प्रश्न : गुरुजी, हम उस चेतना का अंग हैं, पर उसको हर वक्त कैसे महसूस कर सकते हैं?
गुरुदेव : महसूस करना है न, यह सोच से ही गड़बड़ हो जाता है। मैं, मुझे महसूस करना है, तुम्हें कुछ नहीं करना, चुप बैठो, महसूस करोगे। प्रयत्न से आपत्ति आ जाती है, मन की जो आयाम में। शरीर के आयाम में प्रयत्न जितना करोगे उतना फल मिलेगा। मन के आयाम में प्रयत्न जितना नहीं करोगे, उतना ही प्राप्ति होगी। प्रेम करने की चेष्टा करो, प्रेम नहीं होगा। शांत रहने की चेष्टा करो, शांति नहीं मिलेगी। किसी चीज़ को भूलने की चेष्टा करो, कभी नहीं भूल पाओगे। भूलने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। तो ऐसे प्यार करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। ध्यान करने की चेष्टा नहीं करना चाहिए। ध्यान करने वाली बात नहीं है, ध्यान होता है।हां !
यह तीन सूत्र याद रखना है
क्या? अकिंचन, मैं कुछ भी नहीं हूँ। मैं कुछ हूँ, समझने से फिर दिमाग़ गरम हो जाता है। मैं अच्छा समझ लूँ, तो दूसरों को बुरा देखूँगा। मैं अपने आप को बुरा समझूँगा तो आत्मग्लानि से पीड़ित रहूँगा। दूसरों को फिर अच्छा समझने लगूँगा। अरे सब कोई अच्छे हैं, सिर्फ़ मैं ही बुरा हूँ। जब अपने आप को इतना गाली देते हो, तुम क्रोध से भर जाओगे।बहुत ग़ुस्सा आने लगेगा।क्यों, हीन भावना जग गई अपने भीतर। इसलिए मैं अकिंचन, मैं कुछ भी नहीं हूँ। सबसे सुंदर धारणा ! क्या - मैं कुछ भी नहीं हूँ।ठीक है।
मगर ऐसे जा के नहीं बोलना, जब तुम इंटर्व्यू में जाओ किसी नौकरी के लिए। पूछे तुम क्या हो, या कोई पूछे तुम क्या कर रहे हो, मैं कुछ भी नहीं हूँ - नहीं बोलना। अपने आप को समझ लेना, अपने आप में समझ लेना मैं कुछ भी नहीं हूँ। ठीक है? व्यवहार में वेदांत नहीं चलेगा। तुम टी टी ई से जा के, ट्रेन टिकिट कलेक्टर से जा के नहीं बोलना, मैं कुछ भी नहीं हूँ, तू मेरे से क्यों टिकिट माँगता है? गुरुजी ने तो बोला मैं कुछ नहीं हूँ, कोई हो तो टिकिट दे। यहाँ कोई है नहीं, टिकिट कैसे दें हम? ऐसे बेईमानी नहीं करने जाना।
मैंने सुना दो सज्जन प्रवचन सुन के अच्छा, इतवार के दिन, वेदांत के प्रवचन सुन के बस में चढ़े। बाजू, आजु बाजू में बैठे दोनों। थोड़ी देर के बाद एक ने दूसरे की जेब में हाथ डाली, उसकी पर्स निकाल ली। उसने कहा, अरे भाई तू क्या कर रहा है? बोला, अरे तू, मैं तू, क्या फ़र्क है, अभी तो इतना देर तुमने प्रवचन सुना। मैं अपना पैसा अपनी जेब से अपना निकाल रहा हूँ। तो दूसरे ने कहा चलो अपने आप को मैं अभी पोलिस में हवाले करूँगा।
वेदांत समझने की बात है।
वेदांत समझने की बात है। व्यवहार में, जो व्यावहारिक सत्य है, उस पर ध्यान देना चाहिए। ठीक है। मैं कुछ नहीं हूँ, मैं अकिंचन, यह जानने वाली बात है। फिर अचाह, अचाह व्यवहार की बात। मुझे कुछ नहीं चाहिए। यह भी मन की धारणा है। अकिंचन, अचाह और ध्यान में अप्रयत्न पूर्वक, यह तीनों सूत्र ध्यान में लग जाएँगे।
संकलन एवं संपादन : रत्नम सिंह
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित