ज्ञान के लेख (Wisdom)

मन भागता रहता है, इसे नियंत्रित कैसे करें?

प्रश्न :  गुरुजी, मन सदैव भागता रहता है, इच्छा राक्षस की तरह मुँह बड़ा किए रहती है। स्वयं यदि नियंत्रण भी करूँ तो परिवार, समाज उकसाता है। ऐसी स्थिति पर कैसे नियंत्रण करें? 

न इच्छा कोई राक्षस है, न कोई मन घोड़ा

गुरुदेव :  न इच्छा कोई राक्षस है, न कोई मन घोड़ा है। घोड़ा क्या, मन कोई और चीज़ नहीं है कि भाग जाएं वैसे। तुम चाहे तो मन भी शांत होता है इच्छा भी पूर्ण हो जाती है, छूट जाती है। तुम चाहो तो, पहले। इसकी चाह उठी तो, तुम्हारे में। इच्छा को शक्ति माना गया है। इच्छा को हम लोगों ने कभी राक्षस नहीं सोचा। यह दैवी शक्ति है, इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति, ज्ञान शक्ति, यह माना गया है।   

बंधन और मोक्ष दोनों का कारण मन ही है 

मन को ही मोक्ष का भी कारण माना गया है।

मनैव मनुष्याणाम कारणम बंधमोक्ष 

बंधन का जैसे मन कारण है, सिर्फ़ बंधन का ही नहीं है, मोक्ष का भी मन ही कारण है। उसी मन को इस्तेमाल कर कर के तुम अपना आगे बढ़ो। कहाँ बैठ के अपने आप को सोच रहे हो, मन राक्षस है, या मन भागता है। यह भ्रम है। मन को अपना दोस्त बनाओ। ठीक है? लग जाएगा। जहां प्रेम होता है वहाँ मन अपने आप लग जाता है। मन को रोकने का वहाँ ज़बर्दस्ती करने का कोई ज़रूरत नहीं है।

तीन चीज़ों से मन रुक जाता है 

तीन चीजों से मन रुक जाता है, एक जगह, क्या ; एक लोभ, कोई कहे तुम्हें दस लाख मिल जाएगा यदि तुम रोज़ बैठ के प्राणायाम करोगे चालीस दिन तक। एक दिन भी नहीं छोड़ना चाहिए, चालीस दिन प्राणायाम करोगे, ॐ नम: शिवाया बोलोगे, दस लाख मिल जाएगा। एक दिन भी नहीं छोड़ेंगे। एक, चालीस के लिए क्यों, बयालीस दिन कर देंगे। एक दिन पहले आ के, कहीं गिनती में गलती न हो जाए। लोभ तुम को पकड़ के कोई काम करा देगा।

 दूसरा, भय। भय से भी हम काम कर लेंगे। और तीसरा,  प्रेम से मन टिक जाता है। तो मैं कहूँगा, प्रेम से जब टिका लोगे तो न कोई लोभ रहेगा जीवन में, न कोई भय। उसका कोई गंध ही नहीं आने देगा पास। न लोभ का गंध, न कोई भय पास में आएगा। ऐसे प्रेम ! ताकि इसके लिए कुछ करना नहीं पड़ता। हमारे में है सब, यह स्वभाव में है प्रेम। बस यह मानना पड़ेगा बस। इसलिए मैं कहता हूँ कुछ जान के चलो, सब कुछ जान नहीं पाओगे, बिना जाने चलेगा नहीं काम, कुछ तो जानना पड़ेगा। कुछ जान के चलो, कुछ मान के चलो। सब कुछ जान नहीं सकते, कुछ मानना पड़ेगा। और प्रेम से गले लगाते चलो सबको।

संकलन एवं संपादन : रत्नम सिंह 

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञानवार्ता से उद्घृत 

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