फ्लोराइड रहित जल: अब कर्बी अन्ग्लोंग की सच्चाई।

20 साल से, धोनी तोक्बे फ्लोराइड से दूषित जल के कारण आसाम के कर्बी, अन्ग्लोंग ज़िले के अपने गांव सारक तेरौं, के अपने गाँव वालों - भेद और  होने की परेशानी आम हो गई थी। ऐसी ही समस्या से कर्बी अन्ग्लोंग के बहुत से गांव जूझ रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार, बहुत सी सरकारी पहलों के बाद भी पानी की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई थी। 

जब गाँव के नेताओं ने धोनी और बाकी लोगों को पीने के पानी सम्बंधित समस्या पर विचार विमर्श करने के लिए बुलाया , तब उन्हे कुछ भी पता नही था। अनिश्चितता से भरे धोनी को लगा की ये बैठक भी आम बैठकों की तरह होगी या जल सम्बंधित समस्याओं सम्बंधित कुछ ठोस उपाय भी निकलेगा? उनकी चिंता उचित थी। पर जैसे जैसे बैठक आगे बढी वैसे वैसे उनकी चिंता कृतज्ञता में तब्दील/ बदल हो गई । बैठक के प्रस्तावों से प्रसन्न धोनी को अब आशा थी कि  उनका गाँव अब फलोराइड  से दूषित जल की समस्या से पार पा लेगा। “धन्यवाद ! अब हमारे बच्चे बच जायेंगे” धोनी ने बैठक के अन्त में कहा। 

 

1 रुपए का फ़िल्टर/ की छन्नी

धोनी की प्रसन्नता का मुख्य कारण बैठक में जल समस्या सम्बंधित प्रस्तावित सुझाव था: आसानी से बन जाने वाली छन्नी। धोनी और बाकी गाँव वालों ने छन्नी को खुद से लगाना सीखा। उन्हे बस छन्नी में लगने वाली वस्तुओं, जिनमें दो बाल्टियां , चूना पत्थर और घुले हूए फॉस्फोरिक ऐसिड को पास के गाँव से निशुल्क एकट्ठा करना था और सभी निर्देशों का पालन करना था।

 

धोनी का परिवार, कर्बी अन्ग्लोंग के उन 1680 परिवारों में से एक है जहां, आर्ट ऑफ़ लिविंग, प्राथमिक फलोराइड मुक्त जल प्रोजेक्ट, के तहत पहुँच सकी है। 

तेज़पुर विश्विद्यालय के, प्रोफेसर रॉबिन दत्ता का आविष्कार, इस फ़िल्टर /छन्नी को, फ्लोराइड  निलोगोन के नाम से जाना जाता है, जिसकी रॉयल्टी मात्र एक रुपए है। तथापि, इसकी सामग्री की लागत लगभग एक हज़ार रुपए है। “ इस खर्चे का वहन जनता स्वास्थ्य अभियान्त्रिकी विभाग, कर्बी अन्ग्लोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) ने किया“  आर्ट ऑफ़ लिविंग के प्रोजेक्ट समन्वयक, विष्णु प्रकाश कहते हैं ।

पैराग्वे से कर्बी अन्ग्लोंग की यात्रा

रौल अल्वरेज़, पैराग्वे के एक विश्लेषक, ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो भारत के दूरस्थ गांवों का भ्रमण, ग्रामीणों को पीने के साफ जल पहुंचाने के लिए करेंगे। तथापि, आर्ट ऑफ़ लिविंग अन्तराष्ट्रीय केंद्र में स्वयंसेवक के तौर पर उन्हे ये करने का मौका ज़रूर मिला था। 

उत्साहित रौल,  अर्जेंटीना के अपने तीन और साथियों के संग दिफू- कर्बी अन्ग्लोंग के मुखयालय जाने के लिए तैयारी करने लगे। चारों, स्थानीय प्रोजेक्ट स्वयंसेवीयों के साथ,  गाँव वालों तक स्वयं निर्मित (DIY) छन्नीयों को कैसे पहुंचाया जाये, की, कार्यनीति पर काम करने लगे । 

ज्यादातर उपलक्ष्यों पर अनुवादकों के साथ वो गाँव की बैठकों को संचालित करते, जहां वो गाँव वालों को छन्नी की सहायता से पानी की  समस्या से कैसे निजात पायी जाये, के बारे में बताते । साथ ही छन्नी के काम करने के तरीकों और उसे कैसे लगाया जाये/उपयोग में लाया जाये ,ये भी बताते।

स्थानीय स्वयंसेवीयों की सहायता से , समूह ने 17 गांवों में बैठकें संचालित कीं। साथ ही, अपने साथ 1680 परिवारों को, केंद्र से, छन्नी के लिए कच्चा माल एकठ्ठा करने का न्योता दिया। 

समूह को लगा कि, ये ज़रूरी है की गाँव वाले छन्नी में लगने वाली चीज़ों को खुद एकठ्ठा करें और खुद ही लगाएँ। “हम चाहते थे ,जो उन्हे मिल रहा है उसके महत्व को वो समझें । वितरण के इस नमूने से ये सुनिश्चित करना था कि गाँव वाले इसमें पूर्ण रूप से शामिल हैं।“ रौल कहते हैं। 

इस दौरान, प्रोजेक्ट टीम ने माल तैय्यार करना, फॉस्फोरिक ऐसिड को घुलाना, चूना पत्थरों का ट्रक से भार उतारना, चूना पत्थरों को तोड़ना, बाल्टियों में नल लगाना आदि काम शुरु कर दिया। कई सौ ग्रामीण हर दूसरे दिन माल लेने आने लगे। वो फ़िल्टर लगाने का अनुदेशक पत्र भी साथ ले जाते ताकि वो खुद फ़िल्टर लगा सकें।

फ़िल्टर को इस्तेमाल में लाना

अब , टीम(समूह) के आगे अलग चुनौती थी। “अब हमें घर- घर जा कर ये सुनिश्चित करना था की फ़िल्टर सही तरह से लगाया गया है। उसे कुछ मात्रा में फॉस्फोरिक ऐसिड की सहायता से चालू करना था।“ प्रोजेक्ट समन्वयक विष्णु प्रकाश कहते हैं। 

पूरे इलाके में संघर्ष करते हूए समूह घर घर गया। पर ज्यादातर ग्रामीण धान की खेती में व्यस्त थे। “जब हम लोगों के घर पहुंचे तो ज्यादातर लोग घरों में ना होकर, खेतों में व्यस्त थे।“ रौल बताते हैं। 

तो , समूह ने लोगों के घर जाने का समय बदल दिया। जहां समूह के सदस्य पहले दोपहर या सुबह में देरी से जाया करते थे वहीं, अब वो एकदम सुबह सुबह लोगों के घर जाने लगे। इस तरह वो लोगों से मिल पाते थे। 

तथापि, अगली चुनौती जो उनकी प्रतीक्षा में थी वो थी, लोगों ने या तो फ़िल्टर गलत तरह से लगाया था या लगाया ही नहीं था। “ कुछ लोग बाल्टियों का इस्तेमाल राशन रखने के लिए कर रहे थे। कुछ लोगों ने बालू में चूना पत्थर रख दिया था। कुछ को चूना घोलने का समय भी नहीं मिला था। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने फिल्टर को सही तरह से लगा लिया था और हमारी प्रतीक्षा में थे कि कब हम उसे चालू करें।“ स्थानीय स्वयंसेवी कमल सिंह इन्ग्टे कहते हैं। 

हर त्रुटीकर्ता के मामले में, समूह ने फिल्टर लगाने में सहायता की। पर ज्यादा घर होने की वजह से पांच के समूह मे टीम लोगों के घर जा रही थी। कितने घरों तक मदद पहुंच चुकी है इसपर नज़र रखना बहुत मुश्किल था। 

“तो हमने फीता(रिबन) प्रणाली की सहायता ली। दरवाज़े पर एक फीता लटके होने का मतलब था हममें से कोई उस घर तक सहायता  पहुंचा चुका है। दो फीतों का मतलब था फ़िल्टर लग चुका है। और तीन फीतों का मतलब था कि फिल्टर चालू कर दिया गया है।“ रौल  बताते हैं। 

फीता प्रणाली के बावजूद सभी घरों तक पहुन्चना बहुत मुश्किल था। तो प्रोजेक्ट ने ये सुनिश्चित किया कि 1680 परिवार जिन तक शुरुआत में ही फिल्टर पहुंच चुका था 1400 परिवारों तक फ्लोराइड फ़िल्टर की व्यवस्था करनी थी। इस प्राथमिक प्रोजेक्ट के अन्तर्गत स्कूलों में भी 10 समूदयिक फिल्टर लगाये गए। 

अब ये प्रोजेक्ट बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है

“ प्रोजेक्ट के अगले दो चरणों में , हम 5000 परिवारों तक DIY  फ़िल्टरों के साथ और 40 स्कूलों तक सामुदायिक फ़िल्टरों के साथ पहुँचना चाहते हैं। “ कमल कहते हैं। 

अगर आप हमारे सहभागी बनना चाहें या कर्बी अन्ग्लोंग के परिवारों तक फलोराइड मुक्त जल पहुँचाने में मदद करना चाहें , तो हमे यहां संपर्क करें info@projects.artofliving.org

लेखिका: वन्दिता कोठारी