हमारा जीवन कैसा है? पानी जैसा। जिसमें डालोगे वैसा हो जाता है। सत्संग में डालते हो, तो सत्संग में, उस ऊर्जा में, तुम वैसे हो जाते हो। जिस संगत में होते हो, वैसे तुम्हारी जीवन धारा बहने लगती है। जहाँ पर भी मन डालते हैं, वो उस रूप को ले लेता है। इसलिए भी सत्संग बहुत आवश्यक है। हो रहा है ना? जब सत्संग में बैठते हैं तो पूरा आपकी जो चेतना है, बदल जाती है कि नहीं? सकारात्मक हो जाता है। उत्साह, स्फूर्ति, भक्ति। भक्ति के वातावरण में डालते हो तो भक्तिमय हो जाते हो तुम। लोभ और लालच के उसमें डालोगे तो वैसे ही लोभ, लालच पकड़ लेगा दिमाग को। फिर वही सोचता रहेगा- अरे, उसने इतना कमाया, इसने इतना किया, मैं इतना करूँ। लोभ में, लालच में फिर मन आ जाता है।
मन में जैसा डालोगे वैसे हो जाओगे
फिर तुम चुगली में लगाओगे, तो फिर चुगली भी होने लगेगी। जिसमें डालो मन, क्रोध में डालो, तो क्रोधित रहोगे। इतना क्रोध मन में बना रहेगा। कोई छोटी-मोटी बातों को लेकर क्रोधित रह सकता है। जिंदगी भर हम ऐसे रह सकते हैं। चिंता की झोली में डालेगे तो चिंतित ही रहोगे। ये नहीं, वो नहीं, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवां। सो,चिंता में डालोगे तो चिंता। शोक में डालोगे तो शोक। कोई भी कारण ना हो, तो हम ढूंढ ही लेते हैं कुछ ना कुछ कारण दुखी रहने का। तो उस में डाल दो तो वो वैसा। और सिर्फ ऐश ही की आदत है तो अय्याशी करने की तो , अय्याशी में मन डालोगे तो वैसे ही, अय्याशी में ही दिन रात बीत जाएगी। जिंदगी बीत जाएगा फिर। है ना? तो जिसमें डालोगे ,प्रेम में डालोगे तो प्रेममय हो जाएगा जीवन। सत्संग तो प्रेम है। अच्छा, अभी जो भजन गाए थे, कहते हैं- विश्व मोहन। कैसा, ईश्वर कैसा है ना, विश्व के आकर्षण के केंद्र बिंदु में है।
दुनिया से भी अधिक आकर्षक है आध्यात्म
अक्सर हम समझते हैं जो ऊंची बाते हैं, वो बड़ा डल होगा, बोरिंग होगा रूचिकर नहीं होगा, उसमे कोई रस नहीं आएगा। ऐसी धारणा है। ये धारणा क्यों आई? तथाकथित धर्म गुरुओं को, तथाकथित धार्मिक लोगों को देखोगे, तो ऐसा लगेगा उनका चेहरा देखते ही, लगेगा कि भाग जाओ। तो जैसे मातम छा गया हो, या क्रोधित हो, या इतना गंभीर बैठे हुए हैं जैसे। कठोरता, गंभीरता, और किस तरह की मधुरता का न होने की वज़ह से, आकर्षक नहीं लगता है। और दुनिया ज्यादा आकर्षक लगती है, ऐसा नहीं है, दुनिया से भी जो ज्यादा आकर्षक है, वही है अध्यात्म।
संसार के मोह से छूटना हो तो पथ होना चाहिए और भी आकर्षक
दुनिया का सब आकर्षण से एक व्यक्ति को ऊपर उठना हो, तो वो चेतना या पथ भी इतना अधिक आकर्षक होना चाहिए, जिसमें बाकी सब चीजें अपने आप, सहज ही हम उससे छूट जाते हैं। है ना?
संतों के नाम में क्यों जोड़ते हैं आनन्द ?
अपना ये पथ जो है, ऐसा कोई डल, बोरिंग, ऐसा तो नहीं लग रहा है ना? बोरिंग लग रहा है यहाँ किसी को? किसी को लग रहा है यहाँ ये पथ? या गुरु या पथ? कहीं नीरसता छायी हुई है, कोई आनंद नहीं है ? नहीं । ऐसा नहीं है। पथ प्रदर्शक भी, पथ के लक्ष्य भी आनंदमय, आप ऐसे आनंदित रहना चाहिए। इतना मस्त हो, आनंदित हो, तो वो आध्यात्मिक पथ है। इसीलिए साधु ,सन्यासी, महात्माओ को ये प्रथा है, उनके नाम के आखरी में आनंद जोड़ देना। आनंद जोड़ देने की जो प्रक्रिया पुराना इसीलिए है कि वो आनंदित रहते हैं , मस्त रहते हैं। सत्संग में ढल गए, लग गए। वो भजन है ना, वो गीत है ना, हर दिन सुहागन की रात।
एक बार सुदर्शन क्रिया और ध्यान का रस मिल गया तो आनंद ही आनंद है
हर दिन पिया से मिल गए। फीकी पड़ी बारात। बारात फीकी पड़ जाए। माने बारात मने सारा संसार। फीकी पड़ी बारात। तो इस मस्ती, आनंद और जिसका वर्णन नहीं कर सकते। शब्द ही नहीं है बताने का। ऐसा पथ हो, वो सही है पथ। सो बाकी आकर्षण से अधिक आकर्षण। इसीलिए वो कहते हैं, भगवान कैसे हैं? अय्यप्पा स्वामी कैसे हैं? विश्व मोहनम। पूरे विश्व को वो मोहित कर लेते हैं। मोहन, भगवान कृष्ण का भी नाम यही है। मोहन क्यों रखा है? मोहन तो उनका नाम नहीं था। मोहन माने क्या? इतना अधिक आकर्षक है। पर वहाँ तक पहुंचे ना , फिर एक कदम पहुँचने पर पता चलता है अरे, ये तो बहुत आकर्षक है। एक बार ध्यान का क्रिया का, सुदर्शन क्रिया का रस जिसको मिल जाता है, फिर लगता है, अरे ये तो बड़ा आनंद है। क्या हमने खो दिया इससे पहले। क्या हमने मिस किया। ये लगता है ना?
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित।
हमारा जीवन कैसा है? पानी जैसा। जिस पात्र में पानी को डालोगे वो वैसा हो जाता है। सत्संग में मन को लगाते हो, तो सत्संग में, उस ऊर्जा में, तुम वैसे हो जाते हो। जिस संगत में होते हो, वैसे तुम्हारी जीवन धारा बहने लगती है। जहाँ पर भी मन डालते हैं, वो उस रूप को ले लेता है। इसलिए सत्संग बहुत आवश्यक है।
जब हम सत्संग में बैठते हैं तो हमारी चेतना बदल जाती है, सकारात्मक हो जाती है। मन को भक्ति के वातावरण में डालते है तो हम भक्तिमय हो जाते है।लोभ और लालच मे ड़ालते है तो लोभ, लालच दिमाग को पकड़ लेता है।
क्रोध में मन को डालेंगे, तो क्रोधित रहेंगे और कोई छोटी-मोटी बातों को लेकर क्रोधित हो जाएंगे। जिंदगी भर हम ऐसे रह सकते हैं। चिंता की झोली में डालेंगे तो चिंतित ही रहेंगे। शोक में डालेंगे तो शोक मे रहेंगे और सिर्फ ऐश ही की आदत है तो अय्याशी में ही दिन रात बीत जाएगे ।प्रेम में डालेंगे तो प्रेममय हो जायेंगे और सत्संग तो प्रेम ही है।
दुनिया का सब आकर्षण से एक व्यक्ति को ऊपर उठना हो, तो वो चेतना या पथ भी इतना अधिक आकर्षक होना चाहिए, जिसमें बाकी सब चीजें अपने आप, सहज ही हम उससे छूट जाते हैं।