहने पर और पानी इकट्ठा करने की कोई व्यवस्था ना होने पर, यह उन गांवों में से एक बन गया जो कि 'सूखा-प्रवण' घोषित कर दिए गए थे। हालाँकि, आर्ट ऑफ लिविंग की 'जल संचयन परियोजना' के अंतर्गत जब उनका परिचय वर्षा जल संचयन के उपायों से कराया गया तब उस गांव वासियों के लिए चीजें बदल गईं ।
एक समय पर, जल के स्रोत के लिए जब गाँव वैकल्पिक योजना नहीं होने का खामियाजा भुगत रहे थे, आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवक हजारों गाँव वालों को एवं युवाओं को उनके समुदायों के लिए जल संचयन परियोजनाओं का प्रशिक्षण दे रहे थे ।
काप्सी गाँव की सफलता की कहानी इसका प्रमाण है । आज काप्सी गाँव वासियों के पास इस सफलता के लिए एक अलग ही कहानी है। अब, यह गाँव भारत देश में इसका एक उदाहरण है कि कैसे जल संचयन अभ्यास जल संकट परिस्थिति को उलट सकता है ।
स्वदेशी जलापूर्ति तंत्र पुनः प्राप्त कर रहे हैं
पहल के हिस्से के रूप में, ग्रामीण भारत में स्वदेशी जलापूर्ति तंत्र पुनःप्राप्त करने के लिए स्वयंसेवक लगे हुए हैं। वे अन्य तरीकों के बीच, गाँव के तालाबों के दोहन द्वारा, कुओं का पुनर्भरण कर के और भूजल स्तर को बनाए रखते हुए, इस काम को सफल बना रहे हैं।
सूखे के दौरान इस्तेमाल करने के लिए जल संरक्षण के अलावा, यह पहल अचानक आने वाली बाढ़ की संभावना को भी कम करती है । किसी भी कटाई तंत्र के अभाव में, अतिरिक्त वर्षा-जल बह जाता है। इसलिए, किसानों पर दबाव डाला जाता है कि वे सूखे के दिनों में सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिए भूजल स्रोतों को खोजकर उनका प्रयोग करें। यह भूजल आपूर्ति के प्रयोग को बढ़ाता है और भौम जलस्तर को काफी कम करता है।
भारत देश के कई गाँव जहाँ आर्ट ऑफ लिविंग ने यह काम शुरू किया है, उनके पास वर्षा जल संचयन के लिए अब स्वदेशी तंत्र हैं। यह पर्यावरणीय स्थिरता के लिए एक जमीनी स्तर का मॉडल बनाने में मदद करता है ।
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छत वर्षा जल संचयन नया तरीका नहीं है। पिछले कुछ सालों में, राजस्थान एवं गुजरात में लोग सबसे बदतर अकाल की स्थिति में भी, केवल 150 मिमी की बारिश में जीवित रहने में कामयाब रहे हैं। छत पर से वर्षा जल संचयन का सिद्धांत जिस भी मात्रा में वर्षा जल इकट्ठा हुआ, उसे एकत्रित करना और स्टोर करना है और, बाकी को भूजल के पुनर्भरण के लिए वापस मोड़ देना है ।
काप्सी गाँव में एक डाक्टर ने जल संकट को समाप्त किया
"मेरा पैतृक गाँव हमेशा सूखा-प्रवण था और कम वर्षा से पीड़ित था। पिछले कुछ वर्षों में, समस्या और विकराल हो गई । बारिश कम होने लगी, नदियां सूख रहीं थीं और आस-पास के शहरों में जाकर बसने के लिए, कम से कम 50 प्रतिशत गाँव वासियों ने गाँव छोड़ दिया था ", डॉ माधव पोल कहते हैं (वह व्यक्ति जो महाराष्ट्र के काप्सी गांव के गांव वासियों के लिए जल संकट से जंग लड़ने के लिए प्रेरणा बने थे)। सामुदायिक संघर्ष एवं झगड़े, भोजन की कमी, किसानों की आत्महत्याएं इस जल संकट के परिणाम थे। पास की नदी के सूखने से सामाजिक ताना-बाना गांव को बिखेर रहा था। स्थानीय लोग अक्सर अपनी पानी की कमी से आईं चुनौतियों को साझा करते थे जब भी वे डॉ पोल से मिलते थे। एक दिन, डॉ पोल ने इसके बारे में कुछ करने का निर्णय लिया ।
"मैंने सबसे पहले गाँव वालों को आर्ट ऑफ लिविंग का रूरल यानी ग्रामीण हैप्पीनेस प्रोग्राम सिखाया - व्यक्तिगत विकास के लिए एक योग एवं ध्यान शिविर। कार्यक्रम के बाद, उन्होंने अपने भीतर कुछ उत्थान महसूस किया, ऊर्जावान महसूस किया और, बदलाव की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित महसूस किया । हालांकि, ग्राम पंचायत शुरू में अनिच्छुक थी, फिर भी मैं नेताओं को यह दिखाने के लिए अन्ना हजारे जी के गाँव, रालेगण सिद्धि लेकर गया कि वहाँ गाँव में कैसे जल संकट पर काबू पाने के लिए एक टिकाऊ जल प्रबंधन प्रणाली प्रयोग की जाती है। फिर, सब इस काम के लिए एकजुट हो गए ।" डॉ पोल साझा करते हैं ।
2001 में काप्सी गाँव के आस-पास जल के तालाबों, झीलों एवं नदियों का जीर्णोद्धार प्रारंभ हुआ । डॉ पोल ने गाँव वासियों के साथ भू-जल पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण करके शुरू किया ।
"दो साल के लिए, परियोजना के पूरा होने तक, मैं अधिकतर हर दिन उस गाँव में जाता था । यह मेरे साथ-साथ चल रहे डाक्टरी अभ्यास के अलावा था।
इससे कई ग्राम वासी प्रेरित हुए और मेरे साथ जुड़ गए ।", डॉ पोल ने बताया ।
काप्सी गाँव के पास जो नदी बहती है, वह 2003 में पुनर्जीवित की थी । फिर से, बोरवेलों में पानी प्रचुर मात्रा में हो गया था। पारिस्थितिकी तंत्र फिर से पूर्वावस्था में लौटने लगा था, पशु-पक्षी वापस आने लगे थे और जलग्रहण क्षेत्र अपनी हरी-भरी वनस्पति के रूप में वापस आ रहा था। "अब तक, हमने पांच गाँवों को पानी की कमी से लेकर पानी की प्रचुरता तक सफलतापूर्वक परिवर्तित कर दिया है और अभी, वर्तमान में सतारा जिले के 40 गाँवों में काम कर रहे हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वह गाँव अब केवल एक गाँव नहीं रहा था, वह एक मजबूत समुदाय बन गया था ! इस परियोजना ने स्थानीय लोगों को परिवर्तन लाने वाले सक्रिय नागरिकों में बदल दिया ।" डॉ पोल उन अच्छे पलों को याद दिलाते हैं ।