होली का त्यौहार भारत मे बहुत ही लोकप्रिय है । इस त्यौहार में लोग रोली, चन्दन, अबीर और रंगीन पानी से खेलते हैं ।यह त्यौहार प्रत्येक वर्ष मार्च के महीने में मनाया जाता है । होली के एक दिन पहले की संध्या को होलिका दहन किया जाता है और लोग अग्नि की पूजा करते हैं।
जीवन रंगो से भरा हुआ होना चाहिये ! और प्रत्येक रंग को अलग से देखना चाहिये और उसका आनंद लेना चाहिए क्योंकि अगर सब रंगो को मिलाकर देखेंगे तो सिर्फ काला रंग ही दिखाई दे। इसी तरह जीवन में एक ही आदमी अलग-अलग भूमिकाओं में अपने अंदर एक साथ शांति से रहता है। जैसे एक पिता अगर अपने दफ्तर मे भी पिता की भूमिका मे बना रहे, तो सभी चीजें नियंत्रण से बाहर हो जायेंगी!
जीवन का रंगीन होना निश्चित है
हम किसी भी परिस्थिति में हों,हमें अपनी वास्तविक भूमिका मे ही रहना चाहिये, तो जीवन का रंगीन होना निश्चित है । प्राचीन काल में इस संकल्पना को वर्णाश्रम कहा जाता था । इसका मतलब है कि प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो डॉक्टर हो, अध्यापक हो या पिता हो, उसे अपनी भूमिका का पालन अति उत्साह से करना चाहिये। व्यवसायों का मिश्रण हमेशा अनुत्पादक ही होता है। अगर एक पेशेवर डॉक्टर कोई व्यापार करना चाहता है तो उसे दवाइयों के अलावा कोई और व्यापार करना चाहिये जो उसके मुख्य पेशे से अलग हो; गौण हो, उसे अपने मूल व्यवसाय से सम्बंधित व्यापार नही करना चाहिये । सुखी जीवन के लिये मस्तिष्क के इन पात्रों को अलग और विशेष रखना चाहिये, और होली का त्यौहार हमें यही सिखाता है ।
सारे रंग सफेद रंग से ही निकलते हैं
सारे रंग सफेद रंग से ही निकलते हैं और जब सब रंग फिर से मिलाये जाएँ तो काला रंग ही उत्पन्न हो जाता है । मन जब श्वेत हो और आत्मा, शुद्ध, शांत, खुश और ध्यानस्थ हो तो बहुत से रंग और किरदार उभरते हैं और विषम परिस्थितियों में भी अलग-अलग किरदार पूरी निष्ठा से निभाने की शक्ति मिलती है | इसके लिए हमें अपनी चेतना मे बार-बार गोता लगाना होगा । अगर हम केवल बाहर ही देखेंगे और फिर बाहर के अलग-अलग रंगो को एक में मिलाते रहेंगे, तब हम वापस काला रंग ही पायेंगे | सभी भूमिकाओं के बीच,प्रत्येक भूमिका को अच्छे से निभाने के लिये गहरे विश्राम की आवश्यकता है । ध्यान मे सबसे बडी़ बाधा है - इच्छा । इच्छा माने तनाव । एक छोटी सी इच्छा बहुत अधिक तनाव उत्पन्न कर सकती है । बड़े लक्ष्य अपेक्षाकृत कम तनाव देते हैं ।
इच्छाएँ मस्तिष्क को बहुत तकलीफ देती है, ऐसे मे हम क्या करें ?
एक ही रास्ता है, कि हम अपनी इच्छा को ध्यानपूर्वक देखें और उसे समर्पण कर दें । अपनी इच्छाओं या कामनाओं को सजगतापूर्वक देखना, कामाक्षी कहलाता है । ध्यानपूर्वक कामना को देखने से उसकी पकड़ ढीली हो जाती है और तब समर्पण संभव है । अंदर से शहद जैसे बह रहा हो, ऐसा प्रतीत होता है | माता कामाक्षी अपने एक हाथ मे गन्ना और दूसरे मे फूल लिये हुए रहती हैं । गन्ना बहुत सख्त होता है और उससे रस निकालने के लिये उसे निचोड़ना पड़ता है, उसी तरह फूल बहुत मुलायम जिससे सुगंध अपने आप प्रवाहित होती है । यही जीवन की प्रक्रिया है, जहाँ दोनों थोड़ा-थोड़ा है ! अपने अंदर से आनंद और खुशी प्राप्त करना बाहर से खुशी प्राप्त करने की अपेक्षा बहुत सरल है । बाहरी खुशी प्राप्त करने के लिये बहुत प्रयत्न करना पड़ता है ।
होली त्यौहार से संबद्ध एक बहुत ही प्रचलित कथा :
पुराण शब्द संस्कृत के शब्द ‘पुरा नवा’ से आया है जिसका मतलब है, जो शहर में नया आया हो’ या किसी चीज़ को प्रदर्शित करने का एक नया तरीका| पुराण रंग-बिरंगे प्रसंगो एवम् कहानियों का संकलन है। ऊपरी तौर से यह सब कपोल कल्पित लगती हैं, परंतु वो वास्तव में सूक्ष्म सत्य धारण किये होती हैं।
ऐसी ही होली के विषय में एक कहानी है | एक असुर राजा हिरणकश्यप चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें । उसका पुत्र प्रहलाद, भगवान विष्णु (नारायण भगवान) का भक्त था। इससे क्रोधित होकर राजा ने अपनी बहन होलीका को प्रह्लाद को मृत्युदंड देने को कहा । होलीका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था तो वह इसी अहंकार में, जलती हुई चिता पर, प्रहलाद को लेकर बैठ गई ।
परंतु उसमें होलीका जल गई और प्रहलाद सुरक्षित बाहर आ गया। हिरणकश्यप् ‘स्थूल’ का प्रतीक है और प्रह्लाद भोलेपन,निष्ठा और आनंद का प्रतीक है। आत्मा सिर्फ बाहरी पदार्थों तक सीमित नहीं होती है। जीवात्मा हमेशा के लिये किसी पदार्थ से बंध कर नहीं रह सकती है ।
यह स्वाभाविक है कि अंत मे हम सबको नारायण मे विलीन होना है यानि अपने सर्वोच्च स्वरूप में । होलिका प्रतीक है पूर्वजन्म के कर्मो का, जो प्रह्लाद की सरलता को अग्नि मे जलाने की कोशिश करती है। परंतु प्रह्लाद नारायण की भक्ति मे इस तरह से लीन होकर पूर्व के संस्कारो को जला देता है और खुशियों के नये रंगो के साथ बाहर आ जाता है। जीवन एक उत्सव बन जाता है ।
अतीत को जलाकर आप भी एक नये जीवन की शुरुआत करते हैं । आपकी भावनायें आपको आग की तरह जलाती हैं , लेकिन जब रंगों के फव्वारे हों तो वो जीवन को आनंद से भर देते हैं । भावनाएं अज्ञानी को परेशान करती हैं, और ज्ञानी के लिये वही भावनाएं जीवन में रंग जोड़ देती हैं |
हर भाव एक रंग का प्रतीक है
हर भाव एक रंग का प्रतीक है - लाल रंग क्रोध, हरा रंग ईर्ष्या का, पीला रंग खुशियों का ,नीला रंग विशालता का, सफेद शांति का, केसरिया त्याग का और बैंगनी रंग ज्ञान का ।
ये होली खुशियों के रंग से खेलिए | सुदर्शन क्रिया सीखिए और तन , मन और भावनाओं के सबसे सबसे सुन्दर रंगों का उत्सव मनाइए- https://www.artofliving.org/in-hi/online-meditation-breath-workshop