अमेरिका निवासी इस अनिवासी भारतीय ने कैसे महाराष्ट्र के अपने मूल गाँव में परिवर्तन लाया
परिस्थिति देहाती थी । एक बहती हुई नहर के किनारे कोई 500 लोग इकट्ठा थे , जिनमें हलगरा के ग्रामवासी , नौकरशाह, पुलिसकर्मी और पत्रकार शामिल थे । उस गर्मी की तपती हुई सुबह को उनमें से कुछ लोग तो एक बड़े आमके वृक्ष की छाया में सिमटे हुए खड़े थे । वो 28 मई , 2017 का दिन था ।
भीड़ चौकस थी क्योंकि महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री , श्री देवेंद्र फड़नवीस सभा को संभोधित कर रहे थे । भीड़ मेंउन दमकते हुए चेहरों को देख कर उन्होंने घोषणा की “ हमने फ़िल्मों में बहुत से नायकों को देखा है जो मात्र तीन घंटे में दुनिया बदल सकते हैं । मेरा विचार था कि यह सब काल्पनिक होता है । परंतु आज , मुझे आप सब के सम्मुख बैठ कर यह कहते हुए प्रसन्नताहो रही है कि आप में से प्रत्येक व्यक्ति एक नायक है । “
2015 से , हलगरा गाँव के निवासियों ने आर्ट ओफ़ लिविंग के साथ मिल कर सूखे से मुक्त ( स्वावलंबी ) होने के लिएएक मौन आंदोलन आरम्भ किया था । यह आंदोलन अप्रैल - मई 2017 मैं अपनी चरम ऊँचाइयों पर था । पूरा का पूरा गाँवआर्ट ओफ़ लिविंग के जल संरक्षण कार्य के समर्थन में एकजुट हो कर खड़ा था ।
आइए हम आरम्भ से देखते हैं
महाराष्ट्र के लातूर ज़िले का हलगरा गाँव विगत 15 वर्षों से पानी की कमी से जूझ रहा था । गर्मी के दिनों में , 12 से 15 टैंकर ही यहाँ के वासियों के लिए पानी का एकमात्र साधन होता था ।
हालाँकि कोई ऐसी नदी नहीं थी जो हलगरा से गुजरती हो , तथापि वर्षा ऋतु में कुछेक नाले ज़रूर यहाँ बनते थे । काश ,जल की इस अमूल्य धारा को संग्रहित किया जा सकता !
- 4.5 लाख घन मीटर गाद को हटा कर 20 किलोमीटर लम्बी नहर का निर्माण करना जो 200 करोड़ लीटर जलसंग्रहण हेतु व्यवस्था बनाना
जल संग्रह करने और पुनर्जीवित करने के लिए अन्य ढाँचागत संरचनाओं को स्थापित करने हेतु :
- ग्रामीणों ने 3 गाबिन चेक बांध ( रोधक बांध ) तैयार किए
- 6 पहले से मौजूद चेक बाँधों की मरम्मत की
- 10 खेत तालाबों का निर्माण किया
- 5000 नए वृक्ष लगाए
- जल संग्रहण के लिए 800 जल सोखने वाले गड्ढों का निर्माण किया
जल संग्रहण परियोजना का प्रभाव
- भूमिगत जल स्तर में वृद्धि हुई , जिससे कुएँ तथा तालाब भर गए
- नालों से निकली गाद को खेतों में बिछाया गया जिससे खेतों की उर्वरक शक्ति में वृद्धि हुई
- किसानों की कृषि पैदावार दोगुनी हुई
- आत्म विश्वास और आत्मनिर्भरता की भावना का उदय
- आर्थिक प्रवृति में वृद्धि जिससे गाँव से शहर की ओर सम्भावित प्रवास में कमी आई
इन सब जल संरक्षण प्रयासों का पटाक्षेप 22 मई 2017 को हुआ जब स्कूल के विद्यार्थी से ग्रहणी से परिवार के दादातक — गाँव का प्रत्येक व्यक्ति इस कार्य हेतु इकट्ठा हुआ । दिन भर चला , यह असम्भव सा दिखने वाला मिशन सफलहुआ ।
अपने मूल की ओर वापसी
आम के पेड़ के नीचे मुख्य मंत्री के बग़ल में दो सरल से दीखने वाले मेहमान भी बैठे थे। एक साधारण वृद्घ माँ और पिता , जिनकी आँखें स्नेह और गर्व से नम थी जो सुदूर अमेरिका में बैठे अपने पुत्र को निहार रही थी , जो गाँव में सबसे साथस्काइप पर बातें कर रहा था ।
“ एक आम का वृक्ष फल देता है , छाया देता है क्योंकि इसकी जड़ें गहरे तक होती हैं । मुझे ख़ुशी है कि इस गाँव के लोग चाहे कितनी ही दूर ही चले गये हों, पर अपने मूल स्थान के प्रति वफ़ादार हैं । “ मुख्य मंत्री ने कहा । उनका आशय दत्ता पाटिल से था , जो गाँव के सामुदायिक अभियान के उत्प्रेरक थे ।
दत्ता पाटिल
“यह जान कर आश्चर्य होता है कि कैसे दत्ता पाटिल , याहू ( Yahoo ) के साथ सफलतापूर्वक काम करते हुए भी अपनी जड़ों को नहीं भूले । गाँव से इतनी दूर होते हुए भी उन्होंने अपने गाँव को छोड़ानहीं ।” श्री फड़नवीस ने आगे कहा ।पाटिल , एक अनिवासी भारतीय , सनीवेल , कैलीफोर्निया के याहू कार्यालय में कार्यरत रहते हुए भी अपने मूल गाँवहलगरा को पानी के लिए आत्मनिर्भर बनाने को प्रेरित थे । उन्होंने स्वयं को ग्रामीण समुदाय के साथ घुल मिल कर एक होने और स्थानीय लोगों को परियोजना पर कार्यकरने में प्रेरित करने के लिए एक महीने का विराम अवकाश लिया । आर्ट ओफ़ लिविंग , overseas volunteer for a Better India ( ओवर्सीज़ वोलंटियर फ़ॉर ए बैटर इंडिया ) तथा अमेरिका में Yahoo Employees Foundation ( याहूएम्प्लॉईज़ फ़ाउंडेशन ) के सहयोग से नहर तथा जल संग्रहण के लिए अन्य ढाँचे / संरचनाओं का निर्माण करने की योजनातैयार की ।
“ मुझे स्थानीय लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं से आश्चर्य हुआ - एक छोटे बच्चे से ले कर , गृहिणी और सबसेवयोवृद्ध व्यक्ति तक - हर कोई गाबिन ढाँचा तैयार करने और अपने गाँव को सूखा रहित बनाने के मिशन में भागीदार बना।“ - पाटिल बताते हैं ।
लम्बी दूरी से भी समर्पण
पाटिल ने कैलीफोर्निया वापिस जा कर भी गाँव वासियों को प्रेरित करना जारी रखा ।
“ चाहे रात के 2 बजे हों , यह सुनिश्चित करने के लिए कि काम हो रहा है और हर एक से जाँच करने के लिए , पाटिलफ़ोन पर होते थे । “परिवर्तन के लिए उनका जोश अद्भुत है ।” यह कहना है , आर्ट ओफ़ लिविंग की नदी कायाकल्प परियोजनाओं के मुख्य अगुवों में से एक हिमांशु कालराका ।
पाटिल विदेश में रह रहे भारतीय समाज को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं । दो वर्ष में उन्होंने अपनीकम्पनी , सहयोगियों और दोस्तों की सहायता से धन जुटाया है ।
इन दो वर्षों में पाटिल बीच बीच में अपने गाँव आए हैं और स्थानीय लोगों का हौसला बढ़ाया है । एक स्थानीय हलगरानिवासी के अनुसार “ मैं समझता हूँ कि अगर कोई सम्मानीय व्यक्ति , जो इतनी दूर रहते हुए भी अपने गाँव के लिए कामकरने आता हो , तो हमें भी अपना योगदान देने के लिए कुछ करना चाहिए ।”
स्त्रोत : द आर्ट ओफ़ लिविंग संचार ब्यूरो