गुरु के समीप

यदि तुम, खुद को, गुरु के निकट अनुभव नहीं कर रहे हो, तो इसका कारण, तुम ही हो। तुम्हारा मन, तुम्हारा अहंकार, तुम्हें दूर रख रहा है। जो कुछ भी, तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है, अंतरंग है, उसे गुरु के साथ, बाँट लो, बता दो। संकोच मत करो, शरमाओ नहीं, इस पर, स्वयं अपना निर्णय, मत लो।

यदि तुम, अपनी आंतरिक व महत्वपूर्ण बातें, गुरु को नहीं बताओगे, केवल साधारण, शिष्टाचार वाली बातें करोगे, तब उनके साथ, निकटता का अनुभव नहीं कर सकोगे। “आप कैसे हैं? कहाँ जा रहे हैं। सब, कैसे चल रहा है?’’ ऐसी नियमित और ऊपरी बातें, गुरु के साथ मत करो। अपना हृदय खोलकर, मन की गहराइयों में समाई, आंतरिक व महत्वपूर्ण बातें करो। सिर्फ यह मत कहो, कि शरबत की बोतल का दाम क्या है।

यदि तुम, गुरु से निकटता, अनुभव नही कर रहे हो, तो उन्हें गुरु मानने की, आवश्यकता क्या है? वह तुम्हारे लिए एक और बोझ है। तुम्हारे लिए, ऐसे ही बहुत से बोझ हैं। बस अलविदा कह दो।

प्रश्न: जब आप ही, हमें कभी-कभी दूर रखते हैं, हम आपके साथ, निकटता कैसे अनुभव करें? 

श्री श्रीः यदि तुम्हें दूर रखा जाए, डाँटा जाए, तुम्हारी ओर न देखा जाए, तो और अधिक निकटता अनुभव करो। क्योंकि किसी की उपेक्षा करने के लिए भी, बहुत प्रयत्न करना पड़ता है। जब गुरु, किसी उपहार के, सुन्दर आवरण, अथवा गुलदस्ते में रखे हुए, एक फूल की भी उपेक्षा नहीं कर सकते हैं, तो फिर वह, एक चलते-फिरते, बोलते, साँस लेते व्यक्ति की, जो उनसे जुड़ा है, कैसे उपेक्षा कर सकते हैं? जैसे ही, तुम इसे समझ जाओगे, निकटता का अनुभव, होने लगेगा।

टौरः क्या हम, हर सप्ताह, आपसे फोन पर, बात कर सकते हैं?

केनीः गुरुजी को, प्रति सप्ताह फोन कीजिए और यदि वे आपसे बात न करें, तो समझ लीजिए, कि वे आपको प्यार करते हैं।

श्री श्रीः हाँ, यह ठीक है। (हँसी)

तुम गुरु के साथ, उनके आनन्द, उनकी चेतना के सहभागी हो। इसके लिए, तुम्हें अपने आप को, खाली करना पडे़गा।

जो भी है, गुरु को बताओ और यह मत सोचो- “यह तो कूड़ा है़”। गुरु, तुम्हारे मन के, सारे कूड़े को लेने के लिए तैयार हैं। तुम जैसे भी हो, वे तुम्हें सीने से लगा लेंगे। वे तुम्हारा, बोझ हल्का करने के लिए तैयार हैं। अपनी ओर से, उसे देने के लिए, तुम्हें तैयार होना है।