प्रसन्नता एक ऐसा विषय है जिससे कोई भी अछूता नहीं है । हम सब को पता है कि प्रसन्नता क्या है। इस क्षण आप खुश हैं । तभी एक अप्रिय फ़ोन आता है, क्या तब भी आप अपनी प्रसन्नता को बनाये रख पाते हैं? केवल एक अप्रिय फ़ोन कॉल और आपकी ख़ुशी ग़ायब! आपकी ख़ुशी क्षण भंगुर है।
तो ऐसा क्या है जो हमारी प्रसन्नता को सुदृढ़ बना सके? मैं उसको बुद्धिमत्ता कहूँगा। यहाँ पर मैं पाँच ऐसे रहस्य बता रहा हूँ जो आपकी प्रसन्नता को बनाए रखते हैं : अपने दृष्टिकोण को विस्तार दो :
1. अधिक बड़ी समस्याओं पर ध्यान दें !
दुनिया पर दृष्टि डालें - हमारे चारों ओर अधिक बड़ी समस्याएँ मिलेंगी। आपको अपनी समस्याएँ बहुत छोटी व गौण प्रतीत होंगी। जैसे ही आपको अपनी कोई समस्या छोटी प्रतीत होती है तो आप नई ऊर्जा व विश्वास के साथ उससे पार पाने अथवा उसका समाधान करने में जुट जाते हैं। क्या आप जानना चाहते हैं कि इससे अगला कदम क्या होना चाहिए?
अपनी ऊर्जा को किसी ऐसी दिशा में लगायें जो आपके लिए उपयोगी हो, अर्थात् अपना उद्देश्य खोजें। मेरे विचार में सबसे सार्थक प्रयास यह है कि अपनी ख़ुशी के पीछे भागने की अपेक्षा दूसरों के जीवन में प्रसन्नता लाई जाए।
जिन्हें अधिक आवश्यकता है उनकी सेवा करें।
एक बार किसी ज्ञानी ने बोर्ड पर एक रेखा खींची और अपने शिष्यों को कहा कि इस रेखा को छुए अथवा मिटाए बिना छोटा करना है। तुम यह कैसे करोगे? ध्यान रहे तुम्हें इसको बिना छुए छोटा करना है ।
एक बुद्धिमान शिष्य ने उक्त रेखा के नीचे एक और बड़ी रेखा खींच दी। इस प्रकार वो पहली रेखा अपने आप छोटी हो गयी।
यहाँ सीखने की बात यह है कि जब भी आपको अपनी मुसीबत बहुत बड़ी लगे तो आँख उठा कर अपने चारों ओर देखो क्योंकि आप की दृष्टि अभी तक केवल अपने पर ही केंद्रित है। यदि आप आँख ऊपर उठा कर मुसीबत में फंसे अन्य लोगों पर दृष्टि डालोगे तो तुम्हें आभास होगा कि तुम्हारी समस्या उतनी जटिल नहीं है जैसा तुम अब तक सोच रहे थे। यदि तुम्हें अपनी समस्या बड़ी लगती है तो उन लोगों पर नज़र डालो जो तुमसे अधिक बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं। अनायास ही तुम्हारे भीतर से यह आत्मविश्वास उठने लगेगा कि मेरी समस्या तो बहुत मामूली है, और मैं इसका समाधान कर सकता हूँ।
2. अपने जीवन को समय तथा स्थान के परिप्रेक्ष्य में देखें
अपने अतीत पर दृष्टि डालो। तुम पाओगे कि तुम्हारे जीवन में अनेकों समस्याएँ आयीं। किंतु वह सब आयी और चली गयी। यह जान लो कि यह वर्तमान समस्या भी चली ही जाएगी और तुम्हारे भीतर इससे उबरने अथवा इससे पार पाने की क्षमता व शक्ति है। अपने अतीत पर इस प्रकार से दृष्टि डालने से तथा उसको समझने से तुम्हारा आत्मविश्वास वापिस आएगा।
3. अपनी श्वास की शक्ति को खुला छोड़ें
हमारी श्वास हमारी भावनाओं से जुड़ी है। प्रत्येक भावना के लिए हमारी साँस की एक विशेष लय है। इसलिए जब तुम अपनी भावनाओं को साधारणतया नियंत्रित नहीं कर सकते, अपनी साँस द्वारा आप यह कर सकते हो। यदि आप रंगमंच की दुनिया में हैं तो आपको पता ही होगा कि जब ग़ुस्से का प्रदर्शन करना होता है तो निर्देशक आपको तेज गति से साँस लेने को कहता है। ऐसे ही जब कोई शांत व निर्मल दृश्य अभिनीत करना हो तो निर्देशक आपसे धीरे धीरे तथा कोमलता से साँस लेने को कहता है। यदि हम अपनी साँसों की लय को समझ लें तो हम अपने मन को वश में कर सकते हैं। हम सभी नकारात्मक भावनाओं, जैसे क्रोध , ईर्ष्या , लोभ आदि पर विजय पा सकते हैं और अधिकतर समय अपने हृदय से मुस्कुरा सकते हैं।
4. उस उच्च शक्ति में विश्वास रखो
क्या आप जानते हैं, क्रोध में हम प्रायः कहते हैं, ‘मैं हार गया।’ निराशा और क्रोध के बिना भी हम कह देते हैं, ‘मैं इस समस्या का परित्याग करता हूँ, मैं इसका समाधान नहीं कर सकता; अब परमात्मा ही मेरी मदद करे।’ यह जान लो कि सदैव तुम्हारी सहायता की जाएगी। यह विश्वास रखो कि तुम्हें सहायता अवश्य मिलेगी। सृष्टि की कोई शक्ति तुम्हारी सहायता अवश्य करेगी।
5. सहज-स्वाभाविक बनो !
स्वाभाविकता! स्वाभाविक बनो। स्वाभाविकता आती है जब हम अपने अन्त:कर्ण में उतरने के लिए कुछ पल निकालते हैं। जब जीवन में सब कुछ सामान्य चल रहा हो और सब काम वैसे ही हो रहे हों जैसा आप चाहते हो, तो मुस्कुराना कोई बड़ी बात नहीं। किंतु जब आप अपने भीतर छुपे हुए शौर्य को जगाते हैं और कहते हैं, ‘कुछ भी हो जाए , मैं सदैव मुस्कुराता ही रहूँगा’ तो आप पाएँगे कि अंदर से एक ज़बर्दस्त ऊर्जा का उदय होगा। तब लगेगा कि समस्या एकदम गौण है, यह बस आयी है और चली जाएगी।